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#ModiInChina शी जिनपिंग ने नरेंद्र मोदी को वुहान शहर आने का ही न्यौता क्यों दिया?

वुहान : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वुहान में होने वाली दो दिवसीय अनोखी शिखर वार्ता का दौर शुरू कर चुके हैं. दोनों नेताओं की दो दिनों में छह मुलाकात होगी. वुहान शहर चीन के मध्य में स्थित प्रदेश हुबेई की राजधानी है.वुहान मध्य चीन का सबसे घनत्व वाला शहर है […]

वुहान : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वुहान में होने वाली दो दिवसीय अनोखी शिखर वार्ता का दौर शुरू कर चुके हैं. दोनों नेताओं की दो दिनों में छह मुलाकात होगी. वुहान शहर चीन के मध्य में स्थित प्रदेश हुबेई की राजधानी है.वुहान मध्य चीन का सबसे घनत्व वाला शहर है और और कुछ समय के लिए यह उसी चीन की राजधानी रहा है, जैसे भारत में कभी कोलकाता था. 1927 में यह शहर चीन की राजधानी बनाया गया था. वुहान एक अति व्यस्त शहर है और यहां से अनेकों रेलवे लाइन, हाइवे, एक्सप्रेसवे गुजरते हैं. चीन के आंतरिक परिवहन में इसके महत्व के कारण इसे चीन का शिकागो भी कहा जाता है.

गौरतलब है कि चीन के क्रांतिकारी नेता माओ त्से तुंग छुट्टियों में अकसर वुहान और यहां स्थित ईस्ट लेक आना पसंद करते थे. इस ईस्ट लेक एशिया के दो शक्तिशाली नेता आज रात्रिभोज करेंगे. शी मोदी को सांस्कृतिक महत्व की कई चीजों दिखायेंगे. ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने शी को अहमदाबाद बुलाया था, जो भारत का विश्व धरोहर शहर है और वहां बापू के साबरमती आश्रम में उनकी आगवानी की थी. अाधुनिक भारत में जो सम्मान महात्मा गांधी को हासिल है, वही आधुनिक चीन में माओ त्से तुंग को. यानी इस जगह दोनों के मुलाकात के प्रतीकात्मक मायने हैं और संदेश है कि हम अपने राष्ट्र नायकों के आदर्शों पर आगे बढ़ कर परस्पर विकासव शांति के लिए प्रयास करें.

इस ऐतिहासिक शहर की 2000 साल पुरानी सभ्यता है. शी ने यहां मोदी को न्यौता देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि हम दोनों देश के रिश्ते ऐतिहासिक हैं और वे हजारों साल पुराने हैं. दो बड़े नेताओं की इतनी लंबी मुलाकातों को कोई औपचारिक नाम नहीं दिया जाना भी इस अनौपचारिक वार्ता के महत्व का सूचक है. यह वार्ता एक तरह से किसी परिणाम तक पहुंचने के बजाय आपसी समझ बढ़ाने का प्रयास माना जा रहा है. दरअसल, इसके बाद चीन में ही दोनों नेताओं की शांघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में मुलाकात होगी. भारत और पाकिस्तान दो साल पहले ही इसके सदस्य बने हैं. 1996 में स्थापित शांघाई सहयोग संगठन में चीन, रूस, कजाकस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, भारत व पाकिस्तान जैसे मुल्क शामिल हैं, जिसका गठन नस्लीय, धार्मिक तनाव, चरमपंथ से निबटने के लिए किया गया था.

इस सहयोग संगठन की सफलता में भारत की भूमिका अहम होगी. शी ने हाल में अपने देश के संविधान में बदलाव करवा कर खुद कोजीवनपर्यंत राष्ट्रपति चुने जाने का रास्ता बना लिया है. शी चीन के अबतक के सबसे ताकतवर नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं. उन्होंने पिछले साल पार्टी कांग्रेस में अपने संबोधन में कहा था 2035 से प्रगति की राह पर चीन एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच जाएगा और 2050 तक अपनी सफलता के चरम तक पहुंच जाएगा. यानीखुद के अनुमान के अनुसार, इस अवधि में चीन विकसित राष्ट्र बन जाएगा और दुनिया का सबसे ताकतवर देश बनेगा.

लेकिन, भारत भी तेज प्रगति कर रहा है. भारत अभी कई मानदंडों में चीन से काफी पीछे है, लेकिन वर्ल्ड बैंक व आइएमएफ के अध्ययन में कई दफा यह बताया गया है कि आने वाले सालों में चीन व भारत के विकास की रफ्तार का अंतर तेजी से कम होगा. जाहिर, दुनिया में तेजी से उभरने वाले अपने पड़ोसी और प्रतिद्वंद्वी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

भारत-चीन रिश्तों पर मोहन गुरुस्वामी का आलेख पढ़ें :

एक नयी समझ की शुरुआत

Prabhat Khabar Digital Desk
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