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#Maharashtra: अजित की बगावत ने शरद पवार को याद दिला दी 41 साल पहले की कहानी, जानें…

नयी दिल्ली : राकांपा नेता अजित पवार का रातोंरात बगावत कर भाजपा से हाथ मिलाने का निर्णय उनके चाचा शरद पवार की 41 वर्ष पहले की कहानी को याद दिलाता है, जब वह कांग्रेस के दो धड़ों द्वारा बनायी गई सरकार गिराकर राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे. पवार ने 1978 में जनता पार्टी […]

नयी दिल्ली : राकांपा नेता अजित पवार का रातोंरात बगावत कर भाजपा से हाथ मिलाने का निर्णय उनके चाचा शरद पवार की 41 वर्ष पहले की कहानी को याद दिलाता है, जब वह कांग्रेस के दो धड़ों द्वारा बनायी गई सरकार गिराकर राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे.

पवार ने 1978 में जनता पार्टी और पीजेन्ट्स वर्कर्स पार्टी के गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था, जो दो वर्ष से भी कम समय तक चली थी. संयोग से इस बार भी वह राज्य में कांग्रेस और शिवसेना से हाथ मिलाकर इसी तरह का गठबंधन तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं.

अजित ने शनिवार सुबह उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जिस पर पवार ने कहा कि भाजपा को समर्थन देने के निर्णय का उन्होंने समर्थन नहीं किया है और यह उनके भतीजे की व्यक्तिगत फैसला है. वास्तव में 1978 में अपनी पार्टी बनाकर उसे एक दशक तक चलाने के पवार के निर्णय के कारण राजनीतिक हलकों में उन्हें प्रभावशाली नेता कहा जाने लगा.

पवार ने अपनी किताब ‘ऑन माई टर्म्स’ में लिखा है कि 1977 में आपातकाल के बाद के चुनावों में राज्य और देश में इंदिरा विरोधी लहर से कई लोग स्तब्ध थे. पवार के गृह क्षेत्र बारामती से वी एन गाडगिल कांग्रेस की टिकट से हार गए. इंदिरा गांधी ने जनवरी 1978 में कांग्रेस का विघटन कर दिया और कांग्रेस (एस-सरदार स्वर्ण सिंह की अध्यक्षता वाली) से अलग होकर कांग्रेस (इंदिरा) का गठन किया.

पवार कांग्रेस (एस) के साथ बने रहे और उनके राजनीतिक मार्गदर्शक यशवंतराव चव्हाण भी इसी पार्टी में थे. एक महीने बाद राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस (एस) ने 69 सीट, कांग्रेस (आई) ने 65 सीट पर जीत दर्ज की. जनता पार्टी ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस तरह किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ.

कांग्रेस के दोनों धड़ों ने मिलकर कांग्रेस (एस) के वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व में सरकार का गठन किया, जिसमें कांग्रेस (आई) के नासिकराव तिरपुदे उपमुख्यमंत्री बने. बहरहाल, कांग्रेस के दोनों धड़ों के बीच टकराव जारी रहा जिससे सरकार चलाना कठिन हो गया था. पवार ने सरकार छोड़ने का निर्णय किया.

जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर के साथ उनके संबंधों के कारण उन्हें काफी सहयोग मिला. चंद्रशेखर ने पवार से कहा, इसमें आपको महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी. इसके मुताबिक पवार ने विधायकों का समर्थन जुटाना शुरू कर दिया. बाद में सुशील कुमार शिंदे, दत्ता मेघे और सुंदरराव सोलंकी ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया.

उल्लेखनीय है कि शिंदे आगे चल कर राज्य के मुख्यमंत्री और फिर केंद्रीय गृह मंत्री बने. पवार ने कांग्रेस के 38 विधायकों के साथ मिलकर नयी सरकार बनायी जिसे समानांतर सरकार कहा जाता है. पवार तब 38 वर्ष की उम्र में राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे. वरिष्ठ पत्रकार अनंत बगैतकार ने कहा कि नयी सरकार जनता पार्टी, पीजेंट वर्कर्स पार्टी और अन्य छोटे दलों की गठबंधन सरकार थी.

पवार लिखते हैं, सदन में जब पूरक मांगों पर चर्चा चल रही थी, सरकार अल्पमत में आ गई थी जिसके बाद मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल ने अपना इस्तीफा सौंप दिया. बहरहाल, 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में लौटते ही (पवार नीत) सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. राजनीतिक विश्लेषक सुहास पालसीकर ने एक मराठी पत्रिका में पवार पर लिखे परिचय ‘पवार के नाम पर एक अध्याय’ में लिखा कि पवार ने एक दशक से अधिक समय तक पार्टी का नेतृत्व किया और राजीव गांधी के नेतृत्व के तहत अपनी मूल पार्टी में लौट आये.

पालसीकर ने लिखा, चूंकि उन्होंने अपनी पार्टी गठित करने का निर्णय किया और इसे एक दशक तक चलाया जिससे उन्हें प्रभावशाली नेता की छवि हासिल करने में मदद मिली.

Prabhat Khabar Digital Desk
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