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असहिष्णुता पर संसद में चले तीर

नयीदिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र केगुरुवार को पहले दिन असहिष्णुता के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोपों- प्रत्यारोपों के तीर चले. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर आज ‘भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता’ विषय पर दो दिवसीय विशेष चर्चा का आयोजन किया गया है. राज्यसभा में […]

नयीदिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र केगुरुवार को पहले दिन असहिष्णुता के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोपों- प्रत्यारोपों के तीर चले. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर आज ‘भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता’ विषय पर दो दिवसीय विशेष चर्चा का आयोजन किया गया है. राज्यसभा में भी यही चर्चा होनी थी लेकिन उसके सदस्य खेखिहो झिमोमी का आज सुबह निधन हो जाने के कारण उनके सम्मान में उच्च सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गयी.

लोकसभा में चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ‘असहिष्णुता’ के मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी सरकारको निशानेपरलेते हुएएनडीए सरकार का नाम लिये बिना कहा, हमें पिछले कुछ महीनों में जो कुछ देखने को मिला है, वह पूरी तरह से उन भावनाओं के खिलाफ है जिन्हें संविधान में सुनिश्चित किया गया है. उधर, चर्चा की शुरुआत करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कांग्रेस परवार करते हुए कहा कि ‘सेक्युलर’ शब्द का आज की राजनीति में सर्वाधिक दुरुपयोग हो रहा है, जो बंद होना चाहिए. इससे देश में सद्भाव का माहौल बनाने में कठिनाई आ रही है.

राजनाथ सिंह ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग बंद होना चाहिए. इसके स्थान पर पंथ निरपेक्षता का इस्तेमाल होना चाहिए. चर्चा के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सदन में मौजूद थे. सोनिया गांधी ने सत्ता पक्ष पर प्रहार करते हुए कहा, जिन लोगों को संविधान में कोई आस्था नहीं रही, न ही इसके निर्माण में जिनकी कोई भूमिका रही है, वो इसका नाम जप रहे है, अगुवा बन रहे हैं.

चर्चा शुरु होने से पहले लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में कहा कि भारत ने अपनी अनेकता और विविधता को अपने संस्थागत लोकतंत्र के साथ बहुत सफलतापूर्वक समायोजित कर लिया है और हमारा संसदीय लोकतंत्र जाति, पंथ, धर्म और भाषा का विचार किये बिना सभी समुदायों का शांतिपूर्ण, सहअस्तित्व सुनिश्चित करता है. अध्यक्ष ने कहा, कोई निरंकुश न होने पाए इसके लिए भी हमारे संविधान में उपयुक्त प्रावधान है.

इतिहास बताता है कि ऐसे प्रयासों को जनता ने सदैव अस्वीकार कर दिया है. सुमित्रा महाजन ने कहा कि संविधान की महान उपलब्धियों के बावजूद हमारे लिये संतुष्ट होकर बैठने का समय नहीं है. संसद एवं विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी महिला विधेयक का सीधा उल्लेख किये बिना उन्होंने कहा, मैं मानती हूं कि हमारे विधायी निकायों में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व चिंता का विषय है, जिसकी ओर ध्यान दिये जाने की जरुरत है.

चर्चा में हिस्सा लेते हुए अन्नाद्रमुक केे पी वेणुगोपाल ने कहा कि जब देश के सभी नागरिक संविधान का पूरी तरह अनुसरण करेंगे तभी यह एक पवित्र दस्तावेज बना रह सकेगा. उन्होंने कहा कि डा. अंबेडकर ने हाशिये पर खडे लोगों, वंचित एवं पिछड़े तबकों के लिए समाज में भूमिका एवं स्थान दिलाने के लिए सदा प्रयास किया. इसके लिए साथ ही वे अच्छे तरीके से जीवन यापन करें, इसके लिए भी सदा प्रयासरत रहे.

वेणुगोपाल ने कहा कि अंबेडकर ने शिक्षा को विशेष तवज्जो दी क्योंकि उनका मानना था कि सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए शिक्षा जरुरी है. लेकिन आज शिक्षा में हमारा निवेश और बजट कम है. इसे बढ़ाया जाना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने धर्मनिरपेक्षता शब्द को लेकर छिड़ी बहस पर सवाल उठाया कि सरकार इस शब्द विशेष से परेशान क्यों हो जाती है. उन्होंने कहा कि आज जिस प्रकार से सार्वजनिक रुप से गृह मंत्री ने धर्मनिरपेक्षता का विरोध किया है, वह संविधान का विरोध करना है. उन्होंने कहा कि आज कुछ घटनाएं हो रही हैं जो गलत संदेश दे रही हैं. बंदोपाध्याय ने कहा कि एआर रहमान, शाहरुख खान, आमिर खान जैसे कलाकार अगर बेचैनी महसूस कर रहे हैं तो इस मामले को देखा जाना चाहिए और यह भी देखा जाना चाहिए कि ये अभिनेता , कलाकार यदि ऐसा कह रहे हैं तो क्यों कह रहे हैं.

उन्होंने साथ ही कहा कि असहिष्णुता आतंकवाद को जन्म देती है. तृणमूल कांग्रेस सदस्य ने भारत में संघीय व्यवस्था होने का उल्लेख करते हुए पिछली वाम सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल पर छोड़े गये कर्ज का मामला भी उठाया और प्रधानमंत्री से इस पर शीर्ष प्राथमिकता के साथ ध्यान दिए जाने की अपील की.

बीजू जनता दल के तथागत सतपथि ने सेक्युलर शब्द को हिंदी में गृह मंत्री द्वारा पंथ निरपेक्षता बताए जाने पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि जो हिंदी नहीं जानते हैं, उनका क्या होगा? उन्होंने कहा कि बहुलवाद की आवाज का यह अर्थ नहीं है कि कौव्वों की संख्या ज्यादा है तो कौव्वों के कहने पर कौव्वे को राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपने अहम को छोड़कर राष्ट्र निर्माण पर ध्यान दे.

उन्होंने गुजरात में पटेल कोटा आंदोलन के दौरान इंटरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित किए जाने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि हमें अपने लोगों पर भरोसा करना होगा , वे हमसे कहीं बेहतर हैं. ‘कौशल भारत’ पर चुटकी लेते हुए सतपथि ने कहा कि दासों की फौज पैदा कर कोई राष्ट्र महान नहीं बन सकता. इससे हम अच्छे सेवक तो पैदा कर सकते हैं लेकिन अच्छे नवोन्मेषक नहीं. उन्होंने कहा कि देश में विभिन्न समाजों के भीतर एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना पैदा करनी होगी. उन्होंने सुझाव दिया कि सप्ताह में एक दिन सदन में कामकाज की कमान विपक्ष के हाथों में सौंपी जाए और विपक्ष एजेंडा तय करे तथा सरकार केवल उसका पक्ष सुने.

Prabhat Khabar Digital Desk
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