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Explainer : 21 साल से कहर का दर्द झेल रहीं बिलकिस बानो, जानें पूरा मामला

तीन मार्च 2002 को जब बिलकिस बानो अपने परिवार और अन्य कई परिवारों के साथ किसी सुरक्षित जगह की तलाश में छप्परबाड़ गांव पहुंची तो 20-30 लोगों ने उन पर हमला कर दिया. हमलावरों ने लाठी-डंडे और जंजीरों से पिटाई करने लगे. इस हमले में बिलकिस के परिवार के सात लोगों की मौत हो गई.

नई दिल्ली : वर्ष 2002 में गुजरात के गोधरा कांड के बाद दंगे भड़क गए थे. दंगाई सामाजिक कार्यकर्ता बिलकिस बानो के घर में घुस गए थे. बिलकिस बानो का परिवार उस समय गुजरात के दाहोद जिले के रंधिकापुर गांव में रहता था. 20 से 30 लोगों की संख्या में दंगाई जब घर में घुसे, तो बिलकिस अपने परिवार के लोगों को लेकर पास के ही खेत में छुप गईं. उस समय उनकी उम्र 21 साल थी. उस समय वे पांच महीने की गर्भवती थीं. उस समय दंगाइयों ने बिलकिस बानो और उनकी मां समेत चार अन्य महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न किया और तीन महीने की बच्ची और मां समेत परिवार के सात लोगों को मौत के घाट उतार दिया. आज इस घटना को 21 साल हो गए हैं और तब से लेकर आज तक बिलकिस बानो कहर का दर्द झेल रही हैं. आइए, जानते हैं…

क्या है मामला

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2002 में गुजरात में दंगे के समय तमाम मुस्लिम दंगों से बचने के लिए अपना घर-बार छोड़कर पलायन करना चाहते थे. इन्हीं लोगों में बिलकिस बानो और उनका परिवार भी शामिल था. बिलकिस बानो गुजरात के दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव की रहने वाली हैं. उनके परिवार में तीन साल की बेटी समेत 15 सदस्य थे, जो किसी सुरक्षित स्थान पर जाने की कोशिश कर रहे थे. 2002 दंगों के समय बिलकिस पांच माह की गर्भवती भी थीं.

इस मामले में दायर चार्जशीट के अनुसार, तीन मार्च 2002 को जब बिलकिस बानो अपने परिवार और अन्य कई परिवारों के साथ किसी सुरक्षित जगह की तलाश में छप्परबाड़ गांव पहुंची तो 20-30 लोगों ने उन पर हमला कर दिया. हमलावरों ने लाठी-डंडे और जंजीरों से पिटाई करने लगे. इस हमले में बिलकिस के परिवार के सात लोगों की मौत हो गई. मरने वालों में बिलकिस की तीन साल की बेटी भी शामिल थी. इतना ही नहीं, हमलावरों ने बिलकिस बानो और उनकी मां समेत चार महिलाओं का सामूहिक यौन उत्पीड़न की घटना को अंजाम दिया. इस दौरान बिलकिस बानो के परिवार के छह सदस्य भी गायब हो गए जिनका कभी पता नहीं चल सका.

2004 में गिरफ्तार किए गए थे आरोपी

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में बिलकिस बानो को कई धमकियां मिलीं. उन्हें कई बार घर बदलने पड़े. पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदली गई, लेकिन उन्होंने न्याय की लड़ाई जारी रखी. वर्ष 2004 में सामूहिक यौन उत्पीड़न में शामिल आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. यह मामला जब सीबीआई के हाथ में आया, तो जांच दोबारा शुरू की गई.

2008 में 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा

21 जनवरी 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने 11 दोषियों को सामूहिक यौन उत्पीड़न और बिलकिस के परिवार के सात सदस्यों की हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. सीबीआई की विशेष अदालत के फैसलों को बंबई हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा.

15 अगस्त, 2022 को रिहा किए 11 दोषी

बिलकिस बानो और उनके परिवार की हत्या के दोषियों ने जेल में करीब 15 साल तक सजा काटी. 15 अगस्त, 2022 को बिलकिस बानो मामले के 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया. दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है.

30 नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका

गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर 11 दोषियों को रिहा किए जाने के बाद बिलकिस बानो ने 30 नवंबर, 2022 को इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दायर की. बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की थीं. पहली याचिका में 11 दोषियों की रिहाई वाले फैसले का विरोध कर उन्हें दोबारा जेल भेजने की मांग की गई. वहीं, दूसरी याचिका में दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार के फैसला करने पर आपत्ति जताई गई थी.

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दोषियों का अपराध भयावह

सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च, 2023 को सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा था, ‘दोषियों द्वारा किया गया अपराध भयावह है, यह भावनाओं से अभिभूत नहीं होगा.’ सर्वोच्च अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से सवाल पूछा था कि क्या छूट देने से पहले उनसे परामर्श लिया गया था? अदालत ने यह भी पूछा था कि क्या गुजरात सरकार इस तरह से छूट नीति लागू कर सकती है, जब हत्या के दोषी वर्षों से जेल में बंद हैं? इसके साथ ही, अदालत ने रिहा किए गए दोषियों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में भी कई सवाल किए थे.

KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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