Caste Census: भारत एक बार फिर ऐतिहासिक कदम की ओर बढ़ रहा है क्योंकि केंद्र सरकार ने फैसला लिया है कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े भी इकट्ठा किए जाएंगे. इससे पहले भारत में आखिरी जाति जनगणना वर्ष 1931 में हुई थी. इस जनगणना को अब तक भारत के सामाजिक ढांचे को समझने का सबसे बड़ा आधार माना जाता है. 94 साल बाद एक बार फिर सरकार सामाजिक न्याय और विकास की योजनाओं को सटीक रूप देने के लिए जाति आधारित आंकड़े इकट्ठा करने जा रही है.
क्यों जरूरी है जाति जनगणना?
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में सामाजिक और आर्थिक योजनाएं जाति आधारित संरचना से गहराई से जुड़ी होती हैं. आरक्षण से लेकर विकास कार्यक्रमों तक, तमाम योजनाएं जातिगत आधार पर तय होती हैं. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि सरकार के पास हर जाति की सटीक जनसंख्या का डेटा हो, ताकि योजनाएं अधिक न्यायसंगत और प्रभावी बनाई जा सकें.
1931 की जाति जनगणना में क्या सामने आया था?
1931 की जनगणना के समय कुल जनसंख्या लगभग 27 करोड़ थी. इस जनगणना में कुछ प्रमुख समुदायों के आंकड़े इस प्रकार थे:
- ओबीसी (पिछड़ा वर्ग): 52% (कुल आबादी का आधे से अधिक)
- ब्राह्मण: 1.5 करोड़ (करीब 5.5%)
- जाटव (SC): 1.23 करोड़
- राजपूत: 81 लाख (करीब 3%)
- कुनबी (मराठा सहित): 64 लाख
- यादव (अहीर + ग्वाला): कुल 96 लाख
- तेली: 42 लाख
- मुस्लिम: 3.58 करोड़ (10-12%)
राज्यवार जातिगत आधार पर स्थिति (1931)
- महाराष्ट्र (तब बॉम्बे प्रेसिडेंसी): कुनबी और मराठा – 64 लाख
- उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत): जाटव – 63 लाख
- बिहार और ओडिशा: यादव (ग्वाला) – 34 लाख
- तमिलनाडु (तब मद्रास): ब्राह्मण – 14 लाख
- राजस्थान (राजपूताना): ब्राह्मण – 8 लाख+
- असम: कायस्थ समुदाय सबसे बड़ा
- कर्नाटक (तब मैसूर): वोक्कालिगा प्रमुख जाति
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