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गुजरात चुनाव 2022: वंशवाद फिर हावी! कांग्रेस-बीजेपी ने 20 सीटों पर नेताओं के बेटों को बनाया प्रत्याशी

Gujarat Election 2022: गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी वंशवाद की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए BJP और कांग्रेस ने राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 20 पर सीटिंग एवं पूर्व विधायकों के बेटों को प्रत्याशी बनाया है.

Gujarat Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव में भी वंशवाद की राजनीति हावी होती दिख रही है. बताते चलें कि सियासी दलों द्वारा कई मौकों पर वंशवाद का विरोध किया जाता रहा है. बावजूद, इसके टिकट बंटवारे के समय राजनीतिक दल अक्सर वंशवाद की सियासत करते ही नजर आते हैं और यह हर चुनाव की एक परंपरा सी बन गई है.

बीजेपी-कांग्रेस ने सीटिंग और पूर्व विधायकों के बेटों को दिया टिकट

दिसंबर महीने में गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी वंशवाद की परंपरा देखने को मिली है, जहां सत्तारूढ़ बीजेपी (BJP) और विपक्षी पार्टी कांग्रेस (Congress) ने राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 20 पर सीटिंग और पूर्व विधायकों के बेटों को प्रत्याशी बनाया है. इनमें से कांग्रेस के 13, जबकि बीजेपी के 7 उम्मीदवार हैं.

टिकट देने के पीछे क्या है मजबूरी?

राजनीति के जानकारों के अनुसार, सियासी दल कई बार पूर्व व मौजूदा विधायकों के बच्चों को टिकट देने के लिए मजबूर होते हैं. इसके पीछे जीत की प्रबल क्षमता या उन चुनाव क्षेत्रों में विकल्प का अभाव है, जहां इन नेताओं का दबदबा होता है. दस बार के कांग्रेस विधायक और आदिवासी नेता मोहन सिंह राठवा के पार्टी के साथ अपने दशकों पुराने संबंध तोड़ने तथा पिछले महीने बीजेपी में शामिल होने का फायदा उनके बेटे को मिला. बीजेपी ने उनके बेटे राजेंद्र सिंह राठवा को छोटा उदेपुर सीट से टिकट दिया है. अनुसूचित जनजाति (SC) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित इस सीट पर राजेंद्र सिंह और पूर्व रेल मंत्री नारन राठवा के बेटे एवं कांग्रेस नेता संग्राम सिंह राठवा के बीच सीधा मुकाबला होगा.

साणंद सीट से बीजेपी ने पूर्व विधायक के बेटे को बनाया प्रत्याशी

वहीं, अहमदाबाद की साणंद विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक कानू पटेल कांग्रेस के पूर्व विधायक करण सिंह पटेल के बेटे हैं. करण सिंह पार्टी छोड़कर 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी ने एक बार फिर उनके बेटे कानू पटेल को इस सीट से टिकट दिया गया है. जबकि, थसरा से बीजेपी के उम्मीदवार योगेंद्र परमार दो बार के विधायक राम सिंह परमार के बेटे हैं. राम सिंह ने 2017 में कांग्रेस छोड़ने से पहले 2007 और 2012 में पार्टी की टिकट पर जीत हासिल की थी. हालांकि, बतौर बीजेपी प्रत्याशी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी ने अब उनके बेटे योगेंद्र को मौका दिया है.

दानिलिम्दा सीट ने कांग्रेस ने पूर्व विधायक के बेटे पर जताया भरोसा

दानिलिम्दा सीट से दो बार के कांग्रेस विधायक शैलेश परमार पूर्व विधायक मनु भाई परमार के बेटे हैं. कांग्रेस ने एक बार फिर शैलेश पर भरोसा जताया है. इसी तरह गुजरात के पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला के बेटे एवं दो बार के पूर्व विधायक महेंद्र सिंह वाघेला भी इस बार बायद सीट से मैदान में हैं. पिछले महीने महेंद्र सिंह एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. उन्होंने 2012 और 2017 के बीच कांग्रेस विधायक के रूप में बायद निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 2019 में वह बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि, पिछले महीने वह फिर कांग्रेस में लौट आए.

बारदोली सीट से पूर्व सीएम के बेटे को मिला टिकट

पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी के बेटे तुषार चौधरी को कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति (SC) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीट बारदोली से टिकट दिया है. वह 2004-09 के बीच मांडवी के सांसद और 2009 से 2014 तक बारदोली के सांसद रह चुके हैं. पोरबंदर सीट से बीजेपी के पूर्व दिवंगत सांसद विट्ठल रादडिया के बेटे जयेश रादडिया ने धोराजी विधानसभा सीट से 2009 का उपचुनाव जीता था. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जेतपुर निर्वाचन क्षेत्र से 2012 का विधानसभा चुनाव जीता. जयेश और उनके पिता ने 2013 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. जयेश ने 2017 में बीजेपी के टिकट पर जेतपुर से चुनाव जीता था. इसके बाद वह विजय रूपाणी नीत सरकार में मंत्री भी रहे. बीजेपी ने इस बार फिर उन्हें जेतपुर से टिकट दिया है.

जानिए क्या कहते है एक्सपर्ट

न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र त्रिवेदी ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों में कई परिवार ऐसे हैं, जो राजनीति को अपनी विरासत मानते हैं. ऐसे परिवार अपनी-अपनी सीट पर काफी प्रभाव डालते हैं. साथ ही चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि दल ऐसे नेताओं का कोई विकल्प नहीं ढूंढ पा रहे हैं और इसलिए वे उनके करीबियों को टिकट देने को मजबूर हैं. त्रिवेदी ने कहा कि कुछ जगह ऐसे कई दबंग नेता हैं, जिनके सामने उनके राजनीतिक दलों का कोई अन्य नेता खड़ा होने की हिम्मत नहीं करता. उन्होंने कहा कि वे लगातार जीत दर्ज करते हैं और उन्हें टिकट दिया जाता है, क्योंकि दल उनका विकल्प नहीं खोज पाते. उनकी जगह केवल उनके बेटों, बेटी या पत्नी को ही टिकट दी जाती है. (इनपुट:भाषा)

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Samir Kumar
Samir Kumar
More than 15 years of professional experience in the field of media industry after M.A. in Journalism From MCRPV Noida in 2005

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