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हाथरस पीड़िता की गरिमा का सम्मान मौत के बाद भी नहीं हुआ, महिला अधिकार कार्यकर्ता का फूटा गुस्सा

Hathras victim was not respected even after death women rights activist reaction : हाथरस गैंगरेप मामले की पीड़िता का अंतिम संस्कार उसके परिवार की मर्जी के खिलाफ आधी रात को करने को लेकर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर आलोचना की है.

नयी दिल्ली : हाथरस गैंगरेप मामले की पीड़िता का अंतिम संस्कार उसके परिवार की मर्जी के खिलाफ आधी रात को करने को लेकर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर आलोचना की है. महिला कार्यकर्ताओं ने कहा कि पीड़िता की गरिमा का सम्मान उसकी मौत के बाद भी नहीं किया गया. हालांकि पुलिस परिवार वालों के इस आरोप से इनकार कर रही है. उत्तर प्रदेश के एडीजी प्रशांत कुमार ने बयान दिया कि पुलिस ने कोई जबरदस्ती नहीं की है.

गौरतलब है कि दलित युवती के साथ 14 सितंबर को हाथरस के एक गांव में चार व्यक्तियों ने बलात्कार किया था. दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मंगलवार को उसकी मौत हो गई. मृतक के परिजनों ने आरोप लगाया है कि स्थानीय पुलिस ने उन्हें आधी रात को अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया. स्थानीय पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि अंतिम संस्कार “परिवार की मर्जी के मुताबिक” किया गया है. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने पूरी घटना को डरावना और हैरान करने वाला बताया है.

ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन्स एसोसिएशन की सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि यह खौफ आपको अपराध के बारे में पूरी जानकारी दे देता है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार और उसके तंत्र द्वारा एक दलित परिवार को अपनी बेटी के निधन पर दुःखी जताने और अपनी भावनाओं और रीति-रिवाजों के अनुसार उसे अंतिम विदाई देने के अधिकार से वंचित करने पर “जाति वर्चस्व की बू आती है.“ कृष्णन ने कहा कि युवती को जो भीषण जख्म दिए गए थे उसपर काफी बात हुई है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उसे और उसके परिवार को कथित प्रणालीगत दहशत से “पहुंचाई गई पीड़ा“ पर अपर्याप्त तवज्जो दी गई है.

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पीपल एगेंस्ट रेप इन इंडिया (पीएआरआई) की प्रमुख योगिता भयाना ने कहा कि जिस तरह से अंतिम संस्कार किया गया वह काफी “ संदेहास्पद“ है. उन्होंने कहा, “ यह बहुत संदेहास्पद है और ऐसा लगता है कि अंतिम संस्कार की इजाजत ना देना ताबूत में अंतिम कील थी. “ भयाना ने कहा कि उन्होंने बलात्कार के कई मामले देखे हैं और उन्होंने ऐसा होता कहीं नहीं देखा. इससे संदेह उत्पन्न होता है. उन्होंने कहा, “ साफ है कि वे कुछ छुपाने की कोशिश कर रहे हैं.

महिला अधिकार कार्यकर्ता शमीमा शफीक ने भी दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले का जिक्र किया. उन्होंने कहा, ” सरकार ने तब इसे संवेदनशीलता से लिया. उसे (निर्भया को) विमान के जरिए सिंगापुर भेजा गया ताकि उसकी जिंदगी बचाई जा सके. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग प्रमुख सोनिया गांधी शव को लेने हवाई अड्डे गए थे.”

Posted By : Rajneesh Anand

Prabhat Khabar Digital Desk
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