Health: भारत ने टीबी रोग के रोकथाम में खास उपलब्धि हासिल की है. यही नहीं अगले पांच साल में सरकार का लक्ष्य लेप्रोसी, लिंफेटिक फाइलेरियासिस, चेचक, काला जार और रूबेला के खात्मे की है. मंगलवार को इंडिया इनोवेशन समिट: पायनियरिंग सॉल्यूशन टू इंड टीबी पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते करते हुए नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने कहा कि वर्ष 2050 तक सरकार टीबी के मामले में 80 फीसदी और इससे होने वाली मौत को 90 फीसदी कम करने का लक्ष्य रखा है.
पिछले कुछ सालों ने देश ने तकनीक के मामले में काफी तरक्की है. पॉल ने कहा कि टीबी एक जटिल रोग है और कई मामलों में इसका पता लगाना मुश्किल है. इस मामले में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी एक बड़ी समस्या है. ऐसे में हमारी कोशिश ऐसे टीबी का पता लगाने, इलाज के नये तरीके खोजने पर काम जारी है. इस मामले में तकनीक काफी मददगार साबित हो सकता है. टीबी का पता लगाने और इसके इलाज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अहम रोल हो सकता है. ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का पता लगाने के लिए आधुनिक टूल का होना समय की मांग है. आधुनिक तकनीक और रिसर्च को बढ़ावा देकर भारत टीबी सहित कई रोगों से मुक्त होने की गति को तेज कर सकता है.
पिछले कुछ सालों में स्वास्थ्य क्षेत्र में आया है व्यापक बदलाव
इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि टीबी उन्मूलन का राष्ट्रीय प्रोग्राम देश को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2015 में देश में टीबी के 15 लाख मामलों का पता नहीं था, जो वर्ष 2023 में घटकर 2.25 लाख हो गया. टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के कारण वर्ष 2023 में 25.5 लाख टीबी के मामलों का पता लगाया गया, जो वर्ष 2024 में बढ़कर 26.7 लाख हो गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार टीबी के दर में 17.7 फीसदी की कमी आयी है.
वर्ष 2015 में प्रति लाख आबादी पर 237 लोगों को टीबी थी, जो वर्ष 2023 में घटकर प्रति लाख आबादी पर 195 हो गयी. पिछले 8 साल में टीबी से होने वाली मौत में 21.4 फीसदी की कमी और रोग के इलाज का दायरा 32 फीसदी बढ़ा है. पटेल ने इसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा स्वदेशी तौर पर विकसित तीन एक्स रे उपकरण के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि इससे टीबी का पता लगाने में काफी मदद मिल रही है.