Narendra Modi Cyprus Visit: पिछले दो दशक में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली साइप्रस यात्रा है. साथ ही यह पीएम मोदी की ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पहली विदेश यात्रा भी है. जिसने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्त नीति को दर्शाया. साइप्रस ने भी हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की थी और यह संकेत दिया था कि वह यूरोपीय संघ में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के मुद्दे को उठाएगा। इस यात्रा को भारत और साइप्रस के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ यूरोपीय संघ और भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भारत की भागीदारी को और गहरा करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
तुर्की की बेचैनी संभव
पीएम मोदी के साइप्रस में गर्मजोशी से हुए स्वागत से तुर्की असहज महसूस कर सकता है. तुर्की लंबे समय से भारत विरोधी रुख रखने वाले पाकिस्तान का समर्थक रहा है. इसके अलावा, तुर्की और साइप्रस के बीच दशकों पुराना विवाद भी इस यात्रा को विशेष महत्व देता है.
क्या है तुर्की-साइप्रस विवाद?
तुर्की और साइप्रस के बीच संबंध 1974 से तनावपूर्ण हैं, जब तुर्की ने ग्रीक समर्थित तख्तापलट के बाद साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर सैन्य आक्रमण किया था. तब से वरोशा जैसे शहर, जो कभी पर्यटन का केंद्र थे, वीरान पड़े हैं. यह विवाद न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक चुनौती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी संवेदनशील विषय बना हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा न केवल भारत-साइप्रस रिश्तों में नया अध्याय जोड़ रही है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक स्थिति को भी सशक्त कर रही है.
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