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वैवाहिक दुष्कर्म अपराध है या नहीं? चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जानिए सुप्रीम कोर्ट में अब कब होगी सुनवाई

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. पीठ ने कहा, भारत सरकार 15 फरवरी 2023 तक जवाबी हलफनामा दाखिल करे.

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली और आईपीसी के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जो किसी पति को बालिग पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने की सूरत में अभियोग से सुरक्षा प्रदान करता है.

सरकार इन याचिकाओं पर दाखिल करेगी अपना जवाब

केंद्र की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला की पीठ से कहा कि इस मुद्दे के कानूनी तथा सामाजिक निहितार्थ हैं और सरकार इन याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करेगी. पीठ ने कहा, भारत सरकार 15 फरवरी, 2023 तक जवाबी हलफनामा दाखिल करे.

21 मार्च को होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं पर सुनवाई 21 मार्च को होगी. शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता पूजा धर और जयकृति जडेजा को नोडल अधिवक्ता नियुक्त किया और कहा कि पक्षकारों को 3 मार्च तक लिखित में अभ्यावेदन देना होगा, ताकि याचिकाओं पर बिना किसी परेशानी के सुनवाई हो सके. इन याचिकाओं में से एक याचिका इस मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट के खंडित आदेश के संबंध में दायर की गई है. यह अपील, दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता खुशबू सैफी ने दायर की है. कोर्ट ने पिछले साल 11 मई को इस मुद्दे पर खंडित फैसला दिया था. हालांकि, पीठ में शामिल दोनों न्यायाधीशों (न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर) ने मामले में शीर्ष अदालत में अपील करने की अनुमति दी थी. क्योंकि, इसमें कानून से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल शामिल हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गौर किए जाने की आवश्यकता है.

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी याचिका

वहीं, एक अन्य याचिका एक व्यक्ति द्वारा कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी. इस फैसले के चलते उस पर अपनी पत्नी से कथित तौर पर दुष्कर्म करने का मुकदमा चलाने का रास्ता साफ हो गया था. दरअसल, कर्नाटक हाई कोर्ट ने पिछले साल 23 मार्च को पारित आदेश में कहा था कि अपनी पत्नी के साथ दुष्कर्म तथा आप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप से पति को छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है.

SC में इस मामले में कुछ अन्य याचिकाएं भी दायर

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में कुछ अन्य याचिकाएं भी दायर की गई हैं. कुछ याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को मिली छूट की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभाव है, जिनका उनके पति द्वारा यौन शोषण किया जाता है. कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू होने पर याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि यह मामला अलग है, क्योंकि बाकी सब जनहित याचिकाएं हैं. उन्होंने कहा कि मेरा मामला अलग है. मेरे काबिल मित्र यहां जनहित याचिकाओं के लिए हैं. मैं उस व्यक्ति के लिए हूं, जो प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित है. सॉलीसिटर जनरल ने सुझाव दिया कि दिल्ली हाई कोर्ट के खंडित फैसले के खिलाफ मामलों को उच्च न्यायालय के किसी तीसरे न्यायाधीश द्वारा सुनवाई की अनुमति दी जा सकती है और फिर शीर्ष अदालत अंतिम बार गौर कर सकता है.

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Samir Kumar
Samir Kumar
More than 15 years of professional experience in the field of media industry after M.A. in Journalism From MCRPV Noida in 2005

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