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जारी है बैंकों में फर्जीवाड़ा

II संदीप बामजई II आर्थिक विश्लेषक [email protected] स्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट दी कि देश में हर रोज बैंक फ्रॉड हो रहे हैं और देश की 20 प्रतिशत संपत्ति पर भारी संकट है. कुछ इसी तरह का आंकड़ा इसके पहले आरबीआई ने भी दिया था. भले ही आम लोगों के लिए […]

II संदीप बामजई II

आर्थिक विश्लेषक

[email protected]

स्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट दी कि देश में हर रोज बैंक फ्रॉड हो रहे हैं और देश की 20 प्रतिशत संपत्ति पर भारी संकट है. कुछ इसी तरह का आंकड़ा इसके पहले आरबीआई ने भी दिया था.

भले ही आम लोगों के लिए यह नयी बात हो, लेकिन मैं जितना बैंकिंग सिस्टम को जानता हूं, यह नयी बात नहीं है और अरसे से बैंकिंग क्षेत्र में अनियमितता चली आ रही है. इसे समझने के लिए हम कुछ साल पीछे चलते हैं.

भारत सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (सीबीआई) में एक ‘बैंकिंग सिक्योरिटी एंड फ्रॉड सेल’ (बीएसएफसी) है, जो बैंकों में होनेवाले घपलों-घोटालों की जांच करता है. हालांकि, सीबीआई में ‘इकोनॉमिक ऑफेंसेज विंग’ (ईओडब्ल्यू) भी है, लेकिन बैंकों के घोटालों को सिर्फ बीएसएफसी ही देखता है. पिछले पांच साल (2014, 15, 16, 17, 18) से बीएसएफसी जबरदस्त काम कर रहा है.

साल 2014 में सिंडिकेट बैंक के सीएमडी एसके जैन का फोन उस समय के सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा ने टेप करवाकर खुद सुना और पाया कि जैन ने भूषण पावर से 50 लाख रुपये का घूस मांगा, ताकि वह भूषण पावर के लोन को एक्सटेंशन दे दे. इस एक्सटेंशन प्रक्रिया को बैंकिंग भाषा में ‘रोल ओवर’ कहते हैं. रंजीत सिन्हा ने बीएसएफसी की टीम को सबको उठाने के लिए भेज दिया, जिसमें एसके जैन और भूषण पावर का वाइस चेयरमैन के साथ कई अन्य को भी जेल में डाल दिया गया. यह तो एक उदाहरण भर है, ऐसे कई मामले हैं.

इस ऐतबार से देखें, तो तथ्य यही सामने आता है कि पिछले करीब पांच साल (2014-18) से बैंकिंग फ्रॉड में वृद्धि होती चली गयी है. यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सीबीआई के बीएसएफसी ने जितनी भी गिरफ्तारियां की, उनमें सब के सब सरकारी बैंकों के शीर्ष अधिकारी थे.

बैंकों के शीर्ष अधिकारियों की सैलरी भी बहुत ज्यादा तो होती नहीं है, लेकिन इनके हाथ में लोन देने की पूरी शक्ति होती है, इसलिए वे फ्रॉड में एक कड़ी बन जाते हैं.

दूसरी बात यह है कि यह हो ही नहीं सकता कि सिर्फ ये अधिकारी ही फ्रॉड के लिए जिम्मेदार हैं, बल्कि सच्चाई तो यह है कि इसमें नेता छिपे तौर पर शामिल होते हैं और राजनीति की शह पर ही ऐसे फ्रॉड को अंजाम दिया जाता है. सरकारें इसे नहीं रोकतीं, बल्कि इस मामले में जैसे पिछली सरकार लुंज-पुंज थी, वैसे ही वर्तमान सरकार भी कुछ नहीं कर रही है. पिछली सरकारों में भी बैंक फ्रॉड चल रहे थे, इस सरकार में भी चल रहे हैं. और यह खुले तौर पर चलता दिख रहा है.

हां, सीबीआई ने इस मामले में अच्छा काम किया है, हाल में कई लोगों को गिरफ्तार किया है. लेकिन, यहां सीबीआई भी सिर्फ बैंक अधिकारियों को ही पकड़ पायी, जबकि विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोग अब भी किसी गिरफ्तारी से दूर हैं और मुझे लगता है कि उन्हें पकड़ पाना मुमकिन भी नहीं है, क्योंकि इसमें राजनीतिक हित बहुत मायने रखता है.

इन बैंक फ्रॉड से जहां तक अर्थव्यवस्था और बैंकिंग सिस्टम पर पड़नेवाले प्रभाव का सवाल है, तो अभी मार्च खत्म हुआ है और चौथी तिमाही के आंकड़े आनेवाले हैं.

मुझे पूरा यकीन है कि इस तिमाही और पूरे साल का कारोबारी परिणामों में सारे बैंक अपने घाटे दिखायेंगे. मसलन, चौथी तिमाही में पीएनबी 13,500 करोड़ का शुद्ध घाटा दिखायेगा. ऐसे ही सारे बैंक कुछ न कुछ घाटे दिखायेंगे. अब यह जो नुकसान है, इसको भरेगा कौन? बैंकों ने तो यही कहा है न कि वे अपने ग्राहकों का नुकसान नहीं होने देंगे.

इसका अर्थ है कि भारत सरकार घाटे वाले बैंकों को पैसे देगी. और भारत सरकार के पास यह जो पैसा है, वह देश की जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है. इसलिए यह हम जनता का नुकसान है. केंद्र खजाना खाली करेगा, तो जाहिर है इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा ही. पैसे की कमी होगी, तो जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं की राशि में कटौती की जायेगी. इस तरह से अर्थव्यवस्था, बैंकिंग सिस्टम और उद्योग-व्यापार सब प्रभावित होंगे.

अब प्राइवेट बैंकों में भी फ्रॉड की खबरें आ रही हैं. आईसीआईसीआई बैंक का उदाहरण सामने है. आगे और भी कई फ्राॅड सामने आ सकते हैं. जाहिर है, पूरा बैंकिंग सिस्टम छलनी हो गया है. मैंने देखा है कि बैंक के ज्यादातर शीर्ष अधिकारी भ्रष्ट होते हैं और इनका नेताओं के साथ साठ-गांठ रहता है.

अगर सिंडिकेट बैंक का सीएमडी 50 लाख का घूस लेते पकड़ा जाता है, तो अंदाजा लगाइये कि इसके ऊपर जो लाेग बैठे होंगे, वो कितनी बड़ी रकम लेते होंगे! जतिन मेहता, नीरव मोदी, विजय माल्या, मेहुल चौकसे, संजय भंडारी, दीपक तलवार, इन सबके भागने में पहले मदद की गयी और फिर कहा गया कि इकोनॉमिक ऑफेंडर का कानून लाया जायेगा. यह कितना हास्यास्पद है.

मुझे एक डर सता रहा है कि जिस तरह से सरकार ने 1976 के एफसीआरए कानून में संशोधन करके एक नया कानून बनाया है, जिसके तहत राजनीतिक दलों को मिलनेवाले विदेशी चंदों की कोई छानबीन नहीं हो सकती, इसका सीधा अर्थ है कि देश का पैसा लेकर भाग गये लोग इन राजनीतिक दलों को विदेशी धन के रूप में चंदे देंगे! इस खेल की संभावना ज्यादा है.

तो क्या यह खेल 2019 का चुनाव लड़ने के लिए रचा गया है? इसकी संभावना बनती है. बहरहाल, चौथी तिमाही के परिणाम आने दीजिए, तब पता चलेगा कि बैंक फ्रॉड का नुकसान कितना बड़ा है और देश को यह कितना प्रभावित करता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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