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आपातकाल के उस डरावने माहौल की याद आज भी है

50 Years of Emergency : जब आपातकाल लगाया गया, तब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफसर बन गया था, लेकिन प्रोबेशन पर था. चूंकि मैं शुरू से ही समाजवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ था, इसलिए आपातकाल लगने के बाद मैंने साथियों के साथ भूमिगत रहकर आंदोलन जारी रखने का फैसला लिया.

-प्रो राजकुमार जैन-

50 Years of Emergency : पचास साल बाद जब मैं आपातकाल के उस दौर को याद करता हूं, तो एक अजीब-सा अहसास होता है. चारों तरफ अशांति, उथल-पुथल और भय का माहौल था. आपातकाल भले ही 25 जून, 1975 को लगा हो, लेकिन उसकी पृष्ठभूमि तो पहले से ही बननी शुरू हो गयी थी. तत्कालीन दो आंदोलनों-गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन और बिहार के छात्र आंदोलन ने आपातकाल लगाने की पृष्ठभूमि तैयार की. देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, लेकिन सत्ता पर उनके बेटे संजय गांधी का कब्जा था, जो उग्र और अलोकतांत्रिक थे. इंदिरा गांधी के जो सहयोगी और सलाहकार थे, वे भी उतने ही अलोकतांत्रिक थे. उनमें से एक देवकांत बरुआ ने तो ‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया’ का नारा ही गढ़ दिया था. ऐसे ही सिद्धार्थशंकर रे थे, जिन्होंने आपातकाल लगाने की सलाह दी थी. इंदिरा गांधी को भी लगा था कि कुछ समय आपातकाल लगाने के बाद उसे हटा लिया जायेगा.


जब आपातकाल लगाया गया, तब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफसर बन गया था, लेकिन प्रोबेशन पर था. चूंकि मैं शुरू से ही समाजवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ था, इसलिए आपातकाल लगने के बाद मैंने साथियों के साथ भूमिगत रहकर आंदोलन जारी रखने का फैसला लिया. पुलिस-प्रशासन को मेरे बारे में जानकारी थी. इस कारण पुलिस मुझे गिरफ्तार करने के लिए मेरे घर पहुंची. लेकिन मैं वहां नहीं था. आखिरकार दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस से मुझे मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. फिर तो पूरे उन्नीस महीने तक मैं जेल में ही था.


आंदोलनों के सिलसिले में जेल से मेरा पुराना नाता था. वर्ष 1966 में मैं राममनोहर लोहिया जी के साथ दिल्ली की तिहाड़ जेल में था. तब जनसंघ के नेता मदनलाल खुराना भी गोरक्षा आंदोलन के सिलसिले में जेल में थे. लेकिन आपातकाल में मीसा के तहत गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल लाये जाने के बाद मैंने पाया कि माहौल बदला हुआ है. सिर्फ लोग ही डरे हुए नहीं थे, हरियाणा कैडर के जेलर शर्मा जी के तेवर भी बदले हुए थे. जेल की ड्योढ़ी पर पहुंचते ही मैंने शर्मा जी को घबराये हुए और भारी गुस्से में देखा. मैंने उन्हें नमस्कार किया, लेकिन वह बदतमीजी पर उतर आये. मुझे डपटते हुए उन्होंने कहा, ‘तुम्हें पता है तुम मीसा के तहत गिरफ्तार किये गये हो?’ मैंने कहा, ‘देखिए, हमारी लड़ाई इंदिरा गांधी से है. आप बीच में क्यों पड़ते हैं?’ जेलर को लगा कि अगर मुझे कैदियों के जनरल वार्ड में भेजा गया, तो मैं उनके बारे में उल्टा-सीधा कुछ न कह दूं, क्योंकि मैं उनका परिचित जो ठहरा. इसलिए मुझे और मेरे एक साथी को उन्होंने सजायाफ्ता कैदियों की बी क्लास बैरक में डाल दिया.

आपातकाल के समय जेल में मदनलाल खुराना हमारे साथ थे. जेल में मुझे चौधरी चरण सिंह दिखे. हम उनसे नाराज थे, क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने छात्रसंघ को प्रतिबंधित कर दिया था. छात्र आंदोलनकारियों को उन्होंने तब न सिर्फ जेल में डाल दिया था, बल्कि कहा था कि यह जेल है, कोई पिकनिक स्पॉट नहीं. चौधरी साहब को देखते ही मैंने कहा, ‘अब तो पता चल रहा होगा कि जेल और पिकनिक स्पॉट में क्या फर्क होता है?’ उनको लगा कि मैं किसी दूसरी पार्टी का कार्यकर्ता हूं. मैंने उनसे कहा, ‘चौधरी साहब, मैं सोशलिस्ट पार्टी से हूं’. यह सुनकर उन्होंने मुझे पास बुलाया और सफाई देते हुए बोले, पिकनिक स्पॉट को गलत तरह से देखा गया. मैंने वह बात गुंडों के लिए बोली थी, कार्यकर्ताओं के लिए नहीं. उसके बाद मेरे उनके साथ रिश्ते गहरे हो गये़


आपातकाल के समय का माहौल बड़ा सख्त और डरावना था. पुलिस और सरकारी अधिकारी आम लोगों से बेहद सख्ती और बदतमीजी से पेश आते थे. जहां सौ लोगों के रहने की क्षमता थी, वहां तीन सौ लोगों को ठूंस दिया गया था. संडास के लिए लंबी लाइन लगती थी. बरसात के समय तो हालत बहुत ही खराब हो गयी थी. खाना बनाने की जगह भी गंदी थी और बर्तन भी गंदे होते थे. छह महीने तक तो हमारे परिवार वालों को पता तक नहीं चला था कि हमें कहां रखा गया है. लोग जेल में बंद अपने परिजनों को ढूंढते-ढूंढते परेशान हो गये थे़ उस दौरान न्यायालय का माहौल भी कोई अलग न था. दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मीसा बंदियों के साथ सख्ती से पेश आते थे. हालांकि रंगराजन जैसे अच्छे और संवेदनशील न्यायाधीश भी मैंने उस दौर में देखे, जिन्हें बंदियों से हमदर्दी थी.


चूंकि हम समाजवादी रात में जोर-जोर से नारे लगाते थे, इसलिए हमें हरियाणा की हिसार जेल में भेज दिया गया. वहां जॉर्ज फर्नांडिस, राजनारायण, ओमप्रकाश चौटाला और जनसंघ के नेता भाई महावीर आदि थे. जेल में वैसे तो विभिन्न विचारधाराओं के नेता-कार्यकर्ता थे और सभी की लड़ाई इंदिरा गांधी की तानाशाही से थी, लेकिन जनसंघी और समाजवादी कार्यकर्ताओं के बीच ज्यादा टकराव दिखता था. जनसंघ के लोग दुखी थे, क्योंकि उनमें से ज्यादातर का व्यापार चौपट हो रहा था, लेकिन इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ हम सब एक थे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar Digital Desk
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