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भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते के लाभ

India-UK Trade : भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते में सबसे बड़ी रुकावट ब्रिटेन जाने वाले छात्रों और पेशेवरों के लिए वीजा की संख्या बढ़ाने और प्रक्रिया को आसान करने की भारत की मांग थी, जिसके लिए ब्रिटेन को अपनी आव्रजन नीति बदलनी पड़ती.

India-UK Trade : पिछले सप्ताह भारत और ब्रिटेन के बीच हुआ मुक्त व्यापार समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों की आंधी के बीच टैरिफ मुक्ति की सुखद बयार की तरह था. भारत और ब्रिटेन, दोनों पर टैरिफ की दीवारों से अमेरिका की मंडी बंद हो जाने की आशंका के कारण अपने माल के लिए नयी मंडियां खोलने का दबाव था. इसलिए दोनों ने उन रुकावटों को कुछ दिनों में दूर कर दिखाया, जिन पर करीब तीन साल से सौदेबाजी चल रही थी. अब भारत से निर्यात होने वाले 99 प्रतिशत माल पर ब्रिटेन में कोई टैरिफ नहीं लगेगा. बदले में भारत भी ब्रिटेन से आयात होने वाले माल पर अपने शुल्कों में 90 प्रतिशत की कटौती करेगा. स्कॉच, व्हिस्की जैसे ब्रितानी माल पर दस साल के भीतर धीरे-धीरे शुल्कों में कटौती की जायेगी. मुक्त व्यापार समझौता होने से ब्रिटेन में भारतीय कपड़े, जूते, कारें और उनके पुर्जे, दवा, रसायन, रत्न-आभूषण, समुद्री माल, खेल का सामान और खिलौने सस्ते हो जायेंगे. भारत में ब्रिटेन से आने वाली धातुएं, व्हिस्की और जिन, चिकित्सा उपकरण, शृंगार सामग्री, चॉकलेट, बिस्कुट, ऊनी कपड़ा, मांस, मछली और महंगी कारें सस्ती होंगी.


भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते में सबसे बड़ी रुकावट ब्रिटेन जाने वाले छात्रों और पेशेवरों के लिए वीजा की संख्या बढ़ाने और प्रक्रिया को आसान करने की भारत की मांग थी, जिसके लिए ब्रिटेन को अपनी आव्रजन नीति बदलनी पड़ती. आप्रवासी विरोधी माहौल को देखते हुए वहां की सरकार के लिए ऐसा करना संभव नहीं था. इसलिए भारत को समझौता करना पड़ा. वीजा प्रक्रिया को थोड़ा आसान बनाने और पेशेवरों के वीजा बढ़ाने के नाम पर भारतीय रसोइयों, संगीतकारों और योग शिक्षकों के लिए सालाना 1,800 वीजा देने के आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला है. समझौते में 2022 की व्यापार वार्ताओं में उठे दवा पेटेंटों के उस विवाद का जिक्र भी नहीं है, जिससे भारत में सस्ती जेनेरिक दवाओं के निर्माण में रुकावटें खड़ी हो सकती थीं और ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा को सस्ती जेनेरिक दवाएं मिलने में दिक्कत खड़ी हो सकती थी. भारत के लिए इस समझौते की शायद सबसे बड़ी उपलब्धि ब्रिटेन में कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियों और उनके अस्थायी रूप से ब्रिटेन जाकर काम करने वालों को तीन साल तक वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा कर से मिली छूट है.

ब्रिटेन में काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन का 10-12 प्रतिशत और उनकी कंपनियों को 15 प्रतिशत राष्ट्रीय सुरक्षा कर के रूप में देना पड़ता है. छूट मिलने से भारतीय कंपनियों को प्रति कर्मचारी 20 फीसदी की बचत होगी. इस दोहरा कराधान कन्वेंशन से ब्रिटेन को 10 से 12 करोड़ डॉलर सालाना की करहानि होगी, जिसे लेकर वहां का विपक्ष सवाल उठा रहा है. दरअसल, मुक्त व्यापार समझौते के साथ दोहरा कराधान कन्वेंशन समझौता भी हुआ है, जबकि द्विपक्षीय निवेश संधि पर काम चल रहा है. इससे भारतीय कंपनियों को ब्रितानी ठेकों के लिए बोली लगाने और ब्रितानी कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने तथा कारोबार लगाने की सुविधाएं मिलेंगी. इसके बदले में ब्रिटिश कंपनियां भी भारत में उसी तरह की सुविधाएं ले सकेंगी. व्यापार और निवेश बढ़ने से दोनों देशों में रोजगार बढ़ेंगे तथा आर्थिक विकास को भी गति मिलेगी.


जापान को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और ब्रिटेन छठी अर्थव्यवस्था है. पर इन दोनों का व्यापार मात्र 5,700 करोड़ डॉलर है, जो विश्व व्यापार का 0.2 प्रतिशत भी नहीं है. ब्रिटेन को यूरोपीय संघ छोड़ने से हुए व्यापारिक नुकसान की भरपाई के लिए बड़े-बड़े देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की जरूरत है. इसीलिए उसने हाल में ऑस्ट्रेलिया, जापान और सिंगापुर के साथ व्यापार समझौते किये हैं. पर भारत के साथ हुआ व्यापार समझौता उसका अब तक का सबसे बड़ा और अहम व्यापार समझौता है, क्योंकि सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के कारण भारत सबसे बड़ी मंडी भी है. भारत को भी ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के कारण अपने सबसे बड़े व्यापार साझीदार अमेरिका के साथ व्यापार घटने की भरपाई के लिए नयी मंडियों की तलाश थी.

ब्रिटेन के साथ हुआ समझौता कुछ हद तक उसकी भरपाई कर सकेगा. ब्रिटेन के साथ पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध होने के बावजूद उसके साथ होने वाले व्यापार में भारत बारहवें स्थान पर आता है. दोनों के बीच व्यापार बढ़ाने की संभावनाएं अपार हैं. इस समझौते से दोनों के व्यापार में 2040 तक करीब 3,400 करोड़ डॉलर की वृद्धि की आशा है, जिससे भारत को 2030 तक अपना निर्यात बढ़ाकर एक लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी. यह व्यापार समझौता भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ का प्रवेश द्वार माना जाता है.

यूरोपीय संघ दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है और उसे छोड़ने के बावजूद ब्रिटेन का लगभग आधा व्यापार उसी के साथ होता है. भारत यूरोप के साथ भी मुक्त व्यापार समझौता करने की कोशिश में है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक, भारत आगामी अक्तूबर तक अमेरिका के साथ और साल के अंत तक यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर लेना चाहता है. ब्रिटेन के साथ हुए समझौते से इन दोनों समझौतों को पूरा करने में भी मदद मिल सकती है. यूरोप के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं में कृषि उत्पादों, ऑटो पार्ट और सेवाओं के लिए मंडियां खोलने पर और कार्बन टैक्स, पर्यावरण और श्रम के स्तरों को लेकर रुकावटें खड़ी होती रही हैं. भारत-ब्रिटेन समझौते में बाकी सब रुकावटें तो दूर कर ली गयीं, पर कार्बन टैक्स का मामला अटका हुआ है.


भारत और ब्रिटेन की मंडियों में एक-दूसरे की चीजों की कीमतों पर इस समझौते का प्रभाव अगले वर्ष से दिखाई देगा. शुल्क मुक्त व्यापार से भारतीय निर्यातकों को करीब 4,000 करोड़ रुपये सालाना की और ब्रिटिश निर्यातकों को करीब 3,500 करोड़ रुपये सालाना की बचत होगी. भारत से आने वाले कपड़े, जूते, खेल का सामान और खिलौने बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, वियतनाम और चीन जैसे देशों से आने वाले माल का मुकाबला करते हुए बाजारों में अपनी जगह बना सकेंगे. उपभोक्ताओं और व्यापारियों को होने वाले लाभ के अलावा इस समझौते का सामरिक महत्व भी है. इससे भारत और ब्रिटेन की व्यापक सामरिक साझेदारी मजबूत होगी, जो आपसी आर्थिक विकास, तकनीकी नवाचार और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकटों के समाधान में सहयोग पर केंद्रित है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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