Brahmaputra : चीन ने हाल ही में तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर, जिसे तिब्बती भाषा में यारलुंग त्संगपो के नाम से जाना जाता है, एक विशाल जलविद्युत परियोजना के निर्माण का कार्य शुरू किया है. चीनी प्रधानमंत्री ली छियांग ने तिब्बत के न्यिंगची शहर में इस परियोजना की शुरुआत की घोषणा की, जो नदी के निचले हिस्से में स्थित है और हमारे देश के अरुणाचल प्रदेश के निकट स्थित है. इस परियोजना में पांच कैस्केड जलविद्युत स्टेशन शामिल होंगे, जिनमें कुल निवेश लगभग 1.2 ट्रिलियन युआन (लगभग 167.8 अरब अमेरिकी डॉलर) होने का अनुमान है. इस परियोजना का निर्माण और संचालन राज्य स्वामित्व वाली चाइना यारचियांग ग्रुप कंपनी लिमिटेड करेगी.
विदित है कि ब्रह्मपुत्र नदी अपने निचले हिस्से में, तिब्बत के मिलिन काउंटी के पै टाउन से लेकर मोतुओ काउंटी के बाशिका तक, ऊंचे पर्वतीय चट्टानों से अवरुद्ध होकर टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है, जिससे एक घोड़े की नाल के आकार का बड़ा मोड़ बनता है, जो प्रसिद्ध ब्रह्मपुत्र ग्रैंड कैन्यन का निर्माण करता है. इससे नदी अपने बहाव में तीव्र मोड़ के कारण 2,000 मीटर का ढाल बनाती है, जिससे लगभग सात करोड़ किलोवाट विद्युत उत्पादन किया जा सकता है. गौरतलब है कि नवंबर, 2020 में चीन ने ’14वीं पंचवर्षीय योजना’ और 2035 के दीर्घकालिक लक्ष्यों के प्रस्तावों में स्पष्ट रूप से ‘ब्रह्मपुत्र नदी के निचले हिस्से में जलविद्युत विकास को लागू करने’ का उल्लेख किया था.
मार्च 2021 में, राष्ट्रीय जन कांग्रेस ने इस परियोजना को आधिकारिक तौर पर 14वीं पंचवर्षीय योजना और 2035 विजन में शामिल किया. और इसको सिचुआन-तिब्बत रेलवे जैसे अति महत्वाकांक्षी निवेश परियोजना के साथ शामिल किया गया. इस जलविद्युत परियोजना के लिए पांच अलग-अलग स्थानों पर ब्रह्मपुत्र के पानी को इकट्ठा कर बिजली उत्पादित की जायेगी. इसके लिए एक बड़े बांध के अलावा चार छोटे-छोटे बांध की जरूरत होगी. इन जलाशयों में पानी को सुरंग से लाया जायेगा. हिमालय जैसे भूकंप प्रवण क्षेत्र में बांध और कृत्रिम जलाशय वहां के पारिस्थितिक तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगे, जिससे न केवल जीव-जंतु, वनस्पति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, बल्कि हिमालय क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा.
स्वाभाविक है कि इस बांध निर्माण के पीछे चीन के कई मंसूबे हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी का जल विवाद अभी थमा भी नहीं कि अब चीन ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा है. इसको किस रूप में देखा जाये! क्या चीन केवल अपने सामरिक सहयोगी पाकिस्तान को सिंधु जल संकट से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र के पानी को एक सामरिक शस्त्र के तौर पर इस्तेमाल करेगा या फिर चीन के अंदरूनी जल संकट और ऊर्जा संकट से उबरने का यह एक रास्ता है? या चीन अपने आधिपत्य वाले तिब्बत में इस जलविद्युत परियोजना से रोजगार एवं विकास के नये अवसर लाकर तिब्बती लोगों को आकर्षित करने का एक और निरर्थक प्रयास कर रहा है?
भारत और बांग्लादेश की बड़ी आबादी कृषि, मछली पालन, यातायात आदि के लिए ब्रह्मपुत्र नदी पर आश्रित है. हालांकि ब्रह्मपुत्र के बहाव क्षेत्र का केवल 30-35 फीसदी जल ही तिब्बत से आता है. जाहिर है, तीन देशों से बहने वाली ब्रह्मपुत्र एक अंतरराष्ट्रीय नदी है और इस पर किसी भी बांध का निर्माण किसी भी स्वरूप में, तटीय देशों की आपसी स्वीकृति से होना चाहिए. लेकिन चीन-भारत-बांग्लादेश का ब्रह्मपुत्र नदी पर ऐसा कोई समझौता नहीं है, क्योंकि चीन किसी भी बहुपक्षीय परियोजना का हिस्सा नहीं बनना चाहता है और ऊपरी तटीय देश होने का लाभ उठाता है. जैसी कि आशंका जतायी जा रही है कि चीन इस बांध को ‘जल बम’ की तरह इस्तेमाल कर सकता है.
विदित है कि भारत-चीन विवाद के समय चीन ब्रह्मपुत्र नदी जल प्रवाह का आंकड़ा भारत से साझा नहीं करता रहा है. तो कदाचित चीन माॅनसून के दौरान अचानक पानी छोड़कर तबाही ला सकता है. परंतु अगर नदी के प्रवाह की जानकारी समय पर भारत को मिलती रहे, तो मानसून के दौरान संभावित बाढ़ के खतरों से निपटने में मदद मिल सकती है. दूसरा पहलू यह है कि क्या चीन पाकिस्तान को संरक्षण देने और इस्लामाबाद पर सिंधु जल दबाव को संतुलित करने के लिए ब्रह्मपुत्र नदी बांध का प्रयोग करेगा? इसकी आशंका तो नगण्य है परंतु क्षेत्रीय भू-राजनीति और नित्य बदलते विश्व परिदृश्य में यह मुमकिन भी है.
दरअसल ऊर्जा सुरक्षा के लिए चीन ने 2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2060 तक कार्बन तटस्थता, यानी शुद्ध शून्य (नेट जीरो) उत्सर्जन हासिल करने का संकल्प लिया था, जिसके लिए उसे 2030 से पहले अपने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को चरम पर पहुंचाना है. दूसरे, ब्रह्मपुत्र जलविद्युत परियोजना की वार्षिक बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 300 अरब किलोवाट-घंटा हर वर्ष होने की उम्मीद है, जो चीन के थ्री गॉर्जेस डैम की तुलना में तीन गुना अधिक है. इस बिजली से लगभग 30 करोड़ परिवारों की वार्षिक बिजली जरूरतें पूरी की जा सकती हैं, यदि प्रति परिवार 1,000 किलोवाट-घंटा बिजली खपत की गणना करे. तीसरे, इस परियोजना का उद्देश्य चीन के अन्य क्षेत्रों के अलावा तिब्बत में भी रोजगार तथा विकास की संभावनाओं को बढ़ाना है.
विकास ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को वैधता प्रदान करता है. जैसा कि इस परियोजना में निवेश की मात्रा रेखांकित करती है, जहां थ्री गॉर्जेस डैम में कुल निवेश 135.26 बिलियन युआन (लगभग 18.8 अरब अमेरिकी डॉलर) था, वहीं इस परियोजना में निवेश उसका लगभग नौ गुना अधिक है. ऐसे में, अब भारत-बांग्लादेश को मिलकर ब्रह्मपुत्र त्रैपक्षिक सहयोग आयोग बनाने के लिए दबाव बनाना चाहिए, जिससे ब्रह्मपुत्र नदी के जल आंकड़े साझा करने को लेकर कोई रुकावट न आये. दूसरे चीन ब्रह्मपुत्र नदी के नैसर्गिक बहाव को बाधित न करे और नदी में मानसून के इतर जल की उपलब्धता सुनिश्चित करे. तीसरे, चीन जिस कार्बन तटस्थता और ऊर्जा सुरक्षा के लिए इस परियोजना की दुहाई देता है, वही भारत और बांग्लादेश के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मुश्किल पैदा कर सकता है. तो बीजिंग इस परियोजना का नाजायज लाभ न उठा ले, इसलिए यह आवश्यक है कि दिल्ली और ढाका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मुहिम शुरू करें कि बांध का दुरुपयोग करने पर सतत विकास लक्ष्यों के चीन के 17 वें लक्ष्य में कटौती की जाये.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)