Anti Naxal Operation : नक्सलवाद के खिलाफ संघर्ष में सुरक्षा बलों ने पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के जंगल में सीपीआइ (माओवादी) के महासचिव और सर्वोच्च कमांडर नंबाला केशव राव उर्फ बासवराजू को मार गिराया. उसके साथ 26 और नक्सली मारे गये. नक्सलवाद के उभार के बाद से यह पहला मौका है, जब महासचिव स्तर का व्यक्ति मारा गया हो. बासवराजू को जिस ऑपरेशन के जरिये केंद्रीय रिजर्व पुलिस और छत्तीसगढ़ पुलिस ने मार गिराया, उसे सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट नाम दिया है. छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र तक फैले जंगलों में जारी इस ऑपरेशन के तहत जहां 54 नक्सली गिरफ्तार किये जा चुके हैं, वहीं 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.
मोदी सरकार ने 2014 में जब सत्ता संभाली थी, तब देश के 70 जिलों में नक्सलवाद का बड़ा असर था. भाजपा ने 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में नक्सलवाद पर लगाम को अपने प्रमुख कार्यक्रम में शामिल किया था. उसके एक साल पहले ही छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में राज्य कांग्रेस के तकरीबन समूचे नेतृत्व को नक्सलियों ने निशाना बनाया था. उससे उपजा क्षोभ ताजा था. गौर से देखें, तो पायेंगे कि नक्सलवाद का प्रभाव उन इलाकों में ज्यादा तेजी से बढ़ा, जहां जंगल थे, जहां आदिवासी समुदाय की आबादी ज्यादा थी और जहां शिक्षा का प्रसार कम था. यह सच है कि आधुनिक सभ्यता की सहयोगी आधुनिक व्यवस्था की निगाह जल-जंगल आदि प्राकृतिक संसाधनों के जरिये मुनाफाखोरी पर रही है. इस प्रवृत्ति के खिलाफ स्थानीय लोगों में प्रचार के जरिये नक्सलवाद ने अपनी गहरी पैठ बनायी.
नक्सलवाद बुनियादी रूप से आधुनिक चीन के संस्थापक माओ त्से तुंग की विचारधारा से प्रेरित है, जिनकी मान्यता थी कि सत्ता बारूद से निकलती है. नक्सलवादी या माओवादी सोच के मूल में हिंसा की अवधारणा है, जिसके अनुसार बदलाव हिंसा के जरिये ही आता है. माओवाद अगर वैचारिकी तक सीमित रहता, तो गनीमत थी. लेकिन माओवादी कमांडरों ने बाद में अपने प्रभाव वाले इलाकों में ताकत का इस्तेमाल वसूली और मोटी कमाई के लिए करना शुरू कर दिया. तब से उनके प्रति समर्थन घटने लगा.
अपने प्रभाव क्षेत्र में वे अक्सर विकास के आधुनिक माध्यमों और प्रतीकों, मसलन- रेलवे लाइन, स्टेशन, डाकघर, स्कूल आदि को निशाना बनाते रहे. धीरे-धीरे उनके इस कृत्य को स्थानीय निवासी विकास विरोधी मानने लगे. जैसे-जैसे स्थानीय लोगों की समझ बढ़ी, नक्सलियों का आधार कमजोर होता गया. उनके द्वारा किये गये नरसंहारों ने भी उनका आधार कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभायी. केंद्र की मोदी सरकार माओवादी हिंसा को आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानती रही है. वैसे सरकार को पता था कि नक्सलियों पर ऐसी कार्रवाई का एक बड़ा बौद्धिक वर्ग विरोध करेगा. इसलिए नक्सली हिंसा पर लगाम के लिए दोतरफा कार्रवाई शुरू की गयी. एक तरफ सुरक्षा बलों के बीच तालमेल बढ़ाने और नक्सल विरोधी खुफिया तंत्र को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया, वहीं समावेशी विकास का पहिया तेजी से दौड़ाने की कोशिश की गयी. इसमें सामुदायिक भागीदारी को भी बढ़ावा दिया गया. इससे माओवादी हिंसा में कमी आयी. लोगों में भय का माहौल कम हुआ. इसके साथ ही माओवादी उग्रवाद से प्रभावित कई जिलों को मुख्यधारा में शामिल करने में तेजी आयी.
नक्सलियों के आत्मसमर्पण और उनके पुनर्वास पर जोर दिया गया. हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने और सामान्य जिंदगी बिताने के लिए नक्सलियों को सरकारी स्तर पर मदद दी जाने लगी. इसके साथ ही सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे की कमी दूर करने के लिए नक्सल प्रभावित जिलों के लिए विशेष योजना के तहत विशेष केंद्रीय सहायता दी जा रही है.
इसकी वजह से पिछले 10 वर्षों के दौरान, 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है. नक्सलियों के खिलाफ ज्यादा सटीक कार्रवाई के कारण अब खूंखार नक्सली या तो मारे जा रहे हैं या फिर समर्पण कर रहे हैं, वहीं जनजातीय इलाकों में नयी सड़कें और रेल लाइनें बनायी जा रही हैं. माओवाद विरोधी कार्रवाई की कमान संभालने वाले केंद्रीय बलों के अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा सरकार ने उनके लिए मुफीद माहौल मुहैया कराया है. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार की हार के बाद सुरक्षा बलों के कुछ अधिकारियों का मानना था कि नयी सरकार की नीति बदलेगी. इस कारण स्थानीय पुलिस और प्रशासन माओवादी हिंसा के खिलाफ उनके कदमों के प्रति सहयोगी रुख रखेगा. नक्सलवाद पर नकेल के उपायों का असर ही कहा जायेगा कि 2014 में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 70 थी, जो अब घटकर 38 रह गयी है. नक्सलवाद खत्म हो, विकास की गाड़ी दौड़ती रहे और जनजातीय समूह के लोगों को भी विकास में भागीदार बनाया जाये, इससे शायद ही किसी को इनकार होगा. लेकिन व्यवस्था को यह भी देखना होगा कि फिर ऐसे हालात न बनें, जिससे स्थानीय निवासियों को बरगलाना आसान हो और वे हथियार उठाने के लिए मजबूर हों.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)