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प्रधानपतियों के विरुद्ध

Pradhan Pati in Panchayats : देश भर में प्रधानपति की गलत परिपाटी शुरू हो गयी. इसे इतना सामान्य मान लिया गया है कि 'पंचायत' जैसी लोकप्रिय वेब सीरीज तक में महिला प्रधान की जगह उनके पति को सारी जिम्मेदारी संभालते दिखाया गया है.

Pradhan Pati in Panchayats : देश भर में पंचायती स्तर पर महिलाओं के अधिकारों का पुरुषों द्वारा किये जा रहे दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए सरकार अब जो कदम उठाने जा रही है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए. दरअसल जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए 1992 में 73 वें संविधान (संशोधन) अधिनियम के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया था. वह एक बढ़िया फैसला था.

महिलाएं अक्सर सामाजिक कल्याण, शिक्षा और साफ-सफाई को प्राथमिकता देती हैं, जो सामुदायिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति महत्व बढ़ता है. जब पंचायतों में महिलाएं नेतृत्व करती हैं, तो वे अन्य लड़कियों और महिलाओं के लिए तो आदर्श बनती ही हैं, वे दूसरी महिलाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं. लेकिन उस पर अमल होने के साथ ही देश भर में प्रधानपति की गलत परिपाटी शुरू हो गयी. इसे इतना सामान्य मान लिया गया है कि ‘पंचायत’ जैसी लोकप्रिय वेब सीरीज तक में महिला प्रधान की जगह उनके पति को सारी जिम्मेदारी संभालते दिखाया गया है.

इस परिपाटी के खिलाफ 2023 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी. उस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने जो आदेश दिया था, उसी के अनुरूप पंचायती राज मंत्रालय ने सुशील कुमार कमेटी गठित की, जिसने एक दर्जन से अधिक राज्यों में जाकर जमीनी हकीकत देखी, महिला पंचायत प्रतिनिधियों से बात की, फिर अपनी रिपोर्ट सौंपी. कमेटी ने ऐसे मामलों में कठोर दंड की सिफारिश की है. उसने पंचायतों में महिलाओं की वास्तविक भागीदारी बढ़ाने के लिए सार्वजनिक कार्यक्रम कर महिला प्रधानों को शपथ दिलाने, पंचायत स्तर पर महिला नेताओं का अलग संगठन बनाने, महिला पंचायत प्रतिनिधियों को स्थानीय भाषा में प्रशिक्षण देने, पंचायतों की बैठकों की वीडियो रिकॉर्डिंग करने तथा महिला लोकपाल की नियुक्ति जैसे सुझाव दिये हैं.

महिला प्रधानों की जिम्मेदारी पुरुषों द्वारा संभालने से दो चीजें पता चलती हैं. एक तो महिला आरक्षण लागू कर दिये जाने के बावजूद पुरुष-वर्चस्ववादी समाज महिलाओं को अधिकारसंपन्न होते नहीं देखना चाहता. दूसरी बात यह कि महिलाओं को आरक्षण दिए जाने के बाद भी वे इतनी शिक्षित और जागरूक नहीं हैं कि इस दुष्प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठायें. ऐसे में, जड़ जमा चुकी प्रधानपति व्यवस्था को खत्म करने के साथ-साथ महिलाओं को शिक्षित और जागरूक किये जाने की भी जरूरत है.

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