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एफडीआइ में वृद्धि से विकास को मिलेगा बल

FDI : नीति आयोग ने हाल ही में यह प्रस्ताव दिया है कि चीनी कंपनियां किसी भारतीय कंपनी में 24 प्रतिशत तक हिस्सेदारी बिना अनुमोदन के ले सकती हैं. नीति आयोग का यह प्रस्ताव, जाहिर है, देश में एफडीआइ को बढ़ावा देने वाली योजना का हिस्सा है.

FDI : केंद्रीय वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय तथा भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत में 81.04 अरब डॉलर का एफडीआइ (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) आया, जो पिछले वित्त वर्ष के 71.28 अरब डॉलर की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक है. ये आंकड़े भारत की मजबूत आर्थिक नीतियों, वैश्विक निवेशकों के बढ़ते भरोसे और सुधारों को दर्शाते हैं. पिछले वित्त वर्ष में भारत को सबसे ज्यादा एफडीआइ सिंगापुर से प्राप्त हुआ, वहीं राज्यों में सबसे अधिक एफडीआइ महाराष्ट्र को प्राप्त हुआ. कुल एफडीआइ में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 39 प्रतिशत दर्ज हुई. दूसरे स्थान पर कर्नाटक और तीसरे स्थान पर दिल्ली रही, जिनकी हिस्सेदारी क्रमश: 13 और 12 फीसदी रही.


वर्ष 2023-24 के मुकाबले एफडीआइ में बेशक 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन भारत जैसे बड़े देश के लिए इस वृद्धि को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि विकास के लिए बहुत ज्यादा निवेश की जरूरत होती है. देश में एफडीआइ में अपेक्षित कमी आने का सबसे बड़ा कारण निसंदेह चीन के निवेश पर लगी आंशिक रोक है. हालांकि हाल ही में नीति आयोग ने उन नियमों में ढील देने का प्रस्ताव किया है, जिनके तहत चीनी कंपनियों को यहां निवेश के लिए अतिरिक्त जांच की आवश्यकता पड़ती है. अभी भारत में निवेश के लिए चीनी कंपनियों को गृह और विदेश मंत्रालयों से सुरक्षा मंजूरी लेनी पड़ती है.

नीति आयोग ने हाल ही में यह प्रस्ताव दिया है कि चीनी कंपनियां किसी भारतीय कंपनी में 24 प्रतिशत तक हिस्सेदारी बिना अनुमोदन के ले सकती हैं. नीति आयोग का यह प्रस्ताव, जाहिर है, देश में एफडीआइ को बढ़ावा देने वाली योजना का हिस्सा है. हालांकि नीति आयोग के प्रस्तावों को मानना सरकार के लिए जरूरी नहीं है, लेकिन यह प्रस्ताव ऐसे समय आया है, जब भारत और चीन अपने तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि दूसरे देशों की कंपनियां विनिर्माण और फार्मास्युटिकल्स जैसे कई क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से निवेश कर सकती हैं, जबकि रक्षा, बैंकिंग और मीडिया आदि कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में बाहरी निवेश पर आंशिक रोक है. नियमों में बदलाव के कारण 2023 में चीन की बीवाइडी कंपनी द्वारा इलेक्ट्रिक कार जॉइंट वेंचर में एक अरब डॉलर निवेश करने की योजना टल गयी थी.


वास्तविकता यह है कि यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर एफडीआइ में कमी आयी है, लेकिन भारत में इसमें आयी गिरावट का कारण चीनी निवेश में अड़चन को माना जा रहा है. भारत में एफडीआइ में गिरावट का एक और कारण भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य एफडीआइ (ओएफडीआइ) में वृद्धि भी शामिल है. ओएफडीआइ का मतलब भारतीय कंपनियों का दूसरे देशों में निवेश करना है. इससे देश को कई लाभ भी हैं. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, जून में भारत की विदेश में एफडीआइ बढ़कर 5.03 अरब डॉलर हो गयी, जो पिछले साल के जून महीने के 2.9 अरब डॉलर से ज्यादा है.

मई, 2025 में यह 2.7 अरब डॉलर थी. सिंगापुर 2.21 अरब डॉलर की भारतीय एफडीआइ प्रतिबद्धताओं के साथ शीर्ष गंतव्य के रूप में उभरा है, उसके बाद मॉरिशस और अमेरिका एक-एक अरब डॉलर के साथ दूसरे स्थान पर रहे. किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहलाता है. ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है, जिसमें उसका पैसा लगता है. दूसरे देशों में निवेश करके भारत दुनियाभर के देशों में आर्थिक, राजनीतिक, रक्षा, तकनीकी और सांस्कृतिक जैसे कई प्रमुख पहलुओं में फैले अनेक लाभों और रणनीतिक हितों का लाभ उठाता है.

आर्थिक रूप से, भारत का लक्ष्य अपनी वस्तुओं और सेवाओं के लिए नये बाजार सुरक्षित करना और व्यापार साझेदारी और निवेश के अवसर पैदा करना है. राजनीतिक रूप से, यह राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देता है, जो अंतरराष्ट्रीय संगठनों में इसकी वैश्विक स्थिति और प्रभाव बढ़ा सकते हैं. रक्षा के संदर्भ में, भारत विभिन्न देशों के साथ सैन्य संबंधों को मजबूत करने, संयुक्त अभ्यास करने और प्रौद्योगिकी साझा करने के लिए सहयोग करता है, जिससे इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता मजबूत होती है. तकनीकी मोर्चे पर, भारत सूचना प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में सक्रिय रूप से सहयोग चाहता है, जो सतत विकास और नवाचार के लिए महत्वपूर्ण हैं.


सांस्कृतिक रूप से, भारत सॉफ्ट पावर पहलों के माध्यम से अपनी समृद्ध विरासत और मूल्यों को बढ़ावा देता है, जिससे अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आपसी समझ बढ़ती है. निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि देश के लिए जितना जरूरी एफडीआइ है, उतना ही जरूरी ओएफडीआइ भी है. अगर, दोनों में संतुलित तरीके से वृद्धि होती है, तो हमारा देश अर्थव्यवस्था और विकास के सभी पैमानों पर बेहतर प्रदर्शन कर सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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