Defense Products : ऑपरेशन सिंदूर में स्वदेशी शस्त्रास्त्र के अभूतपूर्व प्रदर्शन के बाद भारतीय सैन्य उपकरण के निर्यात में लंबी छलांग लगने की आशा स्वाभाविक थी. वर्ष 1962 के चीनी हमले के समय भारतीय सैनिकों के पास द्वितीय विश्वयुद्ध से चली आ रही थ्री-नॉट-थ्री रायफल थी. उसी भारतीय सेना ने 2025 में ब्रह्मोस एवं अन्य प्रक्षेपास्त्रों से दुश्मन के फौजी ठिकाने नेस्तनाबूत कर दिये. आज सैन्य उपकरणों का निर्माण और निर्यात समृद्धि की नींव का पत्थर होता है. पर बुलेटप्रूफ वेस्ट और नाइटविजन चश्मा तक आयात करने वाले भारत के लिए आयुध निर्यात एक खूबसूरत सपना था. इस सपने को सच बनाया प्रधानमंत्री मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ के नारे और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अभियान ने.
भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की स्थापना 1958 में हुई थी. सैन्य उपकरणों के विकास और उत्पादन में दशकों से लगे रहने के बावजूद इसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा. भारत उन देशों से हथियार मंगाने को मजबूर था, जो निर्यातित सामग्री का मूल्य रुपये में लेने को तैयार थे या गुटनिरपेक्ष भारत को नाटो जैसे प्रतिद्वंदी गुटों के असर से बाहर रखना चाहते थे. तत्कालीन सोवियत संघ ने भारत को सैन्य उपकरण मुहैया कराने में दरियादिली दिखाई, पर उसके शस्त्रास्त्र पश्चिमी देशों के अत्याधुनिक उपकरणों की तुलना में कुछ फीके रहते थे. अतः भारत को अमेरिका, फ्रांस और इस्राइल पर निर्भर होना पड़ा. पर वैश्विक सहायता पर आश्रित भारत ने पिछले दस-पंद्रह वर्षों में फौजी साज-ओ-सामान के निर्माण में ऐसी प्रगति की है कि वह सैन्य उपकरणों का उभरता निर्यातक बन गया है.
आंकड़ों के अनुसार, 2013-14 से अब तक भारत के रक्षा निर्यात में 34 गुना वृद्धि हुई है. स्टॉकहोम स्थित इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2023 में भारत रक्षा सामग्री के आयात पर 8.36 करोड़ डॉलर खर्च कर सबसे बड़ा आयातक बन गया था. पर 2024 में भारत ने 21,083 करोड़ रुपयों का निर्यात किया जो 2023 से 32 फीसदी अधिक था, जबकि 2025 में इसके 12 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है.
नोमुरा सिक्योरिटीज के मुताबिक, 2024 से अगले दस वर्ष में भारत का सैन्य निर्यात 50 अरब डॉलर हो जायेगा. ‘मेक इन इंडिया’ नारे से उपजा आत्मनिर्भरता का सिद्धांत रक्षा सामग्री के निर्यात के मूल में है. अप्रैल, 2024 में फिलीपींस को 37.5 करोड़ डॉलर के ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र का निर्यात किया गया. इस वर्ष अप्रैल में इन मिसाइलों की दूसरी खेप भी उसे भेज दी गयी. ब्रह्मोस रूस और डीआरडीओ के सहयोग से निर्मित मिसाइल है, जो ध्वनि से भी तेज गति से चलती है. ब्रह्मोस की तुलना अमेरिकी हार्पून मिसाइल से की जाती है, पर हार्पून की गति ध्वनि की गति से कम है, जबकि ब्रह्मोस की गति ध्वनि की गति से 2.8 से लेकर तीन गुनी तक है.
हार्पून की रेंज 240 किलोमीटर है, ब्रह्मोस की 300 किलोमीटर. ब्रह्मोस की कीमत करीब 35 लाख डॉलर है, जो हार्पून की करीब 14 लाख डॉलर कीमत से अधिक है. पर पाकिस्तान में प्रयुक्त चीन के सस्ते एयर डिफेंस सिस्टम की विफलता ने आयातक देशों को ‘महंगा रोये एक बार सस्ता रोये बार-बार’ का सबक सिखा दिया है. वियतनाम ऑपरेशन सिंदूर के पहले से ही भारत से ब्रह्मोस खरीदने की फिराक में था. ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना, वेनेजुएला, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और कतर ने भी ब्रह्मोस में रुचि दिखाई है.
ऑपरेशन सिंदूर में भारत का एयर डिफेंस सिस्टम (एसयू400 या सुदर्शन चक्र) पाकिस्तान के चीन से आयातित एचक्यू9 सिस्टम पर भारी पड़ा. सुदर्शन चक्र रूस में निर्मित उपकरण है. अब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड कॉम्बैट एयर टार्गेटिंग सिस्टम परियोजना में जुट गया है. भारत पहले ही पिनाक मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, नौसेना के लिए पेट्रोल बोट, आर्टिलरी के लिए तोपें, आकाश एयर डिफेंस मिसाइल और बख्तरबंद गाड़ियां भेजने लगा है. तेजस लड़ाकू विमान और एडवांस हेलीकॉप्टर बनाने वाली एचएएल अब 17 से 19 सीटर डोर्नियर 228 नागरिक विमान भी कानपुर इकाई में बनायेगी, तो टाटा एडवांस सिस्टम्स लिमिटेड ने एयरबस कंपनी के साथ मिलकर गुजरात में 70 सवारियों वाले सी 295 विमान का निर्माण शुरू किया है. इन सभी के निर्यात की अच्छी संभावना है.
आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना सरकारी और निजी क्षेत्रों के सहयोग पर टिकी है. डीआरडीओ जैसे संगठन और एचएएल, भारत डाइनामिक्स, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, मजगांव डॉक्स शिपबिल्डर्स, कोचीन शिपयार्ड जैसी सरकारी कंपनियों के साथ निजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां तेजी से जुड़ी हैं. टाटा एयरोस्पेस, लार्सेन एंड टूब्रो, भारत फोर्ज, महिंद्रा डिफेंस, गोदरेज डिफेंस जैसे जमे खिलाड़ियों के साथ अब नये महारथी भी जुड़ रहे हैं. सूक्ष्म और सटीक उच्च गुणवत्ता के पुर्जे और धातु के सामान बनाने वाली छोटी-छोटी नयी कंपनियां भी अद्भुत क्रियाशीलता का परिचय दे रही हैं. शेयर बाजार में रक्षा उत्पादन कंपनियों के शेयर मूल्य में जबरदस्त उछाल सारे देश की सोच को प्रतिबिंबित करता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)