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भारत का संदेश : आतंक के विरुद्ध लड़ाई हमारा राष्ट्रीय मुद्दा

Fight against terror : एकजुटता के इस दुर्लभ प्रदर्शन ने एक शक्तिशाली संदेश दिया- आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई राजनीति से परे है और यह एक साझा राष्ट्रीय मुद्दा है. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने कई प्रसिद्ध वैश्विक नेताओं और प्रमुख राजनीतिक हस्तियों से मुलाकात की, जिससे भारत के आतंकवाद विरोधी संदेश को बढ़ावा मिला.

-हर्षवर्धन सिंगला-
(पूर्व विदेश सचिव)

Fight against terror : स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले कभी भाजपा, कांग्रेस, एआइएमआइएम, द्रमुक, बीजद, शिवसेना और अन्य दलों के सांसदों ने एकजुट संदेश के साथ यात्रा नहीं की. शशि थरूर, सुप्रिया सुले, असदुद्दीन ओवैसी और गुलाम नबी आजाद जैसे विपक्षी नेता मंच पर प्रमुखता से मौजूद थे. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत सरकार ने एक अभूतपूर्व कूटनीतिक पहल की शुरुआत की. विगत 23 मई से सात सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने, जिनमें सत्ताधारी पार्टी और विभिन्न विपक्षी दलों से 59 संसद सदस्य शामिल थे, 30 से अधिक देशों की यात्रा की और वैश्विक नेताओं, नीति निर्माताओं, मीडिया, थिंकटैंक तथा प्रवासी समुदायों के साथ बातचीत की.

इन समूहों को एक स्पष्ट, एकीकृत संदेश को आगे बढ़ाने का काम सौंपा गया था- आतंकवाद पर भारत की शून्य-सहिष्णुता का रुख और आतंकवादी नेटवर्क तथा उनके प्रायोजकों के लिए चेतावनी. उनके मिशन में यूएनएससी के स्थायी सदस्य, खाड़ी देश, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के रणनीतिक साझेदार शामिल थे. इस पहल की विशेषता यह थी कि इसने राष्ट्रीय एकता को प्रदर्शित किया. ध्रुवीकृत राजनीतिक माहौल में सभी प्रमुख पार्टियों के नेताओं ने मतभेदों को किनारे रखकर भारत के लिए एक स्वर में बात की.


एकजुटता के इस दुर्लभ प्रदर्शन ने एक शक्तिशाली संदेश दिया- आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई राजनीति से परे है और यह एक साझा राष्ट्रीय मुद्दा है. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने कई प्रसिद्ध वैश्विक नेताओं और प्रमुख राजनीतिक हस्तियों से मुलाकात की, जिससे भारत के आतंकवाद विरोधी संदेश को बढ़ावा मिला. वाशिंगटन डीसी में प्रतिनिधिमंडल ने आतंकवाद का मुकाबला करने और भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के साथ व्यापक चर्चा की. ब्रसेल्स में भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद के समूह ने बेल्जियम के चैंबर ऑफ डेप्युटीज के अध्यक्ष पीटर डी रुवर से मुलाकात की, जिन्होंने भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की. बहरीन और कुवैत में प्रतिनिधिमंडल ने उपप्रधानमंत्रियों सहित महत्वपूर्ण राजनीतिक नेतृत्व के साथ सार्थक आदान-प्रदान किया. कुवैत में हमारे मिशन ने एक अनौपचारिक बातचीत का आयोजन किया था, जहां प्रतिनिधिमंडल को पूर्व उपप्रधानमंत्री, चार पूर्व मंत्रियों, खाड़ी सहयोग परिषद के पूर्व महासचिव और कुवैत के तीन प्रमुख समाचार पत्रों के वरिष्ठ संपादकों सहित 40 से अधिक शीर्ष कुवैतियों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला.


अन्य प्रतिनिधिमंडलों ने ब्राजील में सीनेट की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष सीनेटर नेल्सिन्हो ट्रैड से मुलाकात की. ब्रिटेन में टीम ने कंजरवेटिव पार्टी के सह-अध्यक्ष लैंस्टन के लॉर्ड डोमिनिक जॉनसन और अन्य वरिष्ठ सांसदों से मुलाकात की. स्पेन, मलयेशिया, लाइबेरिया और अन्य देशों के नेताओं के साथ बैठकों के अलावा उच्च स्तरीय बातचीत ने भारत की कूटनीतिक भागीदारी की व्यापकता और आतंकवाद के खिलाफ इसके दृढ़ रुख के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्रदर्शित किया. पश्चिम एशियाई देशों-सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और अल्जीरिया- ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल को उदार राजनयिक शिष्टाचार प्रदान किया. यह गर्मजोशी भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा को दर्शाती है, जो खाड़ी और उत्तर अफ्रीका में वैचारिक और राजनीतिक सीमाओं से परे भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभर रहा है. कुवैत में एक मार्मिक सांस्कृतिक क्षण सामने आया, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव पर स्थानीय अधिकारियों ने भारत और कुवैत के बीच व्यापार व मौद्रिक संबंधों को प्रदर्शित करने वाली एक प्रदर्शनी का आयोजन किया. आज कम लोगों को याद होगा कि 1947 से 1962 तक कुवैत और बहरीन में भारतीय रुपया वैध मुद्रा के रूप में काम करता था. इस प्रयास को मीडिया और कूटनीतिक हलकों में सराहा गया और भारत को एक स्थिर व विश्वसनीय शक्ति के रूप में दर्शाया गया. सभी मुस्लिम बहुल देशों में बातचीत एक स्पष्ट संदेश के साथ शुरू हुई- यह दो राष्ट्रों के बीच का संघर्ष नहीं, बल्कि भारतीय जनता पर पाकिस्तान की सेना द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का हमला है.


चूंकि इन देशों ने खुद भी संघर्ष और चरमपंथ का अनुभव किया है, इसलिए वे भारत के साथ सीमापार आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई से जुड़ाव महसूस करते हैं. खाड़ी के थिंकटैंकों के साथ बैठकों में बार-बार यह दोहराया गया कि पहलगाम में हुआ आतंकी हमला पाक सेना और उसकी खुफिया एजेंसियों द्वारा संगठित सैन्य अभियान था. प्रतिनिधिमंडल के सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने विस्तार से समझाया कि कैसे पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख और पूर्व आइएसआइ प्रमुख जनरल असीम मुनीर इस आतंकवादी नेटवर्क की प्रतीकात्मक कड़ी हैं. उन्होंने पाकिस्तान के 2018 से 2022 तक एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में रहने और फिर भी विदेशी सहायता प्राप्त करने पर सवाल उठाया.

आइएमएफ, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और द्विपक्षीय दाताओं से अरबों डॉलर की सहायता प्राप्त करने के बावजूद पाकिस्तान ने इन फंडों का उपयोग अर्थव्यवस्था को सुधारने या गरीबी मिटाने के बजाय अपनी सेना के विस्तार और विचारधारात्मक युद्ध में किया. इन सहायता राशि से भारत विरोधी आतंकी ढांचे को बनाये रखा गया, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक आतंकवाद-रोधी प्रयासों को गंभीर नुकसान हुआ. प्रतिनिधिमंडल ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल मुस्लिम बहुल देश ही फिलिस्तीनियों की चिंता नहीं करते. भारत हमेशा से दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करता रहा है, जिससे इस्रायल और फिलिस्तीन, दोनों को सुरक्षित और स्वतंत्र भविष्य मिल सके. हालांकि, यह स्पष्ट किया गया कि आज फिलिस्तीनियों की दुर्दशा दुखद रूप से हमास से जुड़ी हुई है, जो एक आतंकवादी संगठन है और जिसने गाजा में शासन को हाईजैक कर लिया है. सऊदी थिंकटैंकों ने पहलगाम हमले को केवल आतंकवाद नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सेना और आइएसआइ द्वारा समर्थित एक संगठित सैन्य ऑपरेशन के रूप में परिभाषित किया. इस अभ्यास से पांच मुख्य रणनीतिक उपलब्धियां हासिल हुईं.

पहला, एकीकृत राष्ट्रीय संदेश : विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद विरोध चुनावी राजनीति से परे है. द्विदलीय प्रतिनिधित्व ने वैश्विक वार्ताकारों को दिखाया कि भारत का नीतिगत रुख विश्वसनीय, स्थिर और घरेलू विद्वेष से परे है.

पाकिस्तान को बेनकाब किया- प्रतिनिधिमंडलों ने पहलगाम हमले की साजिश रचने में पाकिस्तान की भूमिका को सफलतापूर्वक उजागर किया, तथा एफएटीएफ जैसे मंचों सहित सुधारात्मक कार्रवाई करने का आग्रह किया.


कूटनीतिक अलगाव : इस आउटरीच ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से और अलग-थलग करने में मदद की, तथा इस संदेश को मजबूत किया कि आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता.


सामुदायिक जुड़ाव : प्रतिनिधिमंडलों ने भारतीय प्रवासियों व स्थानीय समुदायों के साथ बातचीत की, लोगों से लोगों के बीच संबंधों को मजबूत किया तथा भारत के रुख के लिए समर्थन जुटाया.


भविष्य की कूटनीति का खाका : आगे बढ़ते हुए भारत को संसदीय कूटनीति को औपचारिक रूप देना चाहिए, आतंकवाद-रोधी नेटवर्क पर संयुक्त कार्य बलों का निर्माण करना चाहिए, प्रवासी संबंधों को बनाये रखना चाहिए तथा रणनीतिक बहुपक्षीय गठबंधनों को आगे बढ़ाना चाहिए. विगत 10 जून को सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने पीएम से मुलाकात की और अपनी प्रतिक्रिया साझा की. पीएम ने परिणामों पर संतुष्टि व्यक्त की और ट्वीट किया, ‘जिस तरह से उन्होंने भारत की आवाज को आगे बढ़ाया, उस पर हम सभी को गर्व है.’
(ये लेखक द्वय के निजी विचार हैं.)

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