Israel-Iran ceasefire: इस्राइल-ईरान के बीच 10 दिनों से अधिक समय से चल रहे युद्ध पर फिलहाल विराम लग चुका है. इस बात की घोषणा स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने की है. जब से ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति बने हैं, उनका उद्देश्य दुनिया में शांति बहाली रह गया है.
इसी कारण उन्होंने 24 घंटे के भीतर रूस-यूक्रेन युद्ध, हमास-इस्राइल युद्ध रुकवाने की बात कही. कहीं न कहीं उनके भीतर यह इच्छा भी नजर आती है कि दुनिया उन्हें शांति का दूत माने. जहां तक ईरान पर हमले की बात है, तो उन्होंने ईरान को साठ दिन का समय दिया था और कहा था कि इन साठ दिनों के भीतर वह अमेरिका से बातचीत करे और पूरी तरह आश्वासन दे कि वह परमाणु हथियार नहीं बनायेगा. उसका यह आश्वासन संतोषजनक होना चाहिए. परंतु ईरान ऐसा करने की बजाय यूरेनियम संवर्धन में जुटा रहा.
दोनों के बीच टकराव का एक कारण यह है कि ईरान इस्राइल के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है. पहले अरब देश भी इस्राइल को मान्यता नहीं देते थे, पर धीरे-धीरे अरबों ने इस्राइल के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया. सात अक्तूबर, 2023 को जब हमास ने इस्राइल पर हमला बोला था- जो कि पूरी तरह आतंकी घटना थी, तभी से हमास, हिज्बुल्लाह और हूती विद्रोही लगातार इस्राइल पर हमला कर रहे हैं. इन तीनों संगठनों को ईरान का साथ मिल रहा है. एक प्रकार से ईरान इस्राइल के साथ परोक्ष युद्ध तभी से लड़ रहा है. हालांकि लड़ाई की शुरुआत इस्राइल द्वारा ईरान पर हमले से हुई. इस्राइल का कहना है कि ईरान ने 60 प्रतिशत यूरेनियम संवर्धन कर लिया है और अब वह परमाणु बम बनाने के नजदीक है, तो ऐसी स्थिति में वह हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं रह सकता है.
वह इस बात की प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि ईरान उसके ऊपर एटम बम गिरा दे. ऐसी स्थिति आने से पहले ही ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करना होगा. इसी कारण इस्राइल ने ईरान पर हमला किया. आइइए की आखिरी रिपोर्ट में भी कहा गया है कि ईरान ने 60 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन कर लिया है. यह भी सच है कि ईरान का यूरेनियम संवर्धन हर महीने बढ़ रहा है और वह परमाणु बम बनाने के करीब है. हमारे यहां की भी सरकारों ने यही कहा है कि जब ईरान ने परमाणु हथियार न बनाने की प्रतिबद्धता जतायी थी, तो उसे उस दिशा में आगे नहीं बढ़ना चाहिए.
जहां तक इस युद्ध में अमेरिका के कूदने का प्रश्न है, तो वह युद्ध में शामिल होना नहीं चाहता था. इसका पहला कारण रिपब्लिकन का यह मानना है कि डेमोक्रेट्स लड़ाइयां करवाते हैं, अपने सैनिकों को दूसरे देशों में भेजते हैं, अमेरिकियों को मरवा देते हैं. जबकि रिपब्लिकन ऐसा नहीं करते, न ही करेंगे, वे हर जगह शांति लायेंगे और इसके लिए हरसंभव प्रयास करेंगे. ऐसे में ईरान पर हमले से उनकी यह प्रतिबद्धता पीछे रह जाती. दूसरा, ईरान के पड़ोसी अरब देशों में अमेरिका के बहुत सारे ठिकाने हैं, ऐसे में अमेरिका को डर था कि यदि वह ईरान पर हमला करेगा, तो जवाबी कार्रवाई में ईरान अमेरिकी ठिकानों पर भी हमला करेगा. तीसरा, अमेरिका ने ईरान से पहले इराक में हमला किया, सीरिया में हमला किया, लीबिया में, यमन में हमला किया और उसके बाद ये सभी देश अस्थिर हो गये. यही वह कारण था कि ट्रंप ने कहा कि वे अपने पूर्ववर्ती सरकारों की गलतियां नहीं दोहरायेंगे.
ईरान-इस्राइल युद्ध के बीच ट्रंप की पुतिन के साथ बातचीत भी हुई थी और ट्रंप ने कहा भी था कि वे इस युद्ध में शामिल नहीं होंगे, ईरान और इस्राइल मिलकर इसका समाधान तलाशें. इसके बाद इस्राइल ने अमेरिका से आग्रह किया कि ईरान परमाणु बम बनाने के नजदीक पहुंच चुका है और यदि अमेरिका ईरान पर हमला नहीं करता है, तो ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखेगा. इस्राइल के आग्रह करने पर अमेरिका ने ईरान को 12 दिन का नोटिस दिया कि वह बातचीत करे और शांति स्थापना की दिशा में काम करे. इस बीच अमेरिका ईरान पर हमले की तैयारी शुरू कर चुका था.
अमेरिका के बयान से यह बात साबित हो जाती है कि उसने ईरान पर हमला शांति स्थापित करने के लिए ही किया. क्योंकि अमेरिका की एक रणनीति यह भी रही है कि शांति स्थापित करने के लिए जरूरी है कि आप दूसरे देश को इस बात के लिए राजी करें कि शांति के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है. अमेरिका ने अपने बयान में कहा है कि उसने ईरान पर हमला किया और अब वह चाहता है कि यह युद्ध समाप्त हो. वह और अधिक तबाही नहीं चाहता है. जहां तक युद्धविराम की घोषणा करने की बात है, तो इसे लेकर ट्रंप ने वेबसाइट और सोशल प्लेटफॉर्म पर अपने हालिया बयान में कहा है कि ईरान और इस्राइल, दोनों ने उनसे आग्रह किया कि वे शांति और युद्धिवराम चाहते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि अमेरिका ने ईरान पर हमला किया, पर यह भी सच है कि कतर और ओमान ईरान और इस्राइल के बीच शांति बहाली की पहल कर रहे थे और उनकी कोशिश थी कि अमेरिका उनके झगड़े के बीच में न आये. यह भी सच है कि ईरानी हमले का कतर स्थित अमेरिकी ठिकानों पर कोई असर नहीं पड़ा है. पर कम से कम ईरान अब अपने लोगों से यह तो कह ही सकता है कि उसने अमेरिकी हमले का जवाब दिया.
फिलहाल उम्मीद यही करनी चाहिए कि युद्धविराम विफल नहीं होगा. युद्ध के फिर से शुरू होने की आशंका इसलिए भी नहीं है कि अमेरिका की अपनी घरेलू परेशानियां हैं, रूस और चीन ने भले ही कह दिया है कि वे ईरान का साथ देंगे, पर वे भी घरेलू और बाहरी मोर्चों पर जूझ रहे हैं, और भारत ने तो अपना पक्ष स्पष्ट कर ही दिया है कि वह शांति चाहता है. युद्ध विकल्प इसलिए भी नहीं है, क्योंकि वह पूरे क्षेत्र और, वहां रह रहे दूसरे देश के लोगों को भी अस्थिर कर देगा. युद्ध का जो भय होता है, वह युद्ध से अधिक बड़ा होता है. आप देखिए ना, ईरान-इस्राइल युद्ध शुरू होने के बाद हमारे जो लोग ईरान और इस्राइल में रह रहे थे, उनकी सुरक्षा के लिए हमें उन्हें वहां से निकलवाना पड़ा.
युद्ध के समय इन देशों में रह रहे लोग स्वयं को बेहद असुरक्षित महसूस कर रहे थे. दूसरा, तेल के दाम काफी बढ़ चुके हैं. यदि तेल आपूर्ति में बाधा आती है, तो विशेषज्ञों के मुताबिक, तेल की कीमत प्रति बैरल 150 डॉलर तक जा सकती है. इससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. भारत पर भी इसका काफी प्रभाव पड़ सकता है. इसी से भारत अपनी तरफ से और विकासशील देशों की ओर से पूरी कोशिश करेगा कि युद्ध अब आगे न बढ़े. (बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)