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मानसून के जल्दी आने के नुकसान ज्यादा

जल्दी मॉनसून के कुछ वैश्विक कारक भी हैं. अल नीनो की तरह इनमें से एक मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन हिंद महासागर में बादलों और बारिश को प्रभावित करने वाली एक वैश्विक मौसमी घटना है. इसके अनुकूल चरण मॉनसूनी हवाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकते हैं और मॉनसून को जल्दी ला सकते हैं.

कहते हैं कि जब जेठ तपता है, तब आषाढ़ बरसता है और सावन-भादों में झड़ी लगती है. इस साल जब नौतपा में देश को खूब गर्म होना था, तब बरसात की ऐसी झड़ी लगी, जैसे सावन हो. मौसम वैज्ञानिक विचार करते रहे कि यह मॉनसून-पूर्व बरसात है, लेकिन चुपके से कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल में मॉनसून की बदलियां जल्दी ही धमक गयीं. हमारे देश का अर्थतंत्र और सामाजिक तानाबाना मॉनसून पर निर्भर है. जल्दी बरसात ने भले ही ताप के प्रभाव को कम कर दिया हो, लेकिन यदि जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह मॉनसून अनियमित होता रहा, तो देश के समीकरण गड़बड़ा जायेंगे. इस बार केरल में मॉनसून आठ दिन पहले 24 मई को ही आ गया, जबकि इसकी सामान्य आगमन तिथि एक जून है. मुंबई और कर्नाटक में भी मॉनसून समय से काफी पहले आ गया. मुंबई में मॉनसून की सामान्य आगमन तिथि 11 जून है, जबकि यह 26 मई को आ गया. कर्नाटक में एक से पांच जून की सामान्य तिथि की तुलना में बादलों का डेरा 26 मई को ही आ गया. अरबी शब्द ‘मौसिम’ का अर्थ होता है मौसम और इसी से बना है मॉनसून. अरब सागर में बहने वाली मौसमी हवाओं के लिए अरबी मल्लाह इस शब्द का इस्तेमाल करते थे. अपने यहां खेती-हरियाली और साल भर के जल की जुगाड़ माॅनसूम की इसी बरसात पर निर्भर है.

जलवायु परिवर्तन का गहरा असर, जाहिर है, भारत में अब दिखने लगा है. इसके साथ ही ठंड के दिनों में अलनीनो और दीगर मौसम में ला नीना का असर हमारे मॉनसून-तंत्र को प्रभावित कर रहा है. इस साल बहुत पहले और भयंकर बरसात का प्रमुख कारण समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि माना जा रहा है. अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाने से मॉनसून जल्दी शुरू हो सकता है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे वायुमंडल में नमी बढ़ती है और बादल जल्दी बनते हैं. जैसे-जैसे पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता है, वातावरण में नमी की मात्रा भी बढ़ती है. अनुमान है कि प्रति डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर वातावरण में छह से आठ प्रतिशत नमी बढ़ जाती है. यह बढ़ी हुई नमी मॉनसून की हवाओं को तेजी से सक्रिय कर सकती है.

जल्दी मॉनसून के कुछ वैश्विक कारक भी हैं. अल नीनो की तरह इनमें से एक मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन हिंद महासागर में बादलों और बारिश को प्रभावित करने वाली एक वैश्विक मौसमी घटना है. इसके अनुकूल चरण मॉनसूनी हवाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकते हैं और मॉनसून को जल्दी ला सकते हैं. एक अन्य कारण वैश्विक कारक सोमाली जेट है. मॉरीशस और मेडागास्कर के पास से निकलने वाली एक प्रमुख निम्न-स्तरीय पवन धारा पिछले महीने तीव्र हो गयी. यह जेट अरब सागर के पार केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र सहित भारत के पश्चिमी तट पर नमी से भरी हवा पहुंचाता है. इस साल इसकी असामान्य ताकत मानवजनित प्रभावों के कारण प्रतीत होती है. इंडियन ओशन डायपोल (आइओडी) का पॉजिटिव होना भी एक बड़ा कारण है. यह अरब सागर में नमी के जमाव को बढ़ाता है, जिससे मॉनसूनी हवाएं तेज होती हैं और जो मॉनसून के जल्दी आने का कारण भी बन सकता है.

जल्दी बरसात आने से महानगरों की तैयारी अधूरी रही और चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरू और दिल्ली जैसे शहर डूब-से गये. लेकिन सबसे बड़ा संकट तो किसान का है. किसानी आज भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. किसानों को अक्सर मॉनसून के एक निश्चित समय पर आने की उम्मीद होती है. यदि यह जल्दी आ जाता है, तो वे खेत तैयार करने, बुवाई करने या सही फसल का चुनाव करने के लिए तैयार नहीं हो सकते. यदि बुवाई के बाद अचानक भारी बारिश होती है, तो कोमल पौधे (अंकुरित फसल) नष्ट हो सकते हैं या मिट्टी की ऊपरी परत कठोर हो सकती है, जिससे पौधों के बढ़ने में बाधा आती है. अगर कोई फसल पहले से ही पक चुकी है या कटाई के करीब है और मॉनसून जल्दी आ जाता है, तो भारी बारिश से फसलें खराब हो सकती हैं, उनमें फंगस लग सकता है या वे खेत में ही सड़ सकती हैं. कुछ फसलों को एक निश्चित शुष्क अवधि की जरूरत होती है और जल्दी मॉनसून से उनका सामान्य फसल चक्र बाधित हो सकता है. मई में हुई वर्षा से आम, अनार, संतरा, मीठा नींबू और सब्जियों और बाजरा तथा मक्का को नुकसान पहुंचा है. महाराष्ट्र में खासकर मराठवाड़ा और विदर्भ के उन किसानों को इस बारिश से परेशानी हुई है, जो आगामी खरीफ सीजन के लिए अपने खेत तैयार करने में जुटे थे.

मॉनसून भारत की सामाजिक-आर्थिक खुशहाली में एक महत्वपूर्ण कारक है. सामान्य मॉनसून से किसी भी प्रकार का विचलन दूरगामी परिणाम पैदा कर सकता है, जिसका असर कृषि, ग्रामीण आजीविका, समग्र अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिरता पर भी पड़ सकता है. जल्दी मॉनसून का आना मौसम के पैटर्न में एक व्यवधान का संकेत हो सकता है, जो कृषि से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे तक कई क्षेत्रों में अनपेक्षित और नकारात्मक परिणाम पैदा कर सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

पंकज शुक्ल
पंकज शुक्ल
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक

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