Monsoon Session: आज से शुरू हो रहा संसद का मॉनसून सत्र हंगामा भरा होगा. हालांकि फिलहाल सत्ता पक्ष का प्रबंधन कौशल मजबूत दिखाई देता है. अगर जून में संसद का विशेष सत्र बुलाया जाता, जैसा कि इंडिया गठबंधन मांग कर रहा था, तब सरकार को पहलगाम हमले, खुफिया चूक और सुरक्षा चूक पर सरकार को जवाब देना पड़ता. वह स्थिति सरकार के लिए बहुत असहज करने वाली होती, लेकिन उसने तब सत्र न बुला कर एक तरह से खुद को बचा लिया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद जो संसदीय प्रतिनिधिमंडल बाहर भेजे गये थे, उसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समर्थन से ज्यादा घरेलू समर्थन हासिल करना था. भेजे गये प्रतिनिधिमंडलों के जरिये सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत की. फिर प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं ने भी, जिनके जरिये ग्लोबल साउथ को महत्व मिला, खुद उनकी और सरकार की छवि मजबूत की. संसद सत्र की रणनीति तैयार करने के लिए पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के निवास पर वरिष्ठ मंत्रियों की एक बैठक हुई. माना यही जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दोनों सदनों में मोर्चा संभालेंगे.
विपक्ष कई सारे मुद्दे उठायेगा
इस सत्र में विपक्ष कई सारे मुद्दे उठायेगा. मसलन, बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किये गये एसआइआर यानी स्पेशल इंटेसिव रिवीजन, संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा पचहत्तर की उम्र में रिटायर होने का मुद्दा, एयर इंडिया विमान हादसा, जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लाया जा रहा महाभियोग, विदेश नीति आदि-आदि. पहलगाम हमला अब उतना बड़ा मुद्दा रहा नहीं. बेशक पुलवामा के बाद बालाकोट पर जवाबी कार्रवाई करने का सरकार को जैसा रणनीतिक लाभ मिला था, वैसा लाभ इस बार नहीं मिला है, लेकिन इस मामले में विपक्ष के लिए बहुत हमलावर होने की गुंजाइश नहीं है. हालांकि अब ट्रंप ने भारत-पाक संघर्ष के दौरान चार-पांच जेट विमानों के गिराये जाने की जो बात कही है, विपक्ष सरकार से उस बारे में सवाल पूछ सकता है, जबकि विपक्षी दलों का एकजुट न होना सत्तापक्ष के लिए राहत की बात है. विपक्ष हंगामा करने की बजाय नियम के तहत अपनी बात रखे, तो वह ज्यादा अच्छा होगा. यूं तो सदन में व्यवस्था बनाये रखना सत्तापक्ष की जिम्मेदारी है.
सत्तापक्ष ने सत्र के लिए बढ़िया होमवर्क किया
सत्तापक्ष ने इस सत्र के लिए बढ़िया होमवर्क किया है, जैसा कि वह अमूमन करता आया है. उसे मालूम है कि इस सत्र में बिहार में चुनाव आयोग की कवायद और भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष रोकने के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दावे पर विपक्ष ज्यादा हमलावर होगा. पहलगाम हमले के बाद जब विपक्षी इंडिया गठबंधन संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग कर रहा था, तब सरकार ने अचानक ही मॉनसून सत्र की तारीखों की घोषणा कर दी. पहली बार लगभग चालीस दिन पहले संसद के किसी सत्र की घोषणा सरकार की तरफ से की गयी, जबकि आमतौर पर घोषणा इतनी जल्दी नहीं की जाती. देखने वाली बात यह भी है कि इस बार सत्र 15 अगस्त के बाद भी जारी रहने वाला है. इस सत्र में सत्तापक्ष ने आठ नये विधेयक पारित कराने की बात कही है. इनमें नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल भी है और नया आयकर विधेयक भी, जबकि कुछ पुराने विधेयक फिर से पेश किये जायेंगे. यह भी सच है कि किसी बिल को पारित कराने में सरकार को परेशानी नहीं आयेगी. सरकार ने मॉनसून सत्र की अवधि जिस तरह बढ़ायी है, उससे यह अंदेशा है कि सरकार शायद कोई नया चौंकाने वाला बिल भी पेश करे.
सत्र में विपक्ष हमलावर होगा
उम्मीद यह है कि इस सत्र में विपक्ष हमलावर होगा, क्योंकि सरकार को असहज करने के लिए कई सारे मुद्दे हैं. हालांकि विपक्ष अपने ही अंदरूनी दबावों से परेशान दिखता है. इंडिया गठबंधन की आखिरी बैठक इस साल पांच जून को ऑपरेशन सिंदूर पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग को लेकर हुई थी. उससे पहले इंडिया गठबंधन की बैठक पिछले साल जून में लोकसभा चुनाव को लेकर हुई थी. अब मॉनसून सत्र से पहले विपक्ष की बैठक हुई भी, तो वर्चुअल हुई. आमने-सामने की बैठक और वर्चुअल बैठक में बहुत फर्क होता है. इससे विपक्ष की तरफ से फ्लोर मैनेजमेंट के मामले में बहुत उम्मीद नहीं जगती. विपक्ष की बैठक से पहले आम आदमी पार्टी ने इंडिया गठबंधन और कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाया. याद रखना चाहिए कि लोकसभा चुनाव के बाद से ही ‘आप’ इंडिया गठबंधन से अलग रास्ते पर चल रही है. दरअसल ‘आप’ के सामने अंदरूनी चुनौतियां हैं, जिससे वह उबरने की कोशिश में है. दिल्ली में पराजय के बाद ‘आप’ खुद को मजबूती से जोड़ने की कोशिश कर रही है. भाजपा ने दिल्ली की सत्ता से ‘आप’ को भले ही बाहर कर दिया, पर वह भी चाहती है कि ‘आप’ का अस्तित्व बना रहे. दो साल बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ‘आप’ वहां चुनाव लड़ेगी, तो कांग्रेस को नुकसान पहुंचायेगी, जिसका लाभ भाजपा को होगा.
कांग्रेस की बेहतरी के लिए राहुल गांधी को सक्रिय होने की जरूरत है
जहां तक कांग्रेस की बात है, तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से राहुल गांधी की बेहतर छवि बनी थी, फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन से उसे बल मिला था, लेकिन उसके बाद के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने वह लय खो दी. फिलहाल वह कर्नाटक में सिद्धारमैया-शिवकुमार विवाद और केरल में शशि थरूर मामले के कारण बैकफुट पर है. हालांकि कांग्रेस नेतृत्व ने इस बारे में स्पष्ट नहीं किया है कि क्या सचमुच कर्नाटक में मुख्यमंत्री का कार्यकाल ढाई-ढाई साल बांटे जाने पर सहमति बनी थी. अगर ऐसा हुआ था, तो उससे मूर्खतापूर्ण बात कुछ और नहीं हो सकती. हमने देखा है कि कहीं भी ऐसे फैसलों पर अमल नहीं हो पाया. बेहतर होता कि कांग्रेस नेतृत्व इसका हल निकालने में तत्पर दिखता. इसी तरह केरल में शशि थरूर को बड़ी जिम्मेदारी देना वक्त का तकाजा है. पता नहीं क्यों, कांग्रेस में भी थरूर के भाजपा में जाने की अफवाह को बल मिला, जबकि भाजपा थरूर को अपनी पार्टी में नहीं लेने वाली, क्योंकि इससे खुद उसकी किरकिरी होगी. कांग्रेस की बेहतरी के लिए राहुल गांधी को सक्रिय होने की जरूरत है. सरकार के सामने चुनौतियां बहुत हैं. अगर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल एकजुट होते हैं, तो सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं, लेकिन विपक्ष की स्थिति देखकर बहुत उम्मीद नहीं है. विपक्ष के सामने खुद को एकजुट रखने की चुनौती ज्यादा बड़ी है.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)