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बढ़ती चुनौतियों से एमएसएमइ को बचाने की जरूरत

टैरिफ वार से एमएसएमइ क्षेत्र को जो झटके लग रहे हैं, उससे इसे उबारने के लिए एमएसएमइ के समक्ष दिखाई दे रही चुनौतियों के समाधान के लिए रणनीति बनाकर निर्यातकों को सहारा देना होगा.

इन दिनों देश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमइ) से संबंधित रिपोर्टों में एमएसएमइ की बढ़ती मुश्किलों पर टिप्पणियां करते हुए इन्हें बढ़ती चुनौतियों से बचाने की जरूरत बतायी जा रही है. हाल ही में प्रकाशित सिडबी की रिपोर्ट के अनुसार, अभी एमएसएमइ के लिए सरल कर्ज की प्राप्ति बड़ी चुनौती बनी हुई है. एमएसएमइ की क्रेडिट मांग व पूर्ति में 30 लाख करोड़ रुपये का अंतर है. मांग के मुताबिक लोन मिलने पर एमएसएमइ के तहत पांच करोड़ नये रोजगार के अवसर निर्मित होंगे. नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे उद्योगों को जरूरत के अनुसार क्रेडिट, तकनीकी कौशल तथा विकास एवं अनुसंधान के क्षेत्र में मदद मिल जाए, तो एमएसएमइ रोजगार और आर्थिक विकास का बड़ा साधन बन सकते हैं.

एमएसएमइ मंत्रालय के उद्यम पोर्टल पर इस वर्ष मार्च तक पंजीकृत 6.2 करोड़ एमएसएमइ 25.95 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं. देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एमएसएमइ का योगदान करीब 30 प्रतिशत है. एमएसएमइ ने 2024-25 में करीब 12.39 लाख करोड़ रुपये का निर्यात किया है. देश से निर्यात किये गये कुल उत्पादों में से करीब 46 प्रतिशत एमएसएमइ क्षेत्र से हैं. भारत ने हाल ही में इंग्लैंड के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) किया है. अमेरिका के अतिरिक्त अन्य कई प्रमुख देशों के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के पूर्ण होने पर एमएसएमइ की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. अतएव, नये अवसरों का लाभ उठाने के लिए एमएसएमइ को प्रोत्साहन देकर मजबूत बनाना जरूरी है. यद्यपि, अमेरिका से टैरिफ की चुनौती के बीच अमेरिका द्वारा भारत पर लगाये गये 26 प्रतिशत टैरिफ पर 90 दिनों के विराम ने एमएसएमइ को कुछ राहत अवश्य दी है. पर अमेरिकी बाजार पर निर्भर अधिकांश एमएसएमइ निर्यातक अमेरिकी खरीदारों द्वारा छूट की नयी मांग और अनुबंधों पर नये सिरे से बातचीत और भुगतान में देरी जैसी चुनौतियों से बचाव के लिए सरकार का रणनीतिक सहयोग जरूरी मान रहे हैं. कुछ दिनों पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस पर अपने संबोधन में कहा था कि नये व्यापार युग के बदलाव के दौर में भारत के एमएसएमइ के पास चुनौतियों के बीच दुनिया में आगे बढ़ने के ऐतिहासिक अवसर भी हैं और ये उद्योग वैश्विक आपूर्ति शृंखला में प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं.

इसमें कोई दो मत नहीं है कि टैरिफ वार से एमएसएमइ क्षेत्र को जो झटके लग रहे हैं, उससे इसे उबारने के लिए एमएसएमइ के समक्ष दिखाई दे रही चुनौतियों के समाधान के लिए रणनीति बनाकर निर्यातकों को सहारा देना होगा. वहीं इस क्षेत्र के उद्यमियों और निर्यातकों को भी नयी चुनौतियों के मद्देनजर तैयार होना होगा. इस परिप्रेक्ष्य में यह बात महत्वपूर्ण है कि सरकार निर्यातकों को सहारा देने के लिए 2,250 करोड़ रुपये के निर्यात संवर्धन मिशन को तेजी से लागू करने और बिना रेहन के कर्ज दिये जाने की योजना बना रही है. इतना ही नहीं, चालू वित्त वर्ष 2025-26 में एमएसएमइ को दिये जाने वाले कर्ज का लक्ष्य पिछले वर्ष की तुलना में करीब 20 प्रतिशत बढ़ाकर 17.5 लाख करोड़ रुपये किया गया है. एमएसएमइ क्षेत्र भी नवाचार, प्रतिस्पर्धा, क्षमता में सुधार तथा शोध की डगर पर आगे बढ़ने की तैयारी कर रहा है. एमएसएमइ के लिए निर्मित होने वाली विभिन्न चुनौतियों के मद्देनजर वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में एमएसएमइ सेक्टर को मजबूत करने के उद्देश्य से बहुआयामी उपायों की एक शृंखला प्रस्तुत की गयी. इसके तहत वित्तीय सहायता और खरीद नीतियों से लेकर क्षमता निर्माण और बाजार एकीकरण तक की पहलें शामिल हैं. प्रमुख पहलों में उद्यम पंजीकरण पोर्टल, पीएम विश्वकर्मा योजना, पीएमइजीपी, स्फूर्ति और एमएसइ के लिए सार्वजनिक खरीद नीति शामिल हैं, जिनका उद्देश्य उद्यमिता को प्रोत्साहन देना, रोजगार बढ़ाना और अनौपचारिक क्षेत्रों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत करना है. परंतु पाकिस्तान से युद्ध के माहौल और ट्रंप के टैरिफ तूफान का मुकाबला करने और निकट भविष्य में निर्मित होने वाले उभरते अवसरों को मुट्ठी में लेने के मद्देनजर एमएसएमइ को हरसंभव उपाय से मजबूत बनाना होगा.

बुनियादी ढांचे की मजबूती, अधिक लॉजिस्टिक्स सुविधाएं, कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराये जाने, ब्याज समतुल्य योजना को फिर से शुरू किये जाने तथा ऋण गारंटी कार्यक्रमों का विस्तार करने जैसे उपायों से एमएसएमइ को वित्तीय राहत और स्थिरता प्रदान की जा सकती है. सरकार द्वारा एमएसएमइ को जीएसटी के परिपालन में आ रही कठिनाइयों पर ध्यान देते हुए जीएसटी व्यवस्था को सरल बनाना होगा. एमएसएमइ के हित में उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजनाओं का विस्तार किये जाने से विशेष रूप से निर्यात उन्मुख एमएसएमइ लाभान्वित होंगे. भारत के एमएसएमइ गुणवत्ता के साथ समकालीन डिजिटल तकनीकों को अपनाते हुए अमेरिका सहित वैश्विक बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को रणनीतिक रूप से बढ़ाएं, इस ओर भी ध्यान देना होगा. ऐसे विभिन्न उपायों से भारत टैरिफ की चुनौतियों को एमएसएमइ के लिए नये अवसरों में बदल सकता है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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