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मील का पत्थर बनेगी नयी खेल नीति, पढ़ें मीर रंजन नेगी का लेख

National Sports Policy : सरकार ने एक और महत्वपूर्ण पहलू को नीति में शामिल किया है और वह है देश में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खेलों के आयोजन का प्रयास करना. सरकार के इस कदम से खेलों को देश में खूब उछाल मिलेगा.

National Sports Policy : भारत को खेलों की महाशक्ति बनाने के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में राष्ट्रीय खेल नीति (एनएसपी), 2025 को मंजूरी दी है. यह खेल नीति जिन पांच स्तंभों पर आधारित है, वे बेहद महत्वपूर्ण हैं और उन पर बहुत सूक्ष्मता से विचार किया गया है. नयी खेल नीति के जरिये एक तरह से खेलों के महाकुंभ (2036 की ओलिंपिक) की तैयारी का बिगुल फूंका गया है. हमारा देश जब एक समृद्ध राष्ट्र के रूप में उभर कर आ रहा है, तो अपनी प्रतिष्ठा को और बढ़ाने के लिए ओलिंपिक समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में अधिक से अधिक पदक लाना बहुत आवश्यक है.


मुझे लगता है कि खेलों में बहुत अच्छा करने के लिए हमें स्कूलों में, ग्रामीण क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत अधिक खर्च करने की जरूरत है. ओडिशा इसका बहुत अच्छा उदाहरण है. सबसे जरूरी है इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना, तभी आप अच्छे खिलाड़ी तैयार कर पायेंगे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर कर पायेंगे. हमें प्रतिभा खोज की प्रक्रिया में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता है. आज के समय में जो स्पोर्ट्स एकेडमी हैं, वहीं से सारे खिलाड़ी निकलते हैं. तो एकेडमियों की संस्कृति को प्रमोट करने की बहुत जरूरत है, जैसे इन्हें संरक्षण देना, इनकी अच्छी तरह निगरानी करना. इन सबके लिए पैसों की जरूरत पड़ेगी. सरकार को खेल बजट बढ़ाने की आवश्यकता है. हालांकि पहले की तुलना में आज खेल बजट कहीं अधिक है. खिलाड़ियों को कई सुविधाएं भी मिल रही हैं. टूर्नामेंट जीतने पर भी पैसे मिल रहे हैं. इन सबके बावजूद खेल बजट में और वृद्धि करनी होगी.


एक और जरूरी बात. देश में बहुत सारे खेल एसोसिएशन हैं, जो खुद को ऑटोनॉमस (स्वायत्त) बॉडी समझते हैं, जबकि पैसा वे सरकार से लेते हैं, जगह सरकार की इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अपनी मनमानी चलाते हैं. इन पर सरकार का अंकुश रहना बहुत जरूरी है. नयी राष्ट्रीय खेल नीति के आने से खेलों में पारदर्शिता बढ़ेगी. सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी और कॉरपोरेट-सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी (सीएसआर) के जरिये फंड जुटाने की बात भी कही गयी है.

ध्यान दिया जाना चाहिए कि सीएसआर के तहत जो फंड खिलाड़ियों पर, खेलों पर खर्च करना है, उनमें किसी तरीके का कोई घालमेल कंपनियां न करें. कई कंपनियां इस फंड में गड़बड़ी करती हैं. ये सारी चीजें बहुत पारदर्शिता लेकर आयेंगी. नीति में स्टार्ट-अप और उद्यमिता को बढ़ाने देने की बात भी सराहनीय है. अपने देश में खेल अब एक ऐसे मुकाम पर आ गया है, जहां पर उसे एक पेशे के रूप में भी लिया जा सकता है. देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो खेलों में स्टार्ट-अप और उद्यमिता शुरू कर रहे हैं. ऐसा बड़े से लेकर छोटे स्तर तक पर हो रहा है. जब सरकार इस तरह की चीजों को बढ़ावा देगी, तो ऐसे और भी बहुत से लोग आगे आयेंगे. खेलों को लेकर एक बेहतर माहौल तैयार होगा. हालांकि इसके लिए सरकार को लालफीताशाही पर लगाम लगानी होगी.


सरकार ने एक और महत्वपूर्ण पहलू को नीति में शामिल किया है और वह है देश में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खेलों के आयोजन का प्रयास करना. सरकार के इस कदम से खेलों को देश में खूब उछाल मिलेगा. जब भी देश में कोई अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन होता है, तो खिलाड़ियों को विश्व स्तर पर कैसे खेलना है, इस तकनीक का पता चलता है. नयी पीढ़ी में खेलों से जुड़ने का उत्साह पैदा होता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों के साथ खेलते हुए हमारे खिलाड़ियों की तैयारी भी बेहतर होती है, उनके भीतर एक आत्मविश्वास आता है. हॉकी इंडिया लीग जब भारत में शुरू हुई थी, तब उसमें विदेशी खिलाड़ियों ने भी भागीदारी की थी, उन्हीं लीग मैचों ने हमारे लिए ओलिंपिक पदक जीतने का रास्ता तैयार किया था.

नयी नीति में सामाजिक समावेशन पर भी जोर दिया गया है. जब समावेशन होगा, तो सभी वर्गों-क्षेत्रों के लोगों को खेलों में भागीदारी का मौका मिलेगा. यहां मैं एक बात और कहना चाहता हूं. देश में अधिकांश खिलाड़ी ग्रामीण क्षेत्रों से निकलते हैं और वे बेहतर करते हैं, क्योंकि उनके अंदर कुछ कर दिखाने की भूख होती है. उनकी आंखों में एक सपना होता है कि खेल में बेहतर करेंगे, तो उनको अच्छी नौकरी मिल जायेगी और इन्हीं में से कुछ खिलाड़ी जब देश के लिए खेलते हैं, तो उनको जीतने के बाद में ढेर सारे पैसे और अच्छी नौकरी मिलती है. वे देशभर में प्रेरणास्रोत बन जाते हैं और उन्हें देखकर दूसरे लोग भी खेलों से जुड़ते हैं. ऐसी खेल प्रतिभाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की जरूरत है. नयी खेल नीति में यह माद्दा है.


खेलों को शिक्षा से जोड़ने की बात भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. जब खेल शिक्षा से जुड़ेगा, तो विद्यार्थी न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ व मजबूत बनेंगे. इससे बच्चों का समग्र विकास हो सकेगा, पर इसके लिए जरूरी है कि सरकार की नीति का अच्छी तरह से शिक्षा के साथ समावेशन किया जाए. सरकार को यह नियम सरकारी के साथ-साथ निजी विद्यालयों के लिए भी लागू करना होगा. उन्हीं निजी स्कूलों को खोलने की मान्यता मिलनी चाहिए, जिनके पास खेल के मैदान हों, बेहतर खेल इंफ्रास्ट्रक्चर हो. खिलाड़ियों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने की भी जरूरत है. इसके लिए खेल संस्थाओं, खेल से जुड़े इवेंट आदि में खिलाड़ियों को प्राथमिकता देने की जरूरत है. हम चाहते हैं कि हमारा देश आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में ज्यादा से ज्यादा पदक जीते. उसके लिए नयी खेल नीति मील का पत्थर साबित होगी. वर्ष 2047 तक शीर्ष पांच या छह खेल राष्ट्रों में भारत के शामिल होने की राह यहीं से होकर निकलेगी.


हालांकि इसके लिए सरकार को एक और काम करना होगा. वह है, आलिंपिक में होने वाले अधिक से अधिक खेल और इवेंट में भारत भाग ले. ओलिंपिक में कुल 32 खेल और 329 इवेंट्स होते हैं, जिनमें से भारत केवल 16 खेलों के 69 इवेंट में भाग लेता है. भारत को यदि अपने पदकों की संख्या बढ़ानी है, तो उसे अधिक से अधिक खेल और उसके इवेंट में भाग लेना होगा. इसके लिए सरकार को देश में उन खेलों के प्रमोशन पर भी ध्यान देना होगा, जिनमें भारत शामिल नहीं होता है.
(फिल्म ‘चक दे इंडिया’ लेखक के जीवन पर आधारित है.)
(बातचीत पर आधारित)

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