Air Pollution : आइआइटी, दिल्ली, अंतराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान, मुंबई तथा ब्रिटेन व आयरलैंड के संस्थानों के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 और दूरसंवेदी आंकड़ों का अध्ययन कर भारत में गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से प्रसव पर पड़ने वाले परिणामों का विश्लेषण कर जो रिपोर्ट तैयार की है, वह वाकई बहुत चौंकाने वाली है. यानी वायु प्रदूषण के इलाकों में नवजात बच्चे इसके असर के साथ पैदा होते हैं.
टीम ने पाया कि गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण वृद्धि से कम वजन के बच्चे पैदा होने की आशंका पांच प्रतिशत और समय से पहले बच्चों के पैदा होने की आशंका 12 फीसदी तक बढ़ जाती है. जबकि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 (सूक्ष्म कण प्रदूषण) के अधिक संपर्क में रहने से कम वजन वाले बच्चे पैदा होने की आशंका 40 फीसदी तथा समय से पहले प्रसव की आशंका 70 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. अध्ययन के मुताबिक, भारत के उत्तरी जिलों में रहने वाले बच्चे वायु प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं. रिपोर्ट में शैक्षिक और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं तो स्पष्ट दिखीं ही.
इसके अलावा कम वजन वाली माताओं में कम वजन के पैदा होने वाले बच्चों की दर 22 प्रतिशत और समय पूर्व प्रसव की दर सबसे अधिक 13 फीसदी पायी गयी. जबकि सामान्य वजन वाली महिलाओं में यह दर क्रमश: 17 और 12 प्रतिशत थी. अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक, ऊपरी गंगा क्षेत्र में, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य हैं, पीएम 2.5 प्रदूषकों का स्तर अधिक है. गौरतलब है कि पीएम 2.5 को सबसे हानिकारक वायु प्रदूषक माना जाता है. जबकि देश के दक्षिणी और उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में इसका स्तर कम है.
समय से पूर्व जन्म के मामले हिमाचल (39 फीसदी), उत्तराखंड (27 फीसदी), राजस्थान (18 प्रतिशत) और दिल्ली (17 फीसदी) में सबसे अधिक, जबकि मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा में सबसे कम सामने आये हैं. ऐसे ही, जन्म के समय वजन मानक से कम होने के मामले पंजाब में सबसे अधिक (22 प्रतिशत) पाये गये. फिर दिल्ली, दादरा और नगर हवेली, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का स्थान आता है. अनुसंधानकर्ताओं ने यह तो पाया ही कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों का प्रदर्शन कहीं बेहतर है, इस अध्ययन के आधार पर उन्होंने खासकर उत्तर भारत में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को तेज करने की मांग भी की.