Old Vehicle Policy Delhi : दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए पुरानी गाड़ियों पर सरकार सख्त हो गई है. 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों को सड़कों से हटाया जा रहा है. ऐसे वाहनों का दाना-पानी बंद हो चुका है. कहने का मतलब है कि उन्हें पेट्रोल-डीजल नहीं दिया जा रहा है. पेट्रोल पंप पर खास कैमरे लगाए गए हैं, जो नंबर प्लेट से ही गाड़ी की उम्र पता कर लेते हैं. वहां पुलिस भी मुस्तैद है जो निर्धारित उम्र से पुरानी गाड़ियों को सीधे कब्रिस्तान यानी स्क्रैप के लिए ले जाती है. फिर भले ही मालिक इसके लिए तैयार हो या नहीं. इसके अलावा, दूसरे राज्यों से ऐसे वाहन राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश न कर पाएं इसकी भी व्यवस्था की गई है. कुल मिलाकर प्रदूषण के नाम पर पुराने वाहनों की बलि ली जा रही है. यहां ‘बलि’ शब्द का इस्तेमाल इसलिए जायज है, क्योंकि आम ग्राहकों के हित का सोचे बिना सरकार ने यह कदम उठाया है. शुरुआत से ही इस मुद्दे पर लोगों की भावनाओं और हितों की अनदेखी की जाती रही है.
सरकार ने फरमान जारी कर दिया है कि 15 और 10 पुराने वाहन दिल्ली में नहीं दौड़ने चाहिए. आमतौर पर जब कोई गाड़ी खरीदता है, तो यह सोचकर नहीं खरीदता है कि उसे चार या पांच साल में डिस्पोज कर देगा. कई लोगों के लिए कार उनकी भावनाओं से जुड़ी होती है. रजिस्ट्रेशन की मियाद खत्म होने के बाद उसे रिन्यू करने का नियम इसलिए ही बनाया गया है कि लोग 10 या 15 साल बाद भी अपने वाहनों को रख सकें. आमतौर पर जब कोई नया नियम या कानून बनता है, तो उसे भविष्य या वर्तमान से लागू किया जाता है, अतीत से नहीं. लेकिन गाड़ियों के मामले में सरकार अतीत में चली गई. क्या ये जायज है? यह कहना गलत नहीं होगा कि इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) और सुप्रीम कोर्ट ने भी निराश किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिल्ली में डीजल वाहनों की उम्र 10 साल और पेट्रोल की 15 साल निर्धारित की थी. इससे पहले, 2014 में NGT ने दिल्ली में पुराने वाहनों के सड़कों पर दौड़ने और पब्लिक एरिया में पार्क करने पर रोक लगाई थी. तब से अब तक दिल्ली सरकार सोती रही और अब उसे सख्ती की याद आई है. दिल्ली के संबंध में NGT के नियम हैं कि पुराने पेट्रोल-डीजल वाहनों को सड़क पर दौड़ाया या पब्लिक एरिया में पार्क नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं, यदि पुलिस या परिवहन विभाग ऐसे वाहनों को जब्त करता है, तो उन्हें कबाड़ के तौर पर नष्ट किया जा सकता है. इस तरह के नियम और आदेश उस व्यक्ति के दिलों-दिमाग पर क्या असर डालते हैं, जिसने एक-एक पाई जोड़कर गाड़ी खरीदी, सरकारी तंत्र नहीं समझ सकता.
बताया जा रहा है कि सरकार ने 15 साल से पुरानी गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया है, क्या इस सूरत में सरकार उनके द्वारा भरे गए टैक्स को वापस करेगी? अभी इस संबंध में भी लोग गफलत में हैं कि जो वाहन अपनी उम्र की आखिरी दहलीज पर हैं, यानी जिन्हें 15 या 10 साल पूरे होने वाले हैं, क्या उन्हें फ्रीली दौड़ने दिया जाएगा? इस बारे में सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. हालांकि, स्पष्टीकरण से वाहन मालिकों को कोई राहत तो नहीं मिलेगी, लेकिन इतना जरूर साफ हो जाएगा कि सरकार की मंशा क्या है.
बात अगर प्रदूषण की है, तो फोकस केवल उसी पर होना चाहिए. वाहन की उम्र पर नहीं. सड़क पर दौड़ने वाले कई नए वाहन ऐसे मिल जाएंगे, जो प्रदूषण की निर्धारित सीमा को मुंह चिढ़ा रहे हैं, फिर पुराने वाहनों पर रोक से समस्या कैसे हल होगी? होना यह चाहिए कि जो वाहन प्रदूषण नहीं कर रहे हैं, भले नए हों या पुराने उन्हें सड़कों पर दौड़ने की अनुमति मिले. गाड़ी प्रदूषण करेगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस तरह से मेंटेन किया जाता है. कई लोगों की पुरानी गाड़ी भी नई को मात देती है, ऐसे में उन्हें बेवजह सरकारी व्यवस्था का शिकार होना पड़ रहा है. यह मामला फिलहाल अदालत में है और याचिकाकर्ता उसे आम वाहन मालिक का दर्द समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
(लेखक विश्लेषक एवं चिंतक हैं)