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आतंक के खिलाफ सफल रहा ऑपरेशन सिंदूर, पढ़ें अजय साहनी का लेख

पहलगाम हमले के बाद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने का भारतीय अभियान बहुत सफल साबित हुआ. पिछली स्ट्राइक के विपरीत हमारी सेना ने पाकिस्तान के पंजाब में आतंकी ठिकानों को जिस तरह निशाना बनाया, उससे आतंकी संगठनों, आइएसआइ, फौज और वहां की सरकार को भी समझ में आ गया होगा कि भारत आतंकियों और उनके ठिकानों को खत्म करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.

अजय साहनी

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम पर सहमति बन जाना तय ही था. इस संघर्ष के शुरू होने के बाद से ही मैं कहता आ रहा था कि यह ज्यादा समय तक नहीं चलने वाला. संघर्षविराम पर सहमति बनने के बाद पाकिस्तान ने जिस तरह इसका उल्लंघन किया, उस पर भी हैरान होने की जरूरत नहीं है. यह पाकिस्तान का स्वभाव रहा है. लेकिन मूल बात यह है कि दोनों ही देश युद्ध नहीं चाहते. अब तक जो कुछ दिखा है, उसे सूचना युद्ध या इनफॉरमेशन वार ही कह सकते हैं. दरअसल दोनों ही देश कार्रवाई करने के जरिये अपनी जनता को बताना और आश्वस्त करना चाहते थे. भारत ने तो शुरू से ही स्पष्ट कह दिया था कि वह उकसावे वाली कार्रवाई नहीं करेगा. वह सिर्फ आतंकी ठिकानों को निशाना बनायेगा. बाद में पाकिस्तान की देहभाषा भी बदलने लगी और दोनों देश संघर्षविराम के लिए सही मौके की तलाश में थे, ताकि इसकी घोषणा करते हुए अपनी जीत या बढ़त के दावे करें.

इसके बावजूद इस घटनाक्रम में बहुत सारे तथ्य ऐसे हैं, जिनकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए. पहलगाम हमले के बाद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने का भारतीय अभियान बहुत सफल साबित हुआ. पिछली स्ट्राइक के विपरीत हमारी सेना ने पाकिस्तान के पंजाब में आतंकी ठिकानों को जिस तरह निशाना बनाया, उससे आतंकी संगठनों, आइएसआइ, फौज और वहां की सरकार को भी समझ में आ गया होगा कि भारत आतंकियों और उनके ठिकानों को खत्म करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. हालांकि अगर हमने ठोक-बजाकर हमला न करके बाद में कभी अचानक से किया होता, तो मारे जाने वाले आतंकवादियों की संख्या कहीं ज्यादा होती. हमने जवाबी कार्रवाई के तहत आतंक के नौ ठिकाने चुने जरूर, लेकिन ज्यादातर जगहों में आतंकी संगठनों का माली नुकसान ही हुआ, जानें कम गयीं. ज्यादातर जगहों में हमें आतंकी ढांचे को गिराने में ही सफलता मिली. इससे पाकिस्तान में आतंकवाद के खात्मे की उम्मीद करना कुछ ज्यादा ही होगा. इस संदर्भ में अमेरिका का उदाहरण लिया जा सकता है. आतंकवाद के खिलाफ अपने वैश्विक अभियान में अमेरिका ने वर्षों तक पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाया. ड्रोन तथा मिसाइलों से हजारों ऑपरेशनों के जरिये उसने आतंकियों और उनके ठिकानों को निशाना बनाया. लेकिन इससे महाशक्ति देश को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ. आतंकवाद के खिलाफ अपने अभियान में उसने पाकिस्तान को अपने साथ लिया था और उसकी आर्थिक मदद भी की थी. जब अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश पाकिस्तान को आतंक मुक्त नहीं कर पाया, वहां की सेना की सोच नहीं बदल पाया, तो भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को नष्ट कर वहां आतंकवाद को मिटा देने का संकल्प कुछ ज्यादा ही उम्मीद करना है. इससे तात्कालिक तौर पर भले आतंकवाद में कुछ कमी आये, पर दीर्घावधि में बहुत बदलाव आयेगा, इसकी उम्मीद कम ही है.

इसके बावजूद मेरा यह मानना है कि बहावलपुर, मुरीदके और दूसरी जगहों के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करना भारत की एक बड़ी सफलता है. इससे होगा यह कि आतंकी सरगना इन जगहों में निश्चिंत होकर नहीं बैठ सकेंगे. उन्हें बार-बार जगह बदलनी पड़ेगी. और इसका उनके अभियानों पर फर्क तो पड़ेगा ही. इसके अलावा आतंकी संगठनों और उनके प्रायोजकों को यह भी बखूबी मालूम है कि भारतीय सेना जब बहावलपुर और मुरीदके स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बना सकती है, तो आतंकवाद के दूसरे केंद्रों को भी उसी तरह निशाना बना सकती है. इसकी वजह यह है कि भारत के पास सैन्य और तकनीकी क्षमता पाकिस्तान की तुलना में कहीं अधिक है. लिहाजा हम यह उम्मीद तो कर सकते हैं कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का असर पाक प्रायोजित आतंकवादी संगठनों पर असर पड़ेगा. लेकिन यह इस पर भी निर्भर करेगा कि पाक फौज आतंकवाद को पहले ही तरह मदद देना जारी रखती है या नहीं. अगर पाक फौज का दबाव बढ़ता है, तो बिल्कुल मुमकिन है कि आतंकी अभियानों में कमी आये. लेकिन इसका उल्टा भी हो सकता है. आखिर मसूद अजहर ने कहा ही है कि अपने लोगों की मौत का बदला वह लेगा. फिर हाल के दौर में बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तानी फौज की जैसी किरकिरी हुई है, उसे देखते हुए उसके खामोश बैठे रहने की उम्मीद कम ही है. अपना महत्व बनाये रखने के लिए वह खुराफात करेगा. लिहाजा सब कुछ पाकिस्तान के रवैये पर निर्भर करता है कि वह आगे क्या करता है.

आतंकवाद के खिलाफ इस संघर्ष में हमें एक बार फिर यह एहसास हुआ कि दुनिया आतंकवाद के विरोध की बात करती जरूर है, लेकिन इसके खिलाफ लड़ाई में सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं. भारत के हमले में जिस मसूद अजहर के परिजन मारे गये, और जो अब बदला लेने की बात कर रहा है, उसे बचाने के लिए चीन ने क्या किया, यह सबको मालूम है. जो एफएटीएफ आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करता है, उसी ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया. अभी जब पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को भारत निशाना बना रहा था, ठीक तभी आइएमएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसे आर्थिक मदद देने का एलान किया, जबकि भारत कह रहा था कि इस धनराशि का उपयोग पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों में करेगा. इसी तरह खाड़ी देशों से हमारे रिश्ते निरंतर मजबूत होते जा रहे हैं, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में ओआइसी पाकिस्तान के खिलाफ नहीं दिखा, न ही हमारे समर्थन में आया. खुला समर्थन कोई देश नहीं देता. ऐसा समर्थन तभी मिल सकता है, जब आपका किसी देश के साथ सैन्य गठबंधन हो. हालांकि संकट के समय हमेशा सिर्फ एक देश-यानी सोवियत रूस हमारे साथ खड़ा रहा है. इस बार के संघर्ष में भी उसकी मदद हमारे काम आयी. लेकिन रूस अब जिस स्थिति में है, और जिन मुश्किलों का वह सामना कर रहा है, उसमें वह चाहकर भी भारत की मदद नहीं कर सकता. इससे यही स्पष्ट होता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हमें अकेले ही लड़नी पड़ेगी. वैसे भी भारत एक उभरती हुई महाशक्ति है. और कोई देश किसी की मदद से कभी महाशक्ति नहीं बन सकता. उसे ताकत अपने बल पर खुद हासिल करनी पड़ती है. इसलिए इस संघर्ष का एक सबक यह भी है कि हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी और इसके लिए तैयारी करनी होगी. हालांकि यह संतोष कम नहीं है कि दशकों से सीमापार आतंकवाद का सामना करते हुए हम उसका सख्ती से मुकाबला कर रहे हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar Digital Desk
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