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सुचारु रूप से चले संसद

विपक्षी सदस्य ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार से जवाब चाहते हैं और खुद सत्ता पक्ष चर्चा और बहस के लिए तैयार है. ऐसे में, संसद में व्याप्त गतिरोध ठीक नहीं. संसद को सुचारु रूप से चलने दिया जाए, तभी सार्थक बहस संभव है.

संसद के मॉनसून सत्र का पहला दिन जिस तरह हंगामे की भेंट चढ़ गया और ऑपरेशन सिंदूर पर विपक्षी सांसदों के हंगामे को देखते हुए संसद की कार्यवाही मंगलवार सुबह ग्यारह बजे तक स्थगित कर दी गयी, वह निराशाजनक है. दरअसल इंडिया गठबंधन ने अपनी वर्चुअल बैठक में साफ कर दिया था कि वह पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर, डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम कराने के दावे आदि पर सरकार से सवाल पूछेगा. दूसरी ओर, खुद सरकार की तरफ से भी यह कहा गया कि वह ऑपरेशन सिंदूर और ट्रंप के दावों पर चर्चा के लिए तैयार है. यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब विपक्ष ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी, तब सरकार ने मॉनसून सत्र की तारीख की घोषणा कर जताया था कि उसमें विपक्ष के सवालों के जवाब दिये जायेंगे.

सत्र शुरू होने से पहले संसद परिसर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘ये मॉनसून सत्र एक विजयोत्सव है, पूरी दुनिया ने भारत के सैन्य सामर्थ्य का रूप देखा है.’ जाहिर है कि खुद सरकार ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में चर्चा के पक्ष में है. सत्र के पहले दिन जहां कांग्रेस की तरफ से पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर और संघर्षविराम रुकवाने के ट्रंप के दावे पर चर्चा के लिए नोटिस दिये गये, वहीं दोनों सदनों में इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के हंगामे को देखते हुए सरकार ने यह भी तय कर दिया कि ऑपरेशन सिंदूर पर लोकसभा में सोलह घंटे और राज्यसभा में नौ घंटे बहस होगी. इसके बाद भी संसद में व्याप्त गतिरोध से अच्छा संदेश नहीं जाता.

अब यह एक परिपाटी ही बन गयी है कि विपक्ष के सदस्य हंगामा करते हैं, अध्यक्ष की आसंदी के सामने आते हैं और उसके जवाब में सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है. सत्र के पहले ही दिन बार-बार सदन को स्थगित करने की नौबत आयी. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सभी विपक्षी दलों ने सरकार के फैसले से सहमति जताकर बता दिया था कि संकट के समय देश एकजुट है. बाद में जिन सात संसदीय प्रतिनिधिमंडलों ने अलग-अलग देशों में जाकर पाकिस्तान की असलियत और आतंकवाद के विरुद्ध भारत की जवाबी कार्रवाई के बारे में बताया, उनमें विपक्षी दलों के सदस्य भी थे. ऐसे में, बेहतर तो यही है कि संसद को सुचारु रूप से चलने दिया जाये. तभी ऑपरेशन सिंदूर और उससे जुड़े दूसरे पहलुओं पर सार्थक चर्चा संभव हो सकेगी.

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