PM Modi visit to Maldives : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया मालदीव यात्रा द्विपक्षीय संबंधों में एक नये युग की शुरुआत का संकेत देती है. मालदीव में मोदी ने उस देश की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया. उनकी इस यात्रा ने यह दर्शाया कि हाल के वर्षों में उत्पन्न हुई गलतफहमियों और तनावों के बावजूद दोनों देश भविष्य को देखते हुए संबंधों को नयी दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं. मोदी की इस यात्रा में रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग के नये आयाम स्थापित हुए हैं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत और मालदीव का रिश्ता साझा हितों, सुरक्षा चिंताओं और जनस्तरीय संवाद पर आधारित है.
भारत के लिए मालदीव का महत्व उसकी भौगोलिक निकटता के कारण तो है ही, हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी रणनीतिक स्थिति भी इसे एक अनिवार्य साझेदार बनाती है. प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि मालदीव भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और ‘महासागर दृष्टिकोण’ में विशेष स्थान रखता है, जो भारत की समुद्री सुरक्षा, समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग और समुद्री पड़ोसियों के साथ सहयोग को प्राथमिकता देता है. भारत ने कई बार मालदीव की आपात स्थितियों में ‘पहले मददगार’ की भूमिका निभायी है.
हालांकि 2023 में मोहम्मद मुइज्जू के सत्ता में आने पर मालदीव में भारत विरोधी रुख सामने आया. उन्होंने ‘इंडिया आउट’ अभियान का समर्थन किया, जिसमें देश में तैनात भारतीय सैन्यकर्मियों को हटाने की मांग की गयी. उनकी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा में परंपरा तोड़ते हुए चीन को प्राथमिकता दी गयी थी. इसके अतिरिक्त जनवरी, 2024 में मालदीव के कुछ मंत्रियों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध की गयी आपत्तिजनक टिप्पणियों ने भारतीय जनता को आक्रोशित कर दिया, जिसका असर पर्यटन पर पड़ा. रिश्ते तब और खराब हो गये, जब मालदीव की सरकार ने भारतीय सैन्यकर्मियों को हटाने की समयसीमा तय की और मुइज्जू ने चीन के साथ सैन्य समझौतों को प्रोत्साहित करना शुरू किया. चीन ने अपने नौसैनिक पोतों को मालदीव भेजकर समुद्री अनुसंधान के नाम पर रणनीतिक उपस्थिति बनाने की कोशिश की, जिससे भारत की सुरक्षा चिंताओं में वृद्धि हुई.
इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव यात्रा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं थी, बल्कि उसमें ठोस घोषणाएं और रणनीतिक पहलें भी शामिल थीं. भारत ने मालदीव को 565 मिलियन डॉलर (करीब 4,850 करोड़ रुपये) की ऋण सुविधा देने की घोषणा की, जिसमें मौजूदा ऋणों की भुगतान शर्तों को और अधिक लचीला बनाया गया. दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत आरंभ करने का निर्णय लिया. यह पहल महत्वपूर्ण है क्योंकि मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन और आयात पर अत्यधिक निर्भर है. प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास हुआ, जिनमें 3,300 आवासीय इकाइयों की परियोजना, रक्षा मंत्रालय का नया भवन, और स्वास्थ्य क्षेत्र में सहायता शामिल हैं.
भारत की मदद से मालदीव के दूरदराज के द्वीपों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी. दोनों देशों ने स्मारक डाक टिकट भी जारी किया, जो भारत-मालदीव राजनयिक संबंधों के 60 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है. मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू ने कहा कि उनकी सरकार की विदेश नीति चीन या किसी अन्य देश के प्रभाव से निर्देशित नहीं होगी, और वह संतुलित कूटनीति अपनाना चाहते हैं. हालांकि यह आसान नहीं होगा, क्योंकि मालदीव पर चीन का कर्ज लगातार बढ़ रहा है. भारत को मालदीव की मदद करते हुए सुनिश्चित करना होगा कि वह चीन के कर्ज जाल में पूरी तरह न फंसे.
चूंकि मालदीव जैसे छोटे देशों में आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप से द्विपक्षीय संबंध शीघ्रता से बदल सकते हैं, इसलिए भारत को केवल सरकारों के साथ नहीं, बल्कि जनता, व्यापारिक समुदाय, युवाओं और प्रशासनिक संस्थाओं के साथ भी जुड़ाव बढ़ाना चाहिए. हाल ही में मालदीव में भारत समर्थक जनमत का उभार हुआ है. भारत-मालदीव संबंधों की नयी दिशा न केवल दोनों देशों के हित में है, बल्कि पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता व सहयोग सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक है. समुद्री सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद निरोध, साइबर सुरक्षा और ब्लू इकोनॉमी जैसे क्षेत्रों में भारत और मालदीव की साझेदारी क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना को मजबूत कर सकती है.
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से यह संकेत गया है कि भारत एक जिम्मेदार और भरोसेमंद साझेदार है, जो केवल रणनीतिक लाभ नहीं, बल्कि साझा विकास की भावना से प्रेरित है. अंततः यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव यात्रा ने दोनों देशों के बीच विश्वास को पुनः स्थापित किया है. जहां एक ओर भारत ने स्पष्ट किया कि वह आंतरिक राजनीति से परे जाकर सहयोग करना चाहता है, वहीं मालदीव की सरकार ने भी संकेत दिया कि भारत के साथ निकटता बनाये रखना उसकी विदेश नीति की प्राथमिकता है. दोतरफा संबंध यदि इसी दिशा में बढ़ते रहे, तो यह न केवल भारत-मालदीव के लिए, बल्कि संपूर्ण दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए शांति, स्थिरता और समृद्धि का आधार बन सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)