-निखिल आनंद और देवेश कुमार-
Special Intensive Revision : बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के सघन पुनरीक्षण का काम शुरू किये जाने के बाद से कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडी गठबंधन लगातार केंद्र सरकार पर हमला बोल रही है. जबकि चुनाव आयोग नियमित अंतराल पर मतदाता सूची का पुनरीक्षण करता रहता है. भारत में लोकसभा, विधानसभा, पंचायत, नगर निगम, पैक्स आदि के चुनाव हर साल कई चरणों में होते हैं. इन सभी स्तरों के लिए उपचुनाव भी बीच-बीच में होते रहते हैं. चुनाव आयोग की यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वह नियत समय पर किसी भी चुनाव के लिए तैयार रहे. यह पहली बार नहीं है कि चुनाव आयोग सघन मतदाता पुनरीक्षण का काम करा रहा है. इसने पहले भी कई बार ऐसा किया है. बिहार में मतदाता सूचियों का इतने बड़े पैमाने पर पुनरीक्षण 2003 में हुआ था, जब राजद सत्ता में थी. तब एनडीए और भाजपा ने एसआइआर की प्रक्रिया को पूरा समर्थन दिया था.
ऐसा लगता है कि कांग्रेस हताशा और निराशा में चुनाव आयोग पर संदेह पैदा कर जनता के बीच भ्रम पैदा करना चाहती है. सफल मतदान प्रक्रिया और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए मतदाता सूची की पूर्ण शुद्धता आवश्यक है. एक अनुमान के अनुसार, बिहार के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5,000 से 25,000 तक फर्जी, गलत या दोहरे या तिहरे पंजीकृत मतदाता मौजूद हैं. बिहार में चुनाव की घोषणा से पहले इसे संशोधित करने की आवश्यकता है. यहां तक कि एक ही विधानसभा क्षेत्र में एक मतदाता कई स्थानों पर पंजीकृत है. मृत एवं गलत नामों की पहचान करना और मतदाता सूची को सही करना आवश्यक है.
सघन पुनरीक्षण अभियान (एसआइआर) की पूरी प्रक्रिया में अबतक 90.67 फीसदी गणना फॉर्म प्राप्त किये गये, जिनमें 90.37 प्रतिशत गणना फॉर्म डिजिटाइज कर लिये गये हैं. इनमें से 2.36 फीसदी मतदाता मृत पाये गये, 3.29 फीसदी मतदाता स्थायी तौर पर स्थानांतरित पाये गये, 0.95 प्रतिशत मतदाता एक से अधिक स्थानों पर दर्ज पाये गये, जबकि 0.01 फीसदी मतदाता ऐसे हैं, जिनकी पहचान-निवास का पता नहीं चल पाया है. आयोग के अंतिम आंकड़ों के अनुसार, बिहार के कुल 7,89,69,844 मतदाताओं में 97.30 फीसदी मतदाता फॉर्म जमा किये जा चुके हैं और सिर्फ 2.70 फीसदी मतदाताओं का फॉर्म वेरिफिकेशन बाकी है.
अनुमान है कि एसआइआर के पहले चरण के समापन तक राज्य के लगभग सभी वास्तविक नागरिक इसके दायरे में आ जायेंगे. यानी जो लोग नागरिकता का कोई प्रमाण नहीं दे पायेंगे, उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिये जायेंगे. कांग्रेस-राजद सहित सभी विपक्षी दलों द्वारा आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में शामिल करने की मांग कर बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में अपनी स्थिति मजबूत करने की मंशा जगजाहिर है. यह खुलासा भी कम दिलचस्प नहीं है कि किशनगंज जिले में आधार कार्ड का प्रचलन 105 फीसदी है, जबकि पड़ोसी अररिया में यह आंकड़ा 103 प्रतिशत है.
स्पष्ट है कि बहुत सारे अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशी आधार कार्ड हासिल करने में सफल रहे हैं. जैसे ही एसआइआर की प्रक्रिया शुरू हुई, किशनगंज में करीब 2.27 लाख लोगों ने आवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किये, जो इस जिले की कुल आबादी का 27 फीसदी है. जाहिर है कि इन सबके पीछे अवैध अप्रवासी, रोहिंग्या और बांग्लादेशी लोग हैं, जो गलत तरीके से मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं. बिहार में सघन मतदाता पुनरीक्षण अभियान की सफलता ने इसी तरह के अभियान देशभर में चलाने की जरूरत महसूस करा दी है. विगत 24 जून को चुनाव आयोग ने सघन मतदाता पुनरीक्षण अभियान की शुरुआत करते समय निर्देशित किया था कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का इआरओ (निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी) यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होगा कि कोई भी पात्र नागरिक इस प्रक्रिया में छूट न जाये, जबकि कोई भी अपात्र व्यक्ति मतदाता सूची में शामिल न हो.
महाराष्ट्र, हरियाणा के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस निष्पक्ष चुनाव आयोग पर सवाल उठा रही है, जिसकी भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया आयोजित करने की लंबे समय से विश्वसनीयता है. विपक्ष लगातार लोकतंत्र के सभी स्तंभों पर संदेह जताते हुए अपनी सतही राजनीति के लिए हमले कर रहा है. वह भारत की विदेश नीति और भारतीय सशस्त्र बलों को भी निशाना बना रहा है. इन आरोपों और प्रत्यारोपों का निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार है. सवाल यह है कि क्या विपक्ष भारत की लोकतांत्रिक गरिमा को तार-तार कर राजनीति में अपना भाग्य चमकायेगा? चुनाव आयोग जैसी निष्पक्ष संस्थाओं और लोकतंत्र के स्तंभों की छवि खराब कर सत्ताधारी दल का मुकाबला करेगा?
चुनाव आयोग द्वारा संचालित एवं निर्देशित सघन मतदाता पुनरीक्षण अभियान की सफलता के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत करने में विपक्ष सहित सभी राजनीतिक दलों की सकारात्मक भागीदारी होनी चाहिए. सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करें तथा चुनाव प्रक्रिया को पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने में चुनाव आयोग का सहयोग करें.
(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं.)