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Rajnath Singh: एससीओ के मंच से रक्षा मंत्री

Rajnath Singh: चीन में एससीओ के मंच से भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकवाद पर दोहरी नीति के खिलाफ स्पष्ट और कड़ा संदेश दिया. 'ऑपरेशन सिंदूर' इसका हालिया उदाहरण है. जिससे भारत की दृढ़ नीति और आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक सहयोग की मांग उजागर होती है.

Rajnath Singh: चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में बोलते हुए राजनाथ सिंह ने आतंकवाद पर दोहरापन छोड़कर इसके खिलाफ साझा रणनीति बनाने की जो जरूरत बतायी वह महत्वपूर्ण है. महत्वपूर्ण तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की इस चीन यात्रा को भी माना गया.

मई, 2020 में हुए भारत-चीन सीमा विवाद के बाद किसी वरिष्ठ भारतीय मंत्री की यह पहली चीन यात्रा है. बैठक में राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कहा कि आतंकवाद के खिलाफ कोई समझौता नहीं होगा और जो देश आतंकवाद को संरक्षण देते हैं, उनका विरोध करना अब वैश्विक जिम्मेदारी है. पाकिस्तान का नाम लिये बगैर उसे लताड़ते हुए उन्होंने कहा कि कुछ देश सीमापार आतंकवाद को प्रायोजित करते हैं और इसे अपनी नीति और रणनीति का अभिन्न हिस्सा बना चुके हैं.

पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ नाम के जिस आतंकवादी संगठन ने ली थी, वह लश्कर से जुड़ा है और पहले से ही संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में शामिल है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत आतंकवादियों को कभी माफ नहीं करेगा और उन्हें समर्थन देने वाले देशों को भी वैश्विक मंचों पर बेनकाब किया जायेगा. भारत निर्दोषों के खून का बदला लेना जानता है और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ इसका ताजा उदाहरण है.

भारत एक जिम्मेदार देश है, जो केवल अपनी नहीं, पूरे क्षेत्र की शांति के लिए प्रतिबद्ध है. बैठक में जब राजनाथ सिंह बोल रहे थे, तब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ वहां मौजूद थे. राजनाथ सिंह ने एससीओ के सदस्य देशों से आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति बनाने की अपील भी की. उनका कहना था कि एससीओ जैसे मंच से हमें उन देशों की खुलकर आलोचना करनी चाहिए, जो आतंकवाद को संरक्षण देते हैं. हालांकि विद्रूप यह है कि पाकिस्तान के साथ मेजबान चीन भी एससीओ की बैठक में आतंकवाद के मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश में था.

यह संयुक्त बयान से जाहिर हुआ, जिसमें बलूचिस्तान की आतंकी घटना का तो जिक्र था, लेकिन पहलगाम की आतंकी घटना का उल्लेख नहीं था. इससे क्षुब्ध राजनाथ सिंह ने साझा बयान पर दस्तखत करने से ही इनकार कर दिया. यह घटना बताती है कि क्षुद्र हितों और सुविधाजनक ढंग से प्रतिक्रिया करने के कारण आतंकवाद को दुनिया से खत्म करने का लक्ष्य वास्तव में बेहद कठिन और चुनौती भरा है.

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