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जरूरी है बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण

Revision of voter list in Bihar : 'डेमोग्राफिक रिकंस्ट्रक्शन एंड इलेक्टोरल रोल इन्फ्लेशन, एस्टीमेटिंग द लेजिटिमेट वोटर बेस इन बिहार, इंडिया' नामक शोध अध्ययन के मुताबिक, बिहार की मतदाता सूची में ही ऐसी गड़बड़ियां नहीं है, बल्कि पूरे देश की मतदाता सूची में हो सकती हैं.

Revision of voter list in Bihar : बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन परीक्षण पर विपक्षी दलों की ओर से सवाल न ही उठता, तो हैरत होती. यह ठीक है कि चुनाव आयोग ने अपने 24 जून के इस संदर्भ में दिये गये आदेश में बार-बार बदलाव किया है, लेकिन विपक्षी खेमे की ओर से इस पुनरीक्षण पर सवाल उठने की वजह उनकी आशंका है. उन्हें लगता है कि इस पुनरीक्षण के बहाने उनके वोट बैंक को सत्ता पक्ष, यानी भाजपा और जेडीयू के इशारे पर चुनाव आयोग काट देगा. उनकी आशंका पर चर्चा से पहले एक हालिया शोध का भी जिक्र किया जाना जरूरी है, जिसके अनुसार बिहार में करीब 77 लाख फर्जी वोटर हैं. ये वोटर अल्पसंख्यक वर्ग वाले सिर्फ विदेशी घुसपैठिये ही नहीं हैं, बल्कि इनमें मृत और अपनी रिहाइश छोड़ चुके मतदाता भी हैं.


‘डेमोग्राफिक रिकंस्ट्रक्शन एंड इलेक्टोरल रोल इन्फ्लेशन, एस्टीमेटिंग द लेजिटिमेट वोटर बेस इन बिहार, इंडिया’ नामक शोध अध्ययन के मुताबिक, बिहार की मतदाता सूची में ही ऐसी गड़बड़ियां नहीं है, बल्कि पूरे देश की मतदाता सूची में हो सकती हैं. इस शोध अध्ययन को मुंबई के एसपी जैन इंस्टिट्यूट एंड मैनेजमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर विधु शेखर और आइआइएम, विशाखापत्तनम के असिस्टेंट प्रोफेसर मिलन कुमार ने मिलकर किया है. यह अध्ययन किसी अनुमान पर नहीं, बल्कि सरकारी आंकड़ों जैसे, राज्य की जन्म और मृत्यु दर के साथ ही राज्य से हुए पलायन और आयु प्रत्याशा के सरकारी आंकड़ों के गहन अध्ययन पर आधारित है.

अध्ययन के मुताबिक, बिहार में इस समय करीब सात करोड़, 89 लाख वोटरों का नाम मतदाता सूची में दर्ज है. इस अध्ययन के मुताबिक, इनमें से करीब 77 हजार नाम फर्जी हैं. ये मतदाता या तो मर चुके हैं या वर्षों पहले से अपनी बतायी या दर्ज जगह से पलायन कर कहीं और जा बसे हैं. फर्जी या गलत मतदाताओं का यह आंकड़ा करीब 9.7 प्रतिशत है. इसका अर्थ यह हुआ कि करीब 10 प्रतिशत मतदाता अधिक हैं या असल में हैं ही नहीं. विधु शेखर और मिलन कुमार अपने शोध के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि राज्य की हर विधानसभा सीट पर करीब तीस हजार मतदाताओं का नाम गलत तरीके से दर्ज है. बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं. विधानसभाओं में कुछ सौ मतदाताओं का अंतर ही जीत-हार पर असर डाल देता है. शोधकर्ताओं को आशंका है कि अगर गहन पुनरीक्षण में इन मतदाताओं के नाम नहीं काटे गये, तो उनके नाम पर चुनावी नतीजों को बदला जा सकता है.


अध्ययन के अनुसार, बिहार के गांवों में मृत्यु के आंकड़े अपडेट न होने की वजह से फर्जी नाम ज्यादा हैं, जबकि शहरी इलाकों में पलायन के बावजूद नाम काटे नहीं गये हैं. राज्य में पिछली बार मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण 2003 में हुआ था. उस समय राज्य में करीब तीन करोड़ 41 लाख मतदाता थे. इसके साथ ही, सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन वर्षों में राज्य से करीब एक करोड़ 12 लाख वोटरों ने पलायन किया है. उन्होंने अपना स्थायी ठिकाना राज्य से बाहर बना लिया है. इस शोध अध्ययन के अनुसार, पुराने वोटरों, जन्म-मृत्यु दर की गणना और पलायन के बाद के आंकड़ों को मिलाकर राज्य में असल मतदाताओं की संख्या सात करोड़, 12 लाख के आसपास ही बैठती है.

इस लिहाज से राज्य में जो 77 लाख ज्यादा वोटरों के नाम हैं, वे वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गड़बड़ हैं. विधु शेखर और मिलन कुमार के अध्ययन को आगे बढ़ाते हुए राज्य में आधार कार्ड की उपलब्धता को भी जोड़ा जा सकता है. यह भी राज्य में फर्जी वोटरों की ओर इशारा करता है. वैसे मतदाता सूची में शामिल होने के लिए आधार कार्ड और राशन कार्ड को वैध प्रमाण पत्र माना जाता है. पर इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारी संख्या में फर्जी राशन कार्ड हो सकते हैं या आधार कार्ड भी बन सकते हैं. सीमांचल के जिले, जैसे अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज जिलों में मुस्लिम आबादी करीब 39 से लेकर 68 फीसदी तक है, लेकिन इनकी सीमाएं पश्चिम बंगाल और नेपाल से जुड़ी हैं.

पश्चिम बंगाल के सीमांचल के नजदीकी जिले बांग्लादेश से सटे हैं. इसकी वजह से इस इलाके में घुसपैठ का भी आरोप लगता रहा है. बिहार सरकार द्वारा जाति आधारित सर्वेक्षण के दौरान एकत्र किये गये आधिकारिक आंकड़ों पर नजर डालें, तो इस आरोप में दम नजर आता है. आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि सीमांचल के हर 100 निवासी पर 120 से अधिक आधार कार्ड हैं. यही वजह है कि चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान में इन जिलों में मतदाता सूची में नाम के सत्यापन के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं माना है.


संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत मिले अधिकारों के तहत चुनाव आयोग राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और विधानमंडलों का चुनाव कराता है. इसके लिए उसे जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत मतदाता सूची बनाने और उसे अद्यतन करने का अधिकार मिला है. स्वच्छ लोकतंत्र के लिए स्वच्छ और स्पष्ट मतदाता सूची जरूरी है. चुनाव आयोग का यह वैधानिक दायित्व है कि वह फर्जी वोटरों को मतदाता सूची से बाहर करे. बिहार में आधार कार्ड के अत्यधिक उपलब्धता के आंकड़े कुछ ऐसे तथ्य हैं, जिनके आलोक में राज्य में जारी गहन पुनरीक्षण को चुनाव आयोग अपने पक्ष में तर्क के रूप में इस्तेमाल कर सकता है. इन संदर्भों में विशेष गहन पुनरीक्षण के विरोध में उतरे राजनीतिक दलों के लिए ज्यादा तर्क-वितर्क की गुंजाइश शायद ही रह पायेगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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