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शुभांशु की उड़ान नये युग की शुरुआत, पढ़ें पीके जोशी का खास लेख

Shubhanshu Shukla : वर्ष 2030 तक अपने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन बनाने के काम में भी जल्दी हो सकती है. राकेश शर्मा के अंतरिक्ष में जाने के एक साल बाद पैदा हुए और लखनऊ में पले-बढ़े इस सेनाधिकारी के पास दो हजार घंटों से ज्यादा की उड़ान का अनुभव है.

-पीके जोशी-
(प्रोफेसर, जेएनयू)
Shubhanshu Shukla : अपने नाम के अनुरूप भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने राष्ट्रीय गौरव और वैज्ञानिक प्रगति का हिस्सा बनकर इतिहास रच दिया है. स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले वह दूसरे भारतीय बने, जबकि आइएसएस (इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन) में पहुंचने होने वाले तो वह पहले भारतीय ही हैं. राकेश शर्मा 1984 में अंतरिक्ष में पहुंचे थे. स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट और क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट ग्रेस के जरिये लांच किये गये इस मिशन में शुभांशु ने मिशन 4 (एएक्स-4) का हिस्सा बनकर उड़ान भरी, जो एक्सिओम स्पेस द्वारा नासा, स्पेस एक्स और इसरो के सहयोग से आयोजित एक निजी अंतरिक्ष मिशन है. मिशन पायलट के रूप में शुभांशु एक अंतरराष्ट्रीय टीम का हिस्सा हैं, जिनमें अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं.


यह एक बड़ी उपलब्धि है, जो यह तो बताती ही है कि वैश्विक मानव अंतरिक्ष उड़ानों में भागीदारी लगातार बढ़ रही है, यह अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन तक पहुंच रखने वाले देशों की कतार में भारत की मजबूत स्थिति के बारे में भी बताती है. यह मिशन भारत के स्वदेशी गगनयान योजना के लिए पुल की तरह है तथा भविष्य में कई मानवयुक्त मिशनों, बिना क्रू वाली उड़ानों और 2035 तक अपने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की स्थापना में मददगार होने वाला है. अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी यह अनुभव, जाहिर है, बेशकीमती साबित होगा. अंतरिक्ष में शुभांशु के काम, प्रयोग और आइएसएस के प्रोटोकॉल को जानने का अनुभव इसरो के प्रशिक्षण और मिशन की रूपरेखा को आकार देंगे. यह सफलता एक नजीर बनेगी और विकसित भारत के अंतरिक्षयात्री जल्दी ही न सिर्फ निजी अंतरिक्ष यानों में यात्रा कर सकेंगे, बल्कि और भी गहरे अंतरिक्ष मिशनों की ओर बढ़ सकेंगे.

वर्ष 2030 तक अपने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन बनाने के काम में भी जल्दी हो सकती है. राकेश शर्मा के अंतरिक्ष में जाने के एक साल बाद पैदा हुए और लखनऊ में पले-बढ़े इस सेनाधिकारी के पास दो हजार घंटों से ज्यादा की उड़ान का अनुभव है. शुभांशु शुक्ला ने एसयू-30 एमकेआइ, मिग-21, मिग-29 जैसे जेट फाइटर विमान उड़ाने के साथ जगुआर, हॉक, डोर्नियर-228 और एन-32 जैसे एयरक्राफ्ट उड़ाये हैं. वर्ष 2019 में इसरो और भारतीय वायुसेना ने उन्हें भारतीय मानव अंतरिक्ष मिशन (आइएचएसपी) के तहत पहले अंतरिक्ष यात्री दल व्योमनॉट्स के तौर पर चुना. उनकी ट्रेनिंग पहले रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर, फिर नासा के जॉनसन ट्रेनिंग सेंटर, कोलोन (जर्मनी) की इएसए फैसिलिटी और जापान के त्सकुबा स्पेस सेंटर में हुई. इस दौरान उन्होंने इमर्जेंसी प्रोटोकॉल्स, डॉकिंग, लाइफ सपोर्ट सिस्टम्स और कोलंबस व किबो जैसे रिसर्च मॉड्यूल्स के बारे में जानकारी हासिल की. वर्ष 2024 की शुरुआत में इसरो ने चार संभावित अंतरिक्ष यात्रियों के नाम घोषित किये और शुभांशु शुक्ला को ए-एक्स-4 मिशन का पायलट चुना गया. उनके लिए तय की गयी सीट की कीमत करीब 500 करोड़ रुपये बतायी गयी. संदेश जोरदार था- भारत यहां टिके रहने के लिए और नेतृत्व करने के लिए आया है.


मिशन पायलट के तौर पर शुभांशु की जिम्मेदारी लांचिंग और वापसी के दौरान स्पेसक्राफ्ट उड़ाना, उड़ान के दौरान सिस्टम की जांच करना, आइएसएस के साथ डॉकिंग की प्रक्रिया को संभालना और बोर्ड पर होने वाले ऑपरेशनों में सहयोग देना शामिल है. आइएसएस पर प्रवास के दौरान शुभांशु विभिन्न शोध प्रयोगों को अंजाम देंगे. वहां स्पेस बायोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य विज्ञान और सांस्कृतिक प्रतिभाग से संबंधित साठ से ज्यादा वैश्विक प्रयोग होंगे, जिनमें से सात भारत के नेतृत्व में होंगे. शुभांशु ने योग के प्रदर्शन और क्रू के पोषण तथा शून्य गुरुत्वाकर्षण में भारतीय भोजन पर फोकस करने जैसी योजना भी बनायी है.

शुभांशु का अंतरिक्ष अभियान उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि से ज्यादा भारत और भारतीयों के लिए गौरव का अवसर है. ‘यह 1.4 अरब भारतीयों की यात्रा है’ वाला उनका जोशीला संदेश आइएसएस की दीवारों से परे जाकर गूंजता है. यह संदेश उम्मीदें और महत्वाकांक्षा जगाता है और देश-दुनिया को एकजुट करता है. शुभांशु की कहानी हमें याद दिलायेगी कि अंतरिक्ष सिर्फ कुछ चुनींदा लोगों के लिए नहीं, बल्कि उनके लिए है, जो वहां तक जाने की कल्पना करते हैं, फिर अपनी कल्पना को साकार करने के लिए अथक परिश्रम करते हैं. अंतरिक्ष मिशन की तारीखों का बार-बार टलना प्रतिभागियों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था, लेकिन शुभांशु ने हर बार खुद को परिस्थिति के अनुसार ढालते हुए मानसिक मजबूती दिखायी.

आइएसएस पर उनकी मौजूदगी ने साबित कर दिया कि भारत अब वैश्विक अंतरिक्ष सहयोग में एक मजबूत और जरूरी हिस्सा है और भविष्य के मिशनों की नींव तैयार हो चुकी है. पत्नी और बेटे से भावुक विदाई से लेकर ‘वंदे मातरम’ बजाने तक शुभांशु का यह मिशन सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक भावनाएं भी इससे गहरे तौर पर जुड़ी हुई हैं. जब वह अंतरिक्ष यान में कदम रखने जा रहे थे, तब उनके माता-पिता चुपचाप खड़े थे. उन्होंने शांत और गहरी प्रार्थना की, जो उनके बेटे के ही साथ आसमान तक गयी. शुभांशु की यात्रा विश्वगुरु की भारतीय सोच के साथ एक नये युग की शुरुआत है, जिसमें भारतीयों के नियमित रूप से अंतरिक्ष में जाने, तिरंगे को गर्व के साथ अंतरिक्ष में लहराने और नवाचार तथा एकता के विश्वदूत बनने की कामना है.


इस अभियान का असर विभिन्न क्षेत्रों में दिखेगा. शुभांशु के निरीक्षण और शोध माइक्रोग्रैविटी यानी शून्य गुरुत्वाकर्षण में शरीर की प्रतिक्रिया को बेहतर समझने में मदद करेंगे तथा अंतरिक्ष आधारित जैव तकनीकी और कृषि नवाचार के क्षेत्र में संभावनाओं के द्वार खोलेंगे. इसमें ऐसी टिकाऊ भोजन प्रणाली पर काम होगा, जो अंतरिक्ष यात्रियों के साथ किसानों के लिए भी लाभकारी साबित होंगे. सर्वोपरि, शुभांशु का यह अंतरिक्ष अभियान शैक्षिक सुधारों को प्रेरित करेगा और युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग व तारों के बीच स्थित अंतरिक्ष का रहस्य जानने के लिए प्रोत्साहित करेगा. यह मिशन अंतरिक्ष की तरफ एक कदम भर नहीं है, बल्कि बाहरी अंतरिक्ष में भारत की एक बड़ी छलांग है. शुभांशु आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद और प्रेरणा के स्रोत हैं.
(लेखक सेंटर फॉर स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी एजुकेशन इन एशिया एंड पैसिफिक से संबद्ध 
रहे हैं.)
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar Digital Desk
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