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अंतरिक्ष में भारत की सफल उड़ान

India In Space: इस अभियान के जरिये शुभांशु शुक्ला ने भारत को भविष्य की अंतरिक्ष साझेदारियों के कॉकपिट में बिठा दिया है. शून्य गुरुत्वाकर्षण में किये गये शुभांशु शुक्ला के योग सत्रों का दुनियाभर में प्रसारण हुआ. अर्जेंटीना, कोरिया और नाइजीरिया के अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उनका सांस्कृतिक संवाद सशक्त संदेश के रूप में सामने आया. यह विकसित भारत की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. राष्ट्रीय स्तर पर यह आत्मविश्वास दिखाई पड़ा कि अंतरिक्ष की अगली दौड़ में भारत अपने अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष स्टेशन के साथ नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकता है.

India In Space: अंतरिक्ष से विदा होने से ठीक पहले भारत के सपूत, विश्वदूत और मानव हितों के स्वप्नदर्शी शुभांशु शुक्ला ने गर्व और काव्योचित स्पष्टता के साथ कहा, ‘आज का भारत अंतरिक्ष से महान दिखता है, आज का भारत निडर दिखता है, आत्मविश्वास और गर्व से पूर्ण दिखता है और सारे जहां से अच्छा दिखता है.’ स्पेस कैप्सूल जब 15 जुलाई को प्रशांत महासागर में सेन डियोगे के पास रिकवरी जलक्षेत्र में उतरा, तब उसके साथ भारत की अंतरिक्ष गौरव गाथा के पुनरुत्थान की गहरी उपलब्धि भी थी. अपने बेटे को ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट से बाहर आते और धरती पर कदम रखते देख शुभांशु शुक्ला के माता-पिता खुशी से अभिभूत दिखे. मां खुशी के आंसू बहा रही थीं और उनके हाथ जुड़े हुए थे.

शुभांशु का अंतरिक्ष अभियान गगनयान के लिए उपयोगी साबित होंगे

शुभांशु शुक्ला का अंतरिक्ष अभियान भारतीय जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों, शैक्षणिक व अनुसंधान संस्थानों तथा इसरो के आगामी कार्यक्रमों- खासकर गगनयान- के लिए उपयोगी साबित होंगे. उन्होंने अंतरिक्ष से देश के हाई स्कूलों और विश्वविद्यालयों के छात्रों को सीधे तसवीरें और संदेश भेजे. विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में इसे सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं कह सकते, यह दार्शनिक और राष्ट्रीय सोच से भी ओतप्रोत थी. लंबे समय से भारत की पहचान विरोधाभास भरी रही है, प्राचीन ज्ञान परंपराओं और आधुनिक तकनीकों का संगम होते हुए भी अक्सर भू-राजनीतिक सीमाओं और संसाधनों की कमी से बाधित. शुभांशु शुक्ला के गौरवशाली अंतरिक्ष अभियान ने भारत से जुड़े इस विरोधाभास को ध्वस्त कर दिया. इस अभियान के जरिये उन्होंने भारत को भविष्य की अंतरिक्ष साझेदारियों के कॉकपिट में बिठा दिया है. भारत अब सिर्फ उपग्रहों को प्रक्षेपित करने वाला देश नहीं रहा, बल्कि बौद्धिक और रणनीतिक नेतृत्व की सीट पर है. शुभांशु शुक्ला ने कहा था, ‘मेरी यह यात्रा अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर शुरुआत से संबंधित नहीं है, बल्कि भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की है.’ अंतरिक्ष की कक्षा से उनका पहला ही वाक्य दूरदृष्टि से भरा था. शुभांशु शुक्ला की इस यात्रा को मानवता और ब्रह्मांड के बीच विकसित होते संबंधों के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में देखा जाना चाहिए. पृथ्वी बनाम अंतरिक्ष का पुराना द्वंद्व अब अप्रासंगिक हो गया है. मानवता जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या विस्फोट और संसाधनों की कमी से जूझ रही है, वैसे-वैसे अंतरिक्ष अब जिज्ञासा से ज्यादा आवश्यकता बन चुका है. ‘ऋग्वेद’ में कहा गया है, ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे’. विभाजित विश्व में यह यात्रा अप्रत्याशित रूप से एकता का प्रतीक बन गयी. इसने प्रतिपादित किया कि विज्ञान और अध्यात्म विरोधी नहीं, मानवता के अर्थ की खोज के सहयात्री हैं. शून्य गुरुत्वाकर्षण में किये गये शुभांशु शुक्ला के योग सत्रों का दुनियाभर में प्रसारण हुआ. अर्जेंटीना, कोरिया और नाइजीरिया के अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उनका सांस्कृतिक संवाद सशक्त संदेश के रूप में सामने आया. यह विकसित भारत की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.

शुभांशु और उनकी टीम ने 18 दिनों में किए 60 प्रयोग

कुल अट्ठारह परिवर्तनकामी दिनों में, शुभांशु शुक्ला और उनकी वैश्विक टीम ने कुल 60 प्रयोग किये, जिनमें सूक्ष्मजीवों के व्यवहार, सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण का पौधों की जैविकी, मांसपेशियों के स्वास्थ्य और जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति आदि थे. इन सबमें शुक्ला द्वारा शून्य गुरुत्वाकर्षण में बहुत सावधानीपूर्वक की गयी मेथी और मूंग की खेती अंतरिक्ष में टिकाऊ खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पृथ्वी पर खेती के लिहाज से भी दूरगामी महत्व की थी. अन्य अनुसंधान गतिविधियां जैव प्रौद्योगिकी अध्ययन से संबंधित थीं, जैसे- टार्डीग्रेड्स और शैवाल पर अध्ययन, जिसमें आणविक अनुकूलन और जीन अभिव्यक्ति पर केंद्रित परीक्षण किये गये. इसके अलावा स्वास्थ्य और जीव विज्ञान, मांसपेशियों के क्षय, स्क्रीन के संपर्क में आने पर पड़ने वाला मानसिक प्रभाव और चिकित्सा प्रतिरक्षण योजनाओं का परीक्षण आदि थे, जबकि योग प्रदर्शन और सांस्कृतिक पहलू, जिनमें पोषण और चालक दलों के भोजन संबंधी शोध थे, वस्तुत: शून्य गुरुत्वाकर्षण में भारत केंद्रित खानपान पर केंद्रित और भारतीय संस्कृति से जुड़े थे. शुभांशु शुक्ला के नेतृत्व को न केवल निर्णायक और दार्शनिक आधार युक्त माना गया, बल्कि भारत के साथ-साथ वैश्विक मीडिया में भी उनकी सराहना हुई. राष्ट्रीय स्तर पर यह आत्मविश्वास दिखाई पड़ा कि अंतरिक्ष की अगली दौड़ में भारत अपने अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष स्टेशन के साथ नासा या इएसए के पीछे चलने के बजाय नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकता है.

संकल्प और इच्छाशक्ति के साथ हर भारतीय सितारों तक पहुंच सकता है

अंतरिक्ष स्टेशन पर रहते हुए शुभांशु शुक्ला ने जन संपर्क कार्यक्रमों में भाग लिया, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक भावुक लाइव वीडियो संवाद तथा हैम रेडियो के माध्यम से स्कूली छात्रों के साथ बातचीत शामिल थी. प्रधानमंत्री के साथ संवाद में यह स्पष्ट हुआ कि विज्ञान और आध्यात्मिकता भारत की शक्ति के दो प्रमुख स्तंभ हैं. भविष्य के भारत के लिए सबसे प्रेरणादायक संदेश वह था, जब शुभांशु शुक्ला ने कहा, ‘आसमान कभी भी मेरी, आपकी या भारत की सीमा नहीं रहा.’ अंतरिक्ष में उनके शब्द और उनकी उपस्थिति बता रही थी कि संकल्प और इच्छाशक्ति के साथ हर भारतीय सितारों तक पहुंच सकता है और भारत के भविष्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. शुभांशु शुक्ला की उपलब्धि पाठ्यपुस्तकों, कॉमिक्स, कहानियों तथा केंद्र व राज्य शिक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रमों में शामिल की जायेगी. पैराशूट खुल चुके हैं. कैप्सूल उतर चुका है. यादगार वापसी के स्वागत में बैनर लहरा रहे हैं. शुभांशु शुक्ला की वास्तविक वापसी तो अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति उस राष्ट्रीय जुनून और प्रेरणा में है, जिसे उन्होंने पैदा किया है. उनकी यह प्रतिबद्धता देश में विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (स्टेम) के प्रति उत्साह के बीज बोयेगी.

शुभांशु शुक्ला का अभियान सांस्कृतिक गौरव और तकनीकी प्रगति का प्रतीक

वैश्विक अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पारंपरिक भारतीय भोजन साझा करने के साथ-साथ महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग करते हुए शुभांशु शुक्ला का अभियान सांस्कृतिक गौरव और तकनीकी प्रगति, दोनों का प्रतीक बन गया. उन्होंने सजगता, दृढ़ता और एकता के महत्व को रेखांकित किया, जो भारत के शाश्वत मूल्यों और इसके बढ़ते वैश्विक कद के बारे में बताता है. मानवता के लिए उनका यह मिशन एक दर्पण और मानचित्र सरीखा है. दर्पण, जो हमारी साझा भंगुरता और निरर्थक विभाजनों को प्रतिबिंबित करता है, तो मानचित्र हमें एक अधिक कल्पनाशील, सहयोगपूर्ण और अंतरिक्षीय भविष्य की राह दिखाता है. शुभांशु शुक्ला पृथ्वी पर हमारे बीच लौटे हैं. उनकी वापसी बताती है कि आसमान कोई सीमा नहीं है, बल्कि यह तो सिर्फ शुरुआत है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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