Supreme Court : छात्र आत्महत्या के बढ़ते मामलों को प्रणालीगत विफलता मानते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सभी स्कूलों, कॉलेजों, कोचिंग संस्थानों और छात्रावासों के लिए 15 बिंदुओं का जो दिशानिर्देश जारी किया है, उससे शीर्ष अदालत की चिंता और गंभीरता का पता चलता है. अदालत ने कहा कि संकट की गंभीरता को देखते हुए संवैधानिक हस्तक्षेप आवश्यक है. इसमें मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अदालत को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग किया गया है.
संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत दिये गये निर्णय को देश का कानून माना गया है. अदालत ने घोषणा की कि उसके दिशानिर्देश तब तक लागू रहेंगे, जब तक संसद या राज्य विधानसभाएं एक उपयुक्त नियामक ढांचा लागू नहीं कर देती. इस दिशानिर्देश में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य, काउंसिलिंग, शिकायत निवारण, संस्थागत जवाबदेही और अभिभावकों के लिए मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम जैसे अहम उपाय शामिल हैं. दिशानिर्देश में दो चीजें बेहद महत्वपूर्ण हैं-एक, छात्रों की आत्महत्या पर संबंधित संस्थानों को जिम्मेदार ठहराना, तथा दूसरा, अभिभावकों को छात्रों की मानसिक स्थिति से अवगत रखने की मुहिम चलाना.
अदालत की टिप्पणी है कि किशोरों का पढ़ाई के बोझ, समाज के तानों, मानसिक तनाव और स्कूल-कॉलेज की बेरुखी जैसी वजहों से जान देना साफ दिखाता है कि हमारी पूरी व्यवस्था कहीं न कहीं विफल हो रही है. यह निर्णय विशाखापत्तनम में 17 वर्षीया नीट अभ्यर्थी की संदिग्ध मृत्यु की पृष्ठभूमि में आया है. उस मामले में शीर्ष अदालत ने सीबीआइ जांच के निर्देश दिये हैं.
ये राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश एनसीआरबी की रिपोर्ट को भी ध्यान में रखते हुए जारी किये गये हैं, जो बताती है कि 2022 में 13,044 छात्रों ने खुदकुशी की. जबकि 2011 में छात्रों की मौत के आंकड़े 5,425 थे. इन करीब 13,000 छात्रों में से 2,248 छात्रों ने परीक्षा में फेल होने के कारण आत्महत्या की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मार्च में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं और आत्महत्याओं की घटनाओं को रोकने के लिए नेशनल टास्क फोर्स बनाने का आदेश दिया था. यूनिसेफ का एक अध्ययन भी बताता है कि 36 फीसदी भारतीय छात्र स्कूल परिसरों में परेशानी का सामना करते हैं, जो वैश्विक औसत से अधिक है. छात्रों को मनोवैज्ञानिक द्वंद्व, शैक्षणिक बोझ और संस्थागत संवेदनहीनता से बचाने के लिए तत्काल संस्थागत सुरक्षा उपाय अनिवार्य करने की सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी ही बताती है कि समस्या कितनी गंभीर है.