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धनखड़ का इस्तीफा और उपराष्ट्रपतियों से जुड़े विवाद, पढ़ें विवेक शुक्ला का लेख

Jagdeep Dhankhar : देश में उपराष्ट्रपति को लेकर पहला बड़ा विवाद वीवी गिरि से जुड़ा है. दरअसल 1969 में राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन के निधन के बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने. तब कांग्रेस के भीतर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पुराने नेताओं के 'सिंडिकेट' के बीच सत्ता संघर्ष चरम पर था.

Jagdeep Dhankhar : जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा देने से देश की राजनीति में भूचाल-सा आ गया है. कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह ऐसा कदम उठा सकते हैं. उनके इस्तीफे को लेकर तमाम तरह की अटकलबाजी चल रही है. उन्होंने इस्तीफा देने का कारण अपना खराब स्वास्थ्य बताया है. लेकिन सच्चाई यह है कि इस पर कोई भरोसा नहीं कर रहा है. देश में उपराष्ट्रपति का पद विवादों से आमतौर पर परे रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस पद पर आसीन शख्सियतें विवादों से हमेशा दूर ही रहीं. कई बार विवाद हुए.


देश में उपराष्ट्रपति को लेकर पहला बड़ा विवाद वीवी गिरि से जुड़ा है. दरअसल 1969 में राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन के निधन के बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने. तब कांग्रेस के भीतर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पुराने नेताओं के ‘सिंडिकेट’ के बीच सत्ता संघर्ष चरम पर था. कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी थे, जिन्हें सिंडिकेट का समर्थन प्राप्त था. इंदिरा गांधी ने वीवी गिरि को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया.

उन्होंने कांग्रेस के सांसदों और विधायकों से ‘अंतरात्मा की आवाज’ पर वोट देने का आह्वान किया. परिणाम यह हुआ कि गिरि बहुत ही करीबी मुकाबले में जीत गये. उस घटना ने कांग्रेस को दोफाड़ कर इंदिरा गांधी को सर्वोच्च नेता के रूप में स्थापित किया. वह एक ऐसा मामला था, जहां उपराष्ट्रपति का पद सीधे तौर पर सत्ता संघर्ष का एक उपकरण बन गया. ऐसे ही, 1977 में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के बाद उपराष्ट्रपति बीडी जत्ती कार्यवाहक राष्ट्रपति बने.

आपातकाल के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी. सरकार ने नौ कांग्रेस शासित राज्यों की विधानसभाओं को भंग करने की सिफारिश की. कार्यवाहक राष्ट्रपति जत्ती ने उस अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने में शुरू में हिचकिचाहट दिखाई, जिससे संवैधानिक संकट पैदा हो गया था, क्योंकि यह सवाल उठा कि क्या कार्यवाहक राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह को मानने के लिए बाध्य हैं. कुछ दिनों बाद उन्होंने हालांकि उस पर हस्ताक्षर कर दिये, पर इस घटना ने कार्यवाहक राष्ट्रपति की शक्तियों पर बड़ी बहस छेड़ दी.


दो बार उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी का कार्यकाल काफी हद तक गैर-विवादास्पद रहा, लेकिन उनके कार्यकाल के अंत में दिये गये बयानों ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया. अपने कार्यकाल के अंतिम दिन एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि देश के मुसलमानों में ‘असुरक्षा और बेचैनी की भावना’ है. उनके उस बयान की सत्ताधारी दल और उसके समर्थकों ने तीखी आलोचना की. उससे पहले भी गणतंत्र दिवस परेड के दौरान राष्ट्रगान के समय ध्वज को सलामी न देने पर उनकी आलोचना हुई थी. बाद में स्पष्ट किया गया कि प्रोटोकॉल के अनुसार केवल राष्ट्रपति ही सलामी देते हैं और अन्य सभी गणमान्य व्यक्ति सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं.

जब तक हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति आवास में रहे, तब तक वहां अनेक लेखकों की किताबों के विमोचन होते रहे. उन्हें लेखकों और विद्वानों से मिलना पसंद था. उन्होंने खुद भी कई किताबें लिखी थीं. उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 2018 में राज्यसभा के सभापति के रूप में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाये गये महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. तब विपक्ष ने आरोप लगाया था कि नायडू ने यह निर्णय जल्दबाजी में और सरकार के दबाव में लिया. पर नायडू ने अपने फैसले को यह कहते हुए सही ठहराया कि प्रस्ताव में लगाये गये आरोप ‘अस्पष्ट’ थे और ‘सिद्ध कदाचार’ की श्रेणी में नहीं आते थे. उस फैसले ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच संबंधों पर एक तीखी बहस को जन्म दिया और सभापति की विवेकाधीन शक्तियों को चर्चा के केंद्र में ला दिया. वेंकैया नायडू भी उपराष्ट्रपति आवास में लेखकों, नौजवानों, कलाकारों से मिला करते थे.


अगर इन कुछ उदाहरणों को छोड़ दें, तो उपराष्ट्रपति के रूप में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ जाकिर हुसैन, गोपाल स्वरूप पाठक, आर वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा, डॉ केआर नारायणन, कृष्णकांत, भैरोसिंह शेखावत के कार्यकाल शांति से निकले. अगर देश के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बात करें, तो उनकी पहल पर ही राजधानी को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर मिला था. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से इच्छा जतायी थी कि राजधानी में कोई जगह बन जाये, जहां पढ़ने-लिखने की दुनिया से जुड़े लोग मिल-बैठ करते रहें. उनकी सलाह नेहरू जी को पसंद आ गयी.

उन्होंने बिना देर किये शहरी विकास मंत्रालय को निर्देश दिये कि वह एक प्लॉट अलॉट करे. कृष्णकांत का उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए 27 जुलाई, 2002 को निधन हो गया था. उसके बाद भैरोंसिंह शेखावत उपराष्ट्रपति बने, जिनका कार्यकाल 19 अगस्त, 2002 से 21 जुलाई, 2007 तक रहा. उनके दौर में उपराष्ट्रपति आवास के गेट आम-खास सब के लिए खुले रहते थे. उनके पास मिलने वालों की भीड़ कभी कम नहीं होती थी. बहरहाल, जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे का असर अभी कुछ दिनों तक और चलने वाला है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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