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अपराध की दुनिया क्यों लगती है इतनी रोमांचक, पढ़ें क्षमा शर्मा का लेख

Crime World : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पुरुष चौरानबे प्रतिशत अपराध करते हैं और महिलाएं छह से आठ प्रतिशत, यानी महिला अपराधियों की संख्या बहुत कम है, लेकिन महिलाओं द्वारा किये गये अपराध इसलिए ज्यादा चौंकाते हैं, क्योंकि महिला भी अपराध कर सकती है, इस बात पर विश्वास नहीं होता.

Crime World : इंदौर की सोनम रघुवंशी का मामला चर्चा में है. हर रोज इस मामले में नये रहस्य खुल रहे हैं. हमारी मानसिकता में अपराध की योजनाएं किस तरह से बनती हैं, इसे जानकर हैरत हो रही है. ऐसी-ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं कि मानवीय संबंधों पर विश्वास न हटे, तो और क्या हो! एक महिला ने बच्ची गोद ली. वह उसे अपने दम पर पाल रही थी. पढ़ा-लिखा कर वह उसे योग्य बनाना चाहती थी. बच्ची पंद्रह साल की हुई, तो उसके जीवन में एक लड़का आया. मां उससे कहती थी कि पहले पढ़-लिख लो, फिर किसी संबंध में आगे बढ़ना. किशोरी को यह बात बुरी लगी. उसने मां की हत्या कर दी. दूसरी लड़की को नानी ने किसी लड़के से मिलने पर डांटा, तो उसने उस पर चाकू से इतने वार किये कि नानी ने दम तोड़ दिया. एक दूसरी महिला ने अपने पति को धमकाया कि अगर ज्यादा मुंह खोला, तो राजा रघुवंशी वाला हाल करूंगी. ऐसा नहीं है कि अपराध महिलाएं ही कर रही हैं. पुरुष भी कोई कम नहीं. ऐसी खबरें रोज आती हैं कि लिव इन में रह रही महिला को पुरुष मित्र ने मारा. पत्नी को पहाड़ से धक्का दिया. किसी और से शादी करने के लिए महिला मित्र की सुपारी दी.


यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पुरुष चौरानबे प्रतिशत अपराध करते हैं और महिलाएं छह से आठ प्रतिशत, यानी महिला अपराधियों की संख्या बहुत कम है, लेकिन महिलाओं द्वारा किये गये अपराध इसलिए ज्यादा चौंकाते हैं, क्योंकि महिला भी अपराध कर सकती है, इस बात पर विश्वास नहीं होता. यूं बदले वक्त के साथ महिला डॉन भी सामने आने लगी हैं. कुछ दिन पहले एक लड़की को दिल्ली से पकड़ा गया था. उसे जेल भी हुई थी, पर जेल से निकलने के बाद वह फिर से अपराध करने लगी. हाल ही में ग्रेटर नोएडा से उन्नीस साल की एक लड़की को पकड़ा गया. वह हाइवे पर ट्रकों को पिस्तौल के बल पर लूटती थी. उस घटना के बारे में तो लोगों ने देखा-सुना ही होगा, जहां एक लड़की ने पेट्रोल पंप के कर्मचारी के सीने पर पिस्तौल तानते हुए कहा था, ‘इतनी गोलियां मारूंगी कि कोई पहचान नहीं पायेगा’. अफसोस कि बाद में उस लड़की को कुछ लोग लक्ष्मीबाई कहने लगे.

दरअसल अपराध की दुनिया बड़ी रोमांचक लगती है. इसके पीछे की सोच यह है कि लंबी कानूनी प्रक्रियाओं में पड़ने के मुकाबले क्यों न हाथ के हाथ मामले को निपटाया जाए. इधर एक गोली चलेगी, उधर सब खत्म. हमारे समाज में अपराध को बहुत गौरवान्वित किया जाता है. अमिताभ बच्चन की फिल्मों की कामयाबी और उनकी एंग्री यंगमैन की छवि ने कुछ ऐसा वातावरण बनाया था, जहां न्याय कोई भला आदमी नहीं, कोई अपराधी ही दिलवा सकता है. कोई क्यों अपराधी बनता है, इसके मनोवैज्ञानिक और आर्थिक कारण भी वहां बताये जाते थे.
लेकिन आजकल तो सत्ता और धन बल के नशे में लोग समझते हैं कि एक बार अपराध की दुनिया में जगह बना लें, तो बस पौ बारह है.

पहले यदि कोई पिता अपराधी होता था, तो अपने बेटे को शिक्षा देता था कि वह कभी अपराधी न बने, लेकिन कई साल पहले एक व्यक्ति का इंटरव्यू पढ़ रही थी. उसका कहना था कि उसके पिता ने जीवन में जितने अपराध किये, उसने नहीं किये. इसलिए पिता उससे नाराज होते और कहते थे कि मेरा बेटा कहाना है, तो इस दुनिया में मुझसे ज्यादा नाम कमाना पड़ेगा. इसे पढ़ कर बहुत हैरानी हुई थी, क्योंकि बचपन में सुनी वह कहानी हमेशा याद रही थी कि एक चोर को जब राजा ने फांसी की सजा दी, तो उससे उसकी आखिरी इच्छा पूछी गयी. उसने कहा कि वह अपनी मां से कान में कुछ कहना चाहता है. उसने मां के कान काट लिये, फिर कहा कि जब पहले दिन उसने मां को कान में आकर चोरी की बात बतायी थी, यदि वह उसी दिन रोकती, तो वह अागे चोरी न करता.


लेकिन हिंदी फिल्मों, ओटीटी, सोशल मीडिया इन दिनों युवाओं के मार्गदर्शक और पथ प्रदर्शक हैं. अपराध कैसे करें, हथियार कैसे प्राप्त करें, ये सब बातें ऑनलाइन खोजी जा सकती हैं. ऐसे में, नयी पीढ़ी के बच्चों को, जिनमें लड़कियां भी हैं, न्याय करना और बदला लेना बहुत आसान लगता है. वैसे भी कुछ विमर्श ऐसे हैं, जो रात-दिन अन्याय के निराकरण का सही तरीका बदला समझते हैं. अतीत में जिस-जिसने सताया है, उससे बदला लेना चाहते हैं. यह अलग बात है कि बदले की इस सोच के शिकार कई बार निरपराधी भी होते हैं. जैसे कि राजा रघुवंशी या वह मां, जिसने अनाथ बच्ची को पाला और उसे उज्ज्वल भविष्य देने की कोशिश की. अपराध करते वक्त यह महसूस क्यों नहीं होता कि पकड़े भी जायेंगे? यह क्यों लगता है कि कुछ भी कर लें, बच जायेंगे? वे चित्र भी हम सबने देखे होंगे, जिनमें जब तरह-तरह के अपराधी जेल से बाहर आते हैं, तो विक्ट्री का साइन बनाते हैं. कई किशोर अपराधी तो ऐसे हैं, जो जब जेल जाते हैं, तो धमकी देते हैं कि बाहर आकर देखेंगे. कई मामलों में ऐसा हुआ भी है. इन सब कारणों से भी स्थिति बिगड़ी है. (ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

क्षमा शर्मा
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ टिप्पणीकार

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