ज्ञानेन्द्र रावत
World Water Day: दुनिया में जल संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है. पेयजल की समस्या भी दिनों-दिन गहराती जा रही है. इसके बावजूद हम पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति क्यों गंभीर नहीं हैं, यह समझ से परे है. जबकि संयुक्त राष्ट्र बहुत पहले ही चेतावनी दे चुका है कि 2025 में दुनिया की चौदह प्रतिशत जनसंख्या के लिए जल संकट बड़ी समस्या बन जायेगा. इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर के अनुसार, दुनियाभर में 270 करोड़ लोग ऐसे हैं जो पूरे एक वर्ष में तकरीबन तीस दिन तक पानी के संकट का सामना करते हैं. यह स्थिति जल संकट के भयावह होने का जीता-जागता प्रमाण है. संयुक्त राष्ट्र की मानें, तो अगले तीन दशक में पानी का उपभोग यदि एक प्रतिशत की दर से भी बढ़ेगा, तो दुनिया को बहुत बड़े जल संकट से जूझना पड़ेगा.
जल संकट से जहां कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी ओर जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है. विश्व बैंक का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते पैदा हो रहे जल संकट से 2050 तक वैश्विक जीडीपी को छह प्रतिशत की हानि उठानी पड़ेगी. वैश्विक स्तर पर देखें, तो दुनिया में दो अरब लोगों सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है. पूरी दुनिया में 43.6 करोड़ बच्चों के पास हर दिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है. यूनिसेफ की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते हालात और खराब हो रहे हैं. दुनिया में हर तीन में से एक बच्चा, यानी 73.9 करोड़ पानी की कमी वाले इलाकों में रह रहे हैं. इसके अतिरिक्त, पानी की घटती उपलब्धता, अपर्याप्त पेयजल और स्वच्छता की कमी का बोझ चुनौतियां बढ़ा रही हैं. दुनिया में वे शीर्ष 10 देश जहां के बच्चे पर्याप्त पानी से वंचित हैं, उनमें भारत शीर्ष पर है. अपने देश के 13.38 प्रतिशत बच्चे पर्याप्त पानी से वंचित हैं. आशंका है कि आने वाले समय में भारत इससे सर्वाधिक प्रभावित देश होगा. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, शुद्ध पेयजल से जूझने वाली वैश्विक शहरी जनसंख्या 2016 के 93.3 करोड़ से बढ़कर 2050 में 1.7 से 2.4 अरब होने की आशंका है. यदि शीघ्र इसका समाधान नहीं हुअा तो वैश्विक संकट और भयावह होगा, जिसकी भरपाई असंभव होगी.
ग्लोबल कमीशन ऑन इकोनामिक्स ऑफ वाटर की रिपोर्ट की मानें, तो 2070 तक 70 करोड़ लोग जल आपदाओं के कारण विस्थापित होने को विवश होंगे. दुनिया में दो अरब लोग दूषित पानी का सेवन करने को विवश हैं और हर वर्ष जल जनित बीमारियों से लगभग 14 लाख से ज्यादा लोग बेमौत मारे जाते हैं. बहुतेरे विकसित देशों में लोग नल से सीधे ही साफ पानी पीने में सक्षम हैं. परंतु हमारे देश के मात्र तीन प्रतिशत परिवारों को ही नल से साफ जल मिल रहा है. केंद्र और राज्य सरकारें घरों में नल के माध्यम से पीने योग्य पानी की आपूर्ति का दावा करती हैं, परंतु आज भी पांच प्रतिशत से अधिक लोग बोतलबंद पानी खरीद रहे हैं. जबकि जल जीवन मिशन ने 2024 तक हर घर में नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा था. यह मिशन और स्थानीय निकाय के जलदाय विभाग की नाकामी है जिसके चलते हर महानगर, शहर-कस्बे में छोटे-छोटे सैकड़ों वाटर बॉटलिंग प्लांट चल रहे हैं जो घर-घर 20-20 रुपये में पानी की बोतल पहुंचा लोगों की प्यास बुझा रहे हैं.
यदि सभी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना सरकार की मंशा है, तो उसे प्राकृतिक जल स्रोतों पर ध्यान देना होगा. देशभर में लगभग 24,24,540 जल स्रोत हैं. इनमें से 97 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. केवल 2.9 प्रतिशत ही शहरी क्षेत्र में हैं. इस तथ्य को सरकार भी नजरअंदाज नहीं कर सकती कि देश के ये सभी जलस्रोत संकट में हैं. इनकी बदहाली का सबसे बड़ा कारण उनका सूखना, उनमें सिल्ट जमा होना, मरम्मत के अभाव में टूटते चले जाना है. सुप्रीम कोर्ट का भी कहना है कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण के कारण विलुप्त हुई सभी झीलों, बावलियों और तालाबों आदि को पहचान कर उन्हें संरक्षित कर बहाल किया जाए. प्राकृतिक जल स्रोतों तथा नदी, तालाब, झील, पोखर, कुओं के प्रति सरकारी और सामाजिक उदासीनता एवं भूजल जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन ने स्वच्छ जल का गंभीर संकट खड़ा कर दिया है. वर्ल्ड वाटर रिसोर्स इंस्टीट्यूट की मानें, तो देश को हर वर्ष लगभग तीन हजार बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत होती है. जबकि बारिश से भारत को अकेले 4000 क्यूबिक मीटर पानी मिलता है. भारत सिर्फ आठ प्रतिशत ही वर्षा जल का संचयन कर पाता है. यदि बारिश के पानी का पूर्णतया संचयन कर लिया जाए, तो काफी हद तक जल संकट का समाधान हो सकता है. जल शक्ति अभियान के अनुसार, देश में बीते 75 वर्षों में पानी की उपलब्धता में तेजी से कमी आयी है. इसे देखत हुए वर्षा जल समेत प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण, उनका समुचित उपयोग और जल की बर्बादी पर अंकुश ही वह रास्ता है जो जल संकट से छुटकारा दिला सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)