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तिरंगी थाली से मिटेगा कुपोषण का कलंक

उम्र के अनुसार लंबाई, उम्र के मुताबिक वजन या लंबाई की तुलना में वजन नहीं है, तो समझिए आपका बच्चा कुपोषित है. पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर काफी सतर्क रहें.

गुरुस्वरूप मिश्रा : उम्र के अनुसार लंबाई, उम्र के मुताबिक वजन या लंबाई की तुलना में वजन नहीं है, तो समझिए आपका बच्चा कुपोषित है. पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर काफी सतर्क रहें. ऐसे लक्षण दिखें, तत्काल आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका, सहिया या एएनएम से संपर्क करें, ताकि कुपोषण उपचार केंद्र में जल्द इलाज कराया जा सके. वैसे मांओं के भोजन की तिरंगी थाली से झारखंड में कुपोषण का कलंक आसानी से मिट सकेगा.

राष्ट्रीय पोषण माह के तहत पूरे सितंबर महीने पोषण जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. पोषण जागरूकता रथ के जरिये लोगों को पोषण की जानकारी दी जा रही है. गर्भवती महिलाएं, धात्री महिलाएं, बच्चे एवं किशोरियों पर विशेष फोकस है. रंगोली के जरिये उचित पोषण से स्वस्थ जीवन को लेकर उन्हें जागरूक किया जा रहा है. पोषण अभियान की थीम पोषण के पांच सूत्रों पर आधारित है.

जीवन के प्रथम एक हजार दिन, पौष्टिक आहार, एनीमिया की रोकथाम, डायरिया से बचाव और स्वच्छता. कोरोना संकट के बावजूद आंगनबाड़ी सेविकाएं गर्भवती महिलाओं की गोद भराई रस्म उनके घर पर जाकर कर रही हैं. इसके साथ ही बच्चों के वजन की जांच और कुपोषित बच्चों की पहचान कर रही हैं, ताकि उन्हें कुपोषण उपचार केंद्र भेजा जा सके.

देश में तीसरा कुपोषित राज्य झारखंड : देश के सबसे कुपोषित राज्यों में झारखंड तीसरे स्थान पर है, जहां ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं. यहां 47.8% बच्चे कुपोषित हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) की वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में पांच साल से कम उम्र के करीब 45.3% बच्चे कुपोषित हैं, जो राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है. देश में इस उम्र के 38.4% बच्चे ही कुपोषित हैं. झारखंड के 47.8% बच्चों का वजन सामान्य से कम है.

झारखंड के कोल्हान प्रमंडल के पश्चिमी सिंहभूम जिले के बच्चे सबसे ज्यादा कुपोषित हैं. पांच साल से कम उम्र के 66.9% बच्चों का वजन कम है. 59.4 % बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ी है. 37.5% बच्चों का वजन कम रह गया. 13.1 % बच्चों का उम्र के हिसाब से न तो वजन बढ़ा और न ही लंबाई बढ़ी. झारखंड में लंबाई के अनुसार कम वजन संबंधी कुपोषण 29% बच्चों में है, जो कि देश में सबसे ज्यादा है. करीब 70% बच्चे एनीमिक पाये जाते हैं, जो कि देश के औसत 59% से भी अधिक है.

कुपोषण पर लगेगा ब्रेक : रिम्स की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आशा किरण कहती हैं कि गर्भावस्था से लेकर दो वर्ष की आयु तक के एक हजार दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं. इस दौरान उचित पोषण से बच्चों को कुपोषण के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है. मां के भोजन की थाली तीन रंगों वाली (उजला, हरा एवं पीला भोजन से युक्त) होनी चाहिए. जन्म के एक घंटे के अंदर नवजात को मां का दूध दें. छह महीने तक सिर्फ दूध दें. उसमें पानी नहीं मिलाएं. इसके बाद बच्चे को थोड़ा-थोड़ा खिचड़ी खिलाएं.

पोषणयुक्त भोजन जरूरी : गोड्डा के कृषि विज्ञान केंद्र की गृह वैज्ञानिक डॉ प्रगतिका मिश्रा कुपोषणमुक्त झारखंड के लिए पोषण थाली, पोषण माला, पोषण वाटिका एवं बायो फोर्टीफाइड वेराइटी पर जोर देती हैं. वे बताती हैं कि सब्जी एवं फलों के लिए पोषण वाटिका मॉडल सबसे बेहतर विकल्प है. आप संतुलित आहार यानी ऐसा भोजन लें, जिसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, फैट और फाइबर उचित मात्रा में मौजूद हो. चावल, रोटी, दाल, हरी सब्जियां, फल, दूध और दही को भोजन में शामिल करें.

Post by : Pritish Sahay

Prabhat Khabar News Desk
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