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50 Years of Emergency : क्या था तुर्कमान गेट कांड, जिसे बताया गया इमरजेंसी का काला अध्याय

50 Years of Emergency : 18 अप्रैल 1976 को इमरजेंसी के दौरान सौंदर्यीकरण के नाम पर तुर्कमान गेट,पुरानी दिल्ली के इलाके में भयंकर पुलिसिया कार्रवाई हुई थी, जिसके जद में छोटे बच्चे और महिलाएं भी आ गई थीं. यह इलाका जामा मस्जिद से महज 1 या 1.5 किलीमीटर की दूरी पर स्थित है. इमरजेंसी के दौरान सरकारी अत्याचारों की जांच के लिए गठित जस्टिस शाह कमेटी ने भी यह माना था कि तुर्कमान गेट कांड में बर्बरता की गई थी. सरकार ने यह माना था कि इस कांड में कुछ लोगों की मौत हुई थी, लेकिन वह आंकड़े काफी विवादास्पद हैं.

50 Years of Emergency : भारतीय राजनीति के इतिहास में इमरजेंसी एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है और उस काल में जो कुछ हुआ, उसका प्रभाव भारतीय राजनीति पर आज भी नजर आता है. इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार सीज कर दिए गए थे और कई तरह के प्रतिबंध भी लगाए गए थे. इमरजेंसी के समय जिस घटना की बहुत ज्यादा चर्चा होती है वो है तुर्कमान गेट कांड.

क्या था तुर्कमान गेट कांड

Turkman-Gate
दिल्ली का तुर्कमान गेट

तुर्कमान गेट कांड के बारे में यह कहा जाता है कि यह इमरजेंसी के दौरान हुई सबसे कुख्यात घटनाओं में से एक है. तुर्कमान गेट कांड 1976 के अप्रैल माह में हुआ था. उस वक्त संजय गांधी की देश में बादशाहत थी. वह किसी सरकारी पद पर नहीं थे, लेकिन तमाम प्रशासनिक अधिकारी उनके आदेश पर काम करते थे. 25 जून 1975 की रात को कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल या इमरजेंसी लागू किया था. उसके बाद देश में सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण का नारा दिया और इसके लिए लक्ष्य भी निर्धारित किए गए थे. इसी क्रम में संजय गांधी ने पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में नसबंदी और सौंदर्यीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया था. उस वक्त संजय गांधी के चहेते अफसर थे जगमोहन, जिन्होंने इस काम को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई थी. संजय गांधी की क्योंकि उस वक्त तूती बोलती थी, इसलिए उनके आदेश पर जामा मस्जिद और उसके आसपास के इलाकों से अतिक्रमण हटाया जाने लगा था. इसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया, तो प्रशासन सख्त हो गया था और आम आदमी पर पुलिसिया कार्रवाई हुई थी. उस दौर को देखने वाले पत्रकारों और कुछ किताबों में इस बात का सजीव चित्रण किया गया कि तुर्कमान गेट कांड में किस तरह का अत्याचार सरकार की ओर से जनता पर किया गया था.

संजय गांधी पर सनक सवार हो जाता था : श्रीनिवास

तुर्कमान गेट कांड इमरजेंसी का काला अध्याय है. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और 1974 के आंदोलन में सक्रिय भागीदार रहे श्रीनिवास बताते हैं कि तुर्कमान गेट कांड संजय गांधी की सनक का नतीजा था. संजय गांधी उस वक्त बहुत ताकतवर नेता थे और कांग्रेस में अगर उस वक्त किसी की चलती थी, तो वो संजय गांधी ही थे. प्रधानमंत्री के बेटे और एक ऐसे नेता जिनपर सनक सवार हो जाती थी. इसी सनक में संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी शुरू करवाई थी. नसबंदी का संबंध किसी जाति या धर्म से नहीं था, यह अभियान सबके लिए था, लेकिन उस वक्त कई लोगों के साथ जबरदस्ती हुई थी. तुर्कमान गेट कांड में भी जबरदस्ती का भय सबसे अधिक दिखा था. दरअसल संजय गांधी ने यह कहा था कि वे इस इलाके को साफ-सुथरा करवाना चाहते हैं. उनके आदेश पर कई बुलडोजर इलाके में पहुंच गया था. इसमें कोई शक नहीं है कि इलाके में कुछ अतिक्रमण भी थे, लेकिन जामा मस्जिद के आसपास जो दुकान थे, उनसे मस्जिद को आय होती थी, इसलिए वहां के लोग और इमाम ने अतिक्रमण हटाने का विरोध किया था. जनता के विरोध को कुचलने का प्रयास हुआ था, क्योंकि संजय गांधी इलाके का सौंदर्यीकरण करना चाहते थे. प्रशासन के सख्त रवैये की वजह से अत्याचार तो हुआ था. लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले भी छोड़े गए थे, मैं सटीक नंबर तो अभी नहीं बता पाऊंगा लेकिन कुछ लोगों की मौत हुई होगी इसमें कोई दो राय नहीं है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि तुर्कमान गेट कांड की वजह से मुसलमान कांग्रेस का विरोधी हो गया था और जब 1977 में चुनाव हुए तो मुसलमानों का एकमुश्त वोट कांग्रेस के विरोध में गया. मुसलमानों ने सरकार की नसबंदी नीति का भारी विरोध भी किया था.

पुलिस ने तमाम हद को पार कर दिया था

तुर्कमान गेट कांड पर पत्रकार जॉन दयाल और अजय बोस ने काफी विस्तार से लिखा है. इन दोनों पत्रकारों ने तुर्कमान गेट कांड को एक खूनी कांड करार दिया है. इन्होंने अपनी किताब -For Reasons of State: Delhi Under the Emergency में लिखा है कि तुर्कमान गेट के इलाके के सौंदर्यीकरण के लिए प्रशासन इतना सख्त था कि उसने पुलिस को जामा मस्जिद परिसर के अंदर घुसने से भी नहीं रोका था. इस बात को शाह आयोग ने भी माना था कि पुलिस ने जामा मस्जिद के परिसर में घुसकर कार्रवाई की थी. जॉन दयाल और अजय बोस की किताब आपातकाल हटने और आम चुनाव घोषित होने के तुरंत बाद प्रकाशित हुई थी. पुस्तक में बताया गया है कि सोमवार की नमाज हो चुकी थी और तभी पुलिस ने जामा मस्जिद के परिसर में प्रवेश किया था. तुर्कमान गेट के इलाके में 15-19 अप्रैल तक भारी हंगामा हुआ था, हालांकि उसके बाद भी विरोध होता रहा, लेकिन धीरे-धीरे मामला शांत हो गया. पुलिस को अंदर आने से रोकने के लिए मस्जिद के विशाल मुख्य द्वार को बंद कर दिया गया था, लेकिन यह सिर्फ एक एहतियाती उपाय था. इमाम को यह कतई उम्मीद नहीं थी कि पुलिस मस्जिद में प्रवेश करेगी. पुलिस जब परिसर में प्रवेश की थी, तो इमाम ने उन्हें चेताया था-रुको, यह अल्लाह का घर है.पुलिस ने लाठी चार्ज किया था, जिसके जद में महिलाएं और बच्चे भी आ गए थे. तुर्कमान गेट के आसपास के लोगों ने सौंदर्यीकरण का जबरदस्त विरोध किया था और पुलिस को कार्रवाई से रोका था, लेकिन इसके लिए उन्हें काफी कुछ भुगतना पड़ा था.

भारी विरोध के बाद सरकार पीछे हटी

तुर्कमान गेट इलाके में जनता के भारी विरोध के बाद सरकार को पीछे हटना पड़ा था और उन्होंने सौंदर्यीकरण का काम काफी धीमा कर दिया था. चूंकि यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में आ गई थी, इसलिए सरकार ने नरमी दिखाई, पर उसने यह नहीं माना था कि यहां कुछ भी गलत हुआ था. सरकार ने दिखाने के लिए कुछ लोगों का ट्रांसफर जरूर कर दिया था, ताकि विवाद थम जाए.

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Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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