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Hindi Vs Marathi Row : महाराष्ट्र में भाषा विवाद इतना बढ़ गया है कि अब राज ठाकरे की पार्टी मनसे के कार्यकर्ता सड़क पर उतर आएं हैं और यह कह रहे हैं कि उनपर हिंदी थोपी जा रही है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का भी यह बयान सामने आया है कि हम किसी भाषा का विरोध नहीं कर रहे हैं, हम तो बस यह कह रहे हैं कि मराठियों पर हिंदी थोपी ना जाए. उन्होंने यह सवाल भी पूछा है कि उत्तर भारतीय राज्यों में तीसरी भाषा कौन सी होगी. लेकिन महाराष्ट्र में जिस तरह की राजनीति हो जारी है, वह सिर्फ हिंदी को थोपने का मसला नहीं है, हिंदी तो सिर्फ बहाना है ठाकरे बंधुओं का लक्ष्य कुछ और है और राजनीति के जानकार इस बात से वाकिफ भी हैं. शिवसेना अब बीजेपी को हिंदुत्व के मसले पर भी घेरने लगी है और यह सवाल पूछा है कि पहलगाम के दोषियों का क्या हुआ? इतने दिन बीत जाने के बाद भी सरकार अभी तक उन आतंकवादियों को पकड़ नहीं पाई और बेशर्मी इतनी है कि पाकिस्तान के साथ खेल आयोजित किया जा रहा है और भारत उसमें शिरकत भी कर रहा है.
मराठी अस्मिता की राजनीति करती आई है शिवसेना

शिवसेना का रुख हमेशा से ही आक्रामक रहा है और वे अपने मुद्दों पर आक्रामक राजनीति करते आएं हैं, मराठी भाषा और मराठी मानुष की राजनीति करने वाले ठाकरे बंधुओं की राजनीति पर उस वक्त सवाल खड़े हुए थे जब कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने यह कह दिया था कि ठाकरे परिवार बिहारियों को घुसपैठिया कह रहा है लेकिन इनके दादाजी केशव ठाकरे ने अपनी आत्मकथा Mazhi Jeevangatha में यह लिखा है कि उनका समाज मगध से महाराष्ट्र आया था. उस वक्त काफी विवाद भी हुआ था और उद्धव ठाकरे ने दिग्विजय सिंह पर भड़कते हुए यह कहा था कि दादाजी ने अपनी किताब में यह लिखा है कि उनके समाज के लोग बिहार में भी रहते हैं.
क्या है ठाकरे परिवार का इतिहास और बिहार से संबंध
चाहे बाला साहेब ठाकरे हों या फिर राज ठाकरे सबने मराठी अस्मिता की राजनीति की है. लेकिन उनकी इस आक्रामक राजनीति पर तब सवाल उठे थे जब उनके बारे में यह कहा गया था कि ठाकरे परिवार का संबंध बिहार से है. इस तर्क के पीछे बाल ठाकरे के पिता और उद्धव ठाकरे के दादा केशव ठाकरे उर्फ प्रबोधनकार ठाकरे की उस आत्मकथा को आधार बनाया गया है, जिसमें उन्होंने यह लिखा है कि उनकी जाति के लोग पहले महापद्मनंद के शासन में मगध में रहते थे, लेकिन नंदवंश के बाद के राजाओं के अत्याचार से थककर वे मध्यप्रदेश होते हुए महाराष्ट्र आकर बस गए. केशव ठाकरे चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु जाति से हैं, जिन्हें महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के समकक्ष या यूं कहें कि उनके बाद की सबसे अगड़ी जाति माना जाता है. इस समाज को बिहार के कायस्थों की उपजाति के तौर पर देखा जाता है, क्योंकि ये उसी तरह प्रशासनिक कार्यों में भागीदार होते हैं जैसे की कायस्थ जाति के लोग. हालांकि ठाकरे परिवार का सीधा कोई संबंध बिहार से नहीं रहा है. उनके पूर्वज तीसरी या चौथी शताब्दी में ही महाराष्ट्र आकर बस गए थे और यहीं की संस्कृति में रचे बसे हैं.
चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु समाज का मगध से महाराष्ट्र का सफर
मगध से महाराष्ट्र तक के सफर में चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु समाज के लोगों ने लंबा सफर तय किया है. मराठी इतिहासर वीके राजवाड़े और जीएस सरदेसाई भी यह मानते हैं कि चंद्रसेनिया का्यस्थ प्रभु( CKP) क्षत्रिय–प्रशासनिक वर्ग के लोग हैं जिनका मूल वे उत्तर भारत मगध या उज्जैन से मानते हैं. केशव ठाकरे ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके परिवार के पूर्वज मराठा शासन के दौरान धोडप किले के किलेदार के रूप में काम करते थे. उनके परदादा कृष्णाजी माधव धोडपकर पाली, रायगढ़ में रहते थे, जबकि उनके दादा रामचंद्र ‘भिकोबा’ धोडपकर पनवेल में बस गए थे. केशव ठाकरे के पिता सीताराम का जन्म सीताराम रामचंद्र धोडपकर के रूप में हुआ था, लेकिन उन्होंने परंपरा के अनुसार बड़े होने के बाद उपनाम ‘पनवेलकर’ अपना लिया, लेकिन अपने बेटे को स्कूल में दाखिला दिलाते समय उन्होंने उसे ‘ठाकरे’ उपनाम दिया, जो ‘धोडपकर’ से पहले उनका मूल पारिवारिक नाम था. Thakre उनके परिवार के नाम की वर्तनी थी, लेकिन एक ब्रिटिश लेखक विलियम मेकपीस ठाकरे (William Makepeace Thackeray) से प्रभावित होकर उन्होंने अपने सरनेम Thakre की स्पेलिंग Thackeray कर ली, जो आज भी उनके परिवार के साथ है.
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