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Hul diwas : 30 जून को हर वर्ष हूल दिवस मनाया जाता है. यह दिवस समर्पित है उन वीर संताल आदिवासियों को जिन्होंने अपनी जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन किया. संताल आदिवासियों का हूल अपने अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया आह्वान था, जिसमें दावा किया जाता है कि 10-60 हजार संताल आदिवासी जुट गए थे और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी. आदिवासियों ने कभी भी अंग्रेजों की गुलामी को स्वीकार नहीं किया और उन्होंने अपनी जमीन बचाने के लिए युद्ध किया. संतालों के इसी युद्ध का परिणाम था कि अंग्रेजों ने उनकी भूमि को संरक्षित करने के लिए संताल परगना में एसपीटी एक्ट (संताल परगना टेनेंसी एक्ट) लागू किया. 1876 में लागू हुए इस एक्ट का उद्देश्य था आदिवासियों की भूमि को उनके पास सुरक्षित रखना और उन इलाकों में उनका स्वशासन चलने देना, ताकि उनकी संस्कृति बची रहे. दरअसल अंग्रेजों ने आदिवासियों की रक्षा के लिए नहीं बल्कि उनके हूल और युद्ध से डरकर यह एक्ट लागू किया था.
क्या था संतालों का हूल
1855 के संताल हूल को औपनिवेशिक भारत का पहला युद्ध कहा जा सकता है, जब अंग्रेजों के खिलाफ यहां के आदिवासियों ने हथियार उठाया था और यह स्पष्ट कर दिया था कि वे अपने जमीन और जीवन में अंग्रेजों की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेंगे. 1857 के विद्रोह को भले ही स्वतंत्रता आंदोलन की पहली क्रांति माना जाता हो, लेकिन सच्चाई यह है कि उससे दो साल पहले ही देश में अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंका जा चुका था और इसके नेता थे संताल आदिवासी. संताल आदिवासियों ने अंग्रेजों की महाजनी प्रथा का विरोध किया और यह स्पष्ट कहा कि हम अपनी जमीन पर टैक्स नहीं देंगे. इसके लिए उन्होंने सशस्त्र विद्रोह किया और शहादत दी. संतालों के इस हूल का नेतृत्व सिदो-कान्हू और चांद-भैरव चार भाइयों ने की थी. उनके इस आंदोलन में उनकी दो बहन फूलो और झानो भी शामिल थी.
फूलो-झानो ने 21 अफसरों की कुल्हाड़ी से काटकर की थी हत्या
फूलो और झानो की वीरता की कहानियों के बारे में इतिहास में काफी कम लिखा गया है, लेकिन संतालियों के लोकगीतों में उनकी वीरता की खूब कहानियां प्रचलित हैं. लोकगीतों में यह कहा जाता है कि इन दो बहनों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाया और उनके दांत खट्टे कर दिए थे. लोकगीत में यह भी कहा जाता है कि इन दोनों बहनों ने अपने चारों भाइयों से ज्यादा वीरता दिखाई थी और अपने पिता चुन्नी मांझी का सिर ऊंचा किया था. इन दोनों बहनों ने संताल हूल की आग को पूरे संताल परगना में फैला दिया था. बताया जाता है कि संताल हूल के दौरान फूलो और झानो पाकुड़ के निकट संग्रामपुर में अंधेरे का फायदा उठाकर अंग्रेजों के शिविर में घुस गईं थीं और 21 अंग्रेजों की हत्या कुल्हाड़ी से काटकर कर दी थी. इस युद्ध में दोनों बहनें शहीद हो गईं, लेकिन उनका संताल हूल जीवित है.
सोशल एक्टिविस्ट वंदना टेटे ने प्रभात खबर के एक कार्यक्रम में कहा था कि संताल हूल के वक्त महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उनका जिक्र इतिहास में इसलिए नहीं मिलता है कि जिन्होंने इतिहास लेखन का काम किया, उन्होंने अपनी सामाजिक स्थिति के अनुसार महिलाओं की भूमिका को समझा और उनका वर्णन किया. सच्चाई यह है कि आदिवासी समाज में स्त्री-पुरुष के बीच कोई भेद नहीं है, इसलिए इतिहास का पुनर्लेखन किया जाना चाहिए. प्रो अमित मुर्मू फूलो-झानो के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि इन दोनों बहनों ने संताल हूल में हिस्सा लिया था यह सही बात है. यह बात जरूर है कि इनके बारे में इतिहास की किताबों में ज्यादा चर्चा नहीं है. इसकी वजह यह है कि उस कालखंड में महिलाओं की भूमिका पर ज्यादा बात नहीं होती थी. महिलाएं अपने नाम से ज्यादा जानी भी नहीं जाती थीं, लेकिन उनके वंशज जो आज जिंदा हैं, वे भी यह कहते हैं कि फूलो-झानो दोनों बहनों ने संताल हूल में हिस्सा लिया था. एक किताब प्रकाशित है संताल हूल उसमें भी उनका जिक्र है, कुछ रिसर्च पेपर में भी उनका जिक्र मिलता है.
संतालों के हूल और महिलाओं के योगदान की इतिहास में बहुत कम हुई चर्चा
संतालों का हूल जिसका बड़ा व्यापक प्रभाव समाज पर पड़ा उसकी चर्चा इतिहास में काफी कम हुई है. स्कॉटिश इतिहासकार विलियम विल्सन हंटर ने अपनी किताब The Annals of Rural Bengal में संताल हूल का पूरा वर्णन किया. उन्होंने अपनी किताब में अंग्रेज अधिकारियों के जरिए बताया है कि संताल का यह हूल भागलपुर, दुमका, साहेबगंज, राजमहल आदि क्षेत्रों में तेजी से फैल गया. हजारों की संख्या में संतालों ने हथियार उठाए और ब्रिटिश चौकियों व महाजनों की संपत्ति पर हमला किया. संतालों के हूल को ब्रिटिश सरकार ने बर्बरता के साथ दबाया और उनका कत्लेआम किया. इस युद्ध में 20 हजार से अधिक संतालों के शहीद होने की बात विलियम हंटर लिखते हैं. हालांकि हंटर ने संताल महिलाओं के बारे में अलग से कुछ भी अपनी किताब में नहीं लिखा है.उन्होंने लिखा है कि संताल समर्पण नहीं करते थे, वे तबतक युद्ध करते थे जबतक कि नगाड़े बजते थे, वे शहादत के लिए तैयार थे.
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