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Ram Setu: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 अप्रैल को पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया, जो उसी क्षेत्र में है, जहां रामसेतु है. पांबन वर्टिकल सी-लिफ्ट ब्रिज है. यह ब्रिज मंडपम रेलवे स्टेशन से रामेश्वरम द्वीप के बीच बना है. यह ब्रिज पुराने पंबन पुल की जगह लेगा. पंबन ब्रिज के उद्घाटन के साथ ही एक बार फिर रामसेतु की चर्चा हो रही है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम ने अपनी वानर सेना की मदद से रामेश्वरम से श्रीलंका तक पुल बनाया था. नासा द्वारा ली गई तस्वीर में यह आकृति नजर भी आती है, हालांकि वैज्ञानिक शोधों में यह दावा किया जाता है कि यह प्राकृतिक संरचना है.
कहां स्थित है पंबन ब्रिज और रामसेतु

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया है, वह भारत के भूमि क्षेत्र से रामेश्वरम द्वीप को जोड़ता है. जबकि रामसेतु रामेश्वरम द्वीप से श्रीलंका को जोड़ता है. पीएम मोदी ने नए पंबन ब्रिज (Pamban Bridge) का उद्घाटन किया है, पुराना पंबन ब्रिज अंग्रेजों ने 1914 में बनवाया था. यह ब्रिज हिंद महासागर में बना भारत का पहला समुद्री ब्रिज है. जबकि रामसेतु का निर्माण हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान राम की वानर सेना ने किया था. अंग्रेज जब भारत आए, तो उन्होंने इस पुल को एडम्स ब्रिज का नाम दिया है. 1674 के डच नक्शे और 1804 के ब्रिटिश नक्शे में रामसेतु को एडम्स ब्रिज के रूप में चिह्नित किया गया है, जिसके बारे में यह कहा जाता था कि यह वह इलाका है जहां से पैदल समुद्र को पार किया जा सकता है.
पंबन ब्रिज और रामसेतु में मुख्य अंतर क्या है?
पंबन ब्रिज भारत की मुख्य जमीन से रामेश्वरम द्वीप को जोड़ता है, जबकि रामसेतु रामेश्वरम और श्रीलंका को जोड़ता है.जो लोग यह समझ रहे हैं कि पंबन ब्रिज और रामसेतु एक ही जगह पर स्थित है उनके लिए यह बात समझना बहुत जरूरी है. पंबन ब्रिज का निर्माण आधुनिक तकनीक से हुआ है, जबकि रामेसुत का निर्माण पत्थरों से किया गया था और वह पुल बहुत गहरा नहीं था. जिसकी वजह से यह समुद्री बांध की तरह है और यहां से होकर समुद्री जहाज गुजर नहीं सकते हैं, जिसकी वजह से इसे काटकर हटाने की योजना थी.
रामसेतु को लेकर क्या है विवाद?
सेतु समुद्रम शिपिंग नहर परियोजना को लेकर विवाद हुआ था जिसकी वजह से यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. 2005 में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, इस प्रोजेक्ट के तहत रामसेतु को काटकर जहाजों के लिए सीधा रास्ता बनाने की योजना थी. जिसका धार्मिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से विरोध हुआ और देश में नई बहस छिड़ गई. 2007 में केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा दायर किया, जिसमें यह कहा गया कि रामसेतु को ऐतिहासिक या धार्मिक स्थल नहीं माना जा सकता. इस हलफनामे का भारी विरोध हुआ था,तब सरकार ने हलफनामा वापस ले लिया था. यह मामला कोर्ट में चला था और 2018 में कोर्ट ने कहा कि जबतक मामला कोर्ट में है सरकार पुल को ध्वस्त नहीं कर सकती है. बाद में सरकार ने इसे संरक्षित करने की बात कही.
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