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Ram Navami Of Jharkhand : झारखंड की रामनवमी ऐसी, नहीं होती है पूरी दुनिया में जैसी

Ram Navami Of Jharkhand : 1918 में हजारीबाग के एक साधारण व्यक्ति गुरु सहाय ठाकुर ने अपनी इच्छा से रामनवमी के मौके पर भगवान राम के प्रिय भक्त हनुमान के झंडे को लेकर पूरे शहर का भ्रमण किया. उनकी इच्छा धार्मिक कार्य करने और सुख–शांति की कामना करने की थी. उनकी यह इच्छा आज के समय में इतनी बड़ी हो चुकी है कि झारखंड के रामनवमी और महावीरों झंडों की चर्चा पूरे देश में हो रही है. झारखंड की रामनवमी से पूरे देश को परिचित कराने का एक प्रयास हम इस रामनवमी पर कर रहे हैं.

Ram Navami Of Jharkhand : रामनवमी यानी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्मदिन. यह उत्सव पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन इस उत्सव का एक खास रंग और उत्साह देखना हो तो आपको झारखंड आना पड़ेगा. झारखंड की राजधानी रांची, हजारीबाग, जमशेदपुर और अन्य लगभग सभी शहरों में रामनवमी का उत्सव इतने अनोखे अंदाज में मनाया जाता है कि आप देखकर दंग रह जाएंगे.

झारखंड में रामनवमी पर निकलता है महावीरी झंडा का जुलूस

झारखंड में रामनवमी पर महावीरी झंडे का जुलूस निकाला जाता है. जयश्रीराम के नारे से पूरा वातावरण गुंजायमान रहता है और भक्ति का अनूठा स्वरूप तब दिखाई देता है जब इस जुलूस में शामिल लोग कई तरह के करतब दिखाते और भगवान की झांकी के साथ शहरों के प्रमुख मंदिरों से होते हुए शहर के मुख्य मार्ग से गुजरते हैं, तो भक्ति का आलम इस तरह का रहता है कि लोग उमंग और उत्साह से भर जाते हैं. उसपर पूरी-सब्जी और बुंदिया का महाप्रसाद जब लोग पाते हैं, तो राम लला के उत्सव का जश्न साकार हो जाता है.

लाखों की संख्या में 50-50 फीट ऊंचे झंडे बनते हैं जुलूस का हिस्सा

झारखंड की रामनवमी का जब दृश्य सामने आता है, तो सबसे पहले नजर आते हैं लंबे-ऊंचे महावीरी झंडे या ध्वज. केसरिया, लाल और पीले रंग के महावीरी झंडे पर संकटमोचक हनुमान शान से अपनी रामभक्ति प्रदर्शित करते नजर आते हैं. 2023 में 1100 मीटर का लंबा झंडा जुलूस की शान बना था. हालांकि अधिकतर झंडे 20-30 फीट से ज्यादा ऊंचे नहीं होते हैं. कुछ झंडे 50 फीट के भी होते हैं. 

झारखंड में रामनवमी का इतिहास हजारीबाग से जुड़ा

Ram Navami
राम-नवमी

झारखंड की रामनवमी का इतिहास आजादी से पहले का है. झारखंड के हजारीबाग शहर में पहली बार 1918 में रामनवमी का झंडा निकाला गया था. हालांकि उस वक्त झंडे को जुलूस की शक्ल में नहीं निकाला गया था. लेकिन झंडा निकालने वालों ने झंडे के साथ पूरे हजारीबाग शहर का भ्रमण किया था.प्रभात खबर के हजारीबाग से रिपोर्टर जयनारायण ने बताया कि झारखंड में रामनवमी जुलूस की शुरुआत 1918 में हजारीबाग शहर से हुई थी. जुलूस निकालने का श्रेय गुरु सहाय ठाकुर को जाता है, जिन्होंने धर्म के लिए यह कार्य किया और अपने कुछ मित्रों को एकत्रित करके रामनवमी के मौके पर महावीरी झंडा निकालने की परंपरा की शुरुआत की. गुरु सहाय ठाकुर ने अपने मित्र हीरालाल महाजन, टीभर गोप, कन्हाई गोप, जटाधर बाबू और यदुनाथ के सहयोग से रामनवमी पर महावीरी झंडा निकाला और उसे शहर के विभिन्न इलाकों का भ्रमण कराया. उस वक्त शाम के समय झंडा निकाला गया था, तब से यही परंपरा कायम है.  

1929 में रांची में भी शुरू हुई झंडा निकालने की परंपरा

Mahant Ram Sharan
महंत राम शरण जिन्होंने रांची में रामनवमी के जुलूस की शुरुआत करवाई

रांची के कुछ लोगों ने जब हजारीबाग के रामनवमी के बारे में सुना, तो वे जिज्ञासावश हजारीबाग गए और वहां की रामनवमी को देखा और फिर वहां से आने के बाद रांची में 1929 से रामनवमी पर झंडा निकालने की परंपरा शुरू हुई. रांची के श्रीराम जानकी मंदिर के महंत ओमप्रकाश शरण ने बताया कि रांची में रामनवमी की शुरुआत करने में मंदिर के महंत बाबा रामशरण दास की अहम भूमिका थी, उनके अलावा अन्य कुछ लोगों ने रामनवमी के अवसर पर झंडा निकालने की परंपरा की शुरुआत की. 1929 में सिर्फ एक झंडे से रामनवमी की शुरुआत हुई थी, आज के समय में लाखों झंडे जुलूस का हिस्सा बनते हैं.  

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आज भी 1929 का झंडा बनता है रामनवमी के जुलूस की शान

महंत ओमप्रकाश शरण ने बताया कि 1929 में जो झंडा रामनवमी पर निकाला गया था, वह झंडा आज भी जुलूस की शान बनता है. पहली बार रांची के अपर बाजार स्थित महावीर मंदिर से झंडा निकाला गया था, जो तपोवन तक लाया गया था. आज भी यह परंपरा कायम है. जब विभिन्न इलाकों से झंडे तपोवन पहुंचते हैं, तो सबसे पहले 1929 के झंडे की पूजा होती है, उसके बाद ही अन्य ध्वज की पूजा की जाती है. महंत ओमप्रकाश बताते हैं कि उस वक्त रांची में मंदिरों की संख्या बहुत कम थी. मेनरोड का महावीर मंदिर भी उस वक्त नहीं था, संभवत: इसी वजह से अपर बाजार के महावीर मंदिर से तपोवन तक झंडे को लाने की परंपरा बनी हो. 

रामनवमी के जुलूस ने जाति व्यवस्था को कमजोर किया

महावीर मंडल रांची के सहमंत्री उदय रविदास ने बताया कि रविदास समाज के ज्ञान प्रकाश नागा बाबा ने रामनवमी के जुलूस में बाजा बजाने का काम किया था और सभी जातियों को एकसाथ लेकर आए थे, जबकि जब झंडा निकालने की शुरुआत हुई थी, उस वक्त समाज में भेदभाव था. महावीर मंडल रांची 1929 से रांची के रामनवमी जुलूस का नेतृत्व कर रहा है. आज भी जुलूस का नेतृत्व इसी अखाड़े की ओर से किया जाता है.महावीरी झंडे को निकालने में नानू भगत गोप, महंत ज्ञान प्रकाश नागा बाबा, रामचंद्र साहू की भी अहम भूमिका रही थी. 

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झारखंड में रामनवमी का जुलूस कब से निकलना शुरू हुआ?

झारखंड में पहली बार 1918 में हजारीबाग में रामनवमी पर महावीरी झंडा निकाला गया था.

झारखंड की राजधानी रांची में रामनवमी का जुलूस पहली बार कब निकला?

1929 में

Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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