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Sawan 2025 : सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह महीना बहुत ही खास है और यह भगवान शंकर का सबसे प्रिय महीना है. सावन के महीने में भगवान शंकर पर जलाभिषेक की परंपरा है. यही वजह है कि सावन के महीने में शिवालयों में भीड़ उमड़ पड़ती है. जिन राज्यों में भगवान शंकर का ज्योतिर्लिंग हैं वहां तो एक दिन में लाखों श्रद्धालु भगवान का जलाभिषेक करने के लिए उमड़ पड़ते हैं. झारखंड की बाबा नगरी देवघर में हर साल लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं. यहां का शिवलिंग रावण द्वारा स्थापित है और भगवान शंकर के वैद्यनाथ स्वरूप की पूजा होती है, जिसका रावण से गहरा संबंध है. इस मौके पर देवघर के बाबा मंदिर में पूरे एक माह का मेला लगता है जिसकी शुरुआत 10 जुलाई को हो जाएगी.
क्या है देवघर के बाबा मंदिर का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवघर में भगवान शिव का लिंग रावण ने स्थापित किया था. एक बार रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और अपना एक-एक सिर काट कर भगवान के सामने अर्पित कर दिया. जब उसने अपना दसवां सिर भगवान के सामने अर्पित करना चाहा तो भगवान ने प्रकट होकर उसे वरदान दिया. तब रावण ने उन्हें अपने साथ लंका चलने को कहा, तब वरदान स्वरूप भगवान ने अपना स्वरूप शिवलिंग, ज्योतिर्लिंग के रूप में उन्हें दिया और शर्त रखी कि तू शिवलिंग को धरती पर जहां कहीं भी रखेगा मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा. रावण ने खुश होकर सहमति दी और लंका की ओर चल पड़ा.रावण की इस सफलता पर देवता भयभीत हो गए और उन्हें लगा कि अगर रावण भगवान को अपने साथ ले गया तो वह और ताकतवर हो जाएगा, तब सबसे भगवान विष्णु से मदद मांगी. भगवान विष्णु ने वरुण देव से कहा कि रावण के पेट में जल भर दें, ताकि उसे लघुशंका लग जाए. जब रावण को तीव्र लघुशंका महसूस हुई, तो उसने देवघर में एक बच्चे को जो ग्वाले के भेष में भगवान विष्णु थे, देकर लघुशंका के लिए चला गया. रावण के जाते ही भगवान विष्णु ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और वहां से चले गए. रावण जब आया तो उसने शिवलिंग को जमीन पर पाया, उससे उसे उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह वहां से हिला नहीं. तब आकाशवाणी हुई कि अब शिवलिंग वहीं पर रहेगा. चूंकि भगवान शंकर ने रावण के कटे हुए सिर की चिकित्सा की थी जिससे रावण को कष्ट से मुक्ति मिली थी इसलिए देवघर के भगवान शिव को वैद्यनाथ कहा जाता है और इस ज्योतिर्लिंग की पूजा शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति के लिए की जाती है.
मनोकामना देव हैं बाबा
देवघर के बाबा मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थापित बाबा सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं, इसलिए यहां मन्नत मांगने वालों की भीड़ उमड़ती है और भक्त अपनी मनोकामना सिद्धि पर यहां विशेष पूजा भी करते हैं. देवघर के बाबा ने रावण की भी मनोकामना पूर्ण की थी और उसके साथ ज्योतिर्लिंग के रूप में लंका जा रहे थे, लेकिन अहंकार की वजह से उसकी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई.
सावन में क्यों होती है भगवान शिव की पूजा
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरों ने मिलकर सावन के महीने में ही समुद्र मंथन किया था, जिससे सबसे पहले हलाहल विष निकला. हलाहल विष को अत्यंत भयंकर विष माना जाता है, जिसके प्रभाव से लोगों की तुरंत मृत्यु संभव है. जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला, तो उसके प्रभाव से देवता और दानव जलने लगे तब सृष्टि के संहारकर्ता, आदिदेव शिव ने उस जहर का पान कर लिया और उसे अपने कंठ में रख लिया. विष के प्रभाव से उसके शरीर में तीव्र ताप उत्पन्न हो गया, जिसे शांत करने के लिए देवताओं ने भगवान शंकर पर जल अर्पित किया, उसी वक्त से सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है.
सावन का महीना भगवान शिव को है प्रिय
माता पार्वती ने सावन के महीने में ही भगवान शिव को पाने के लिए कठिन व्रत किया था. माता पार्वती ने सोमवार को कठिन व्रत भी किया था. इसी वजह से भगवान शंकर को सोमवार का दिन और सावन का महीना बहुत प्रिय है. सावन में सोमवार के व्रत का भी विधान है और कहते हैं कि सोमवार का व्रत करने से भगवान शंकर मन वांछित फल देते हैं. लड़कियां अगर सोमवार का व्रत करें, तो उन्हें इच्छित वर की प्राप्ति होती है.
सावन के महीने में कांवर यात्रा और जलाभिषेक
सावन के महीने में बिहार-झारखंड के लोग कांवर यात्रा पर जाते हैं, जिसमें वे बिहार के सुल्तानगंज से गंगा जल भरते हैं और 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद देवघर पहुंचकर उनका जलाभिषेक करते हैं. यह यात्रा कठिन है, लेकिन भक्तिभाव से भक्त इसे पूरा करते हैं और पूरे रास्ते बोलबम का नारा लगाते हुए जाते हैं. भगवान शिव आशुतोष हैं वो अपने भक्त के इतने समर्पण भाव ने तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी कामनापूर्ति करते हैं.
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