Ashadha Gupt Navratri 2025 : आषाढ़ गुप्त नवरात्रि एक बेहद पवित्र और शक्तिशाली पर्व है, जो तंत्र साधना, देवी उपासना और आत्मशुद्धि का विशेष अवसर माना जाता है. यह पर्व विशेष रूप से साधकों, तांत्रिकों और मां दुर्गा के भक्तों के लिए अत्यंत फलदायक होता है. आषाढ़ मास में आने वाली इस नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि यह गुप्त रूप से मनाई जाती है और मां भगवती के नौ रूपों की गुप्त रूप से साधना की जाती है. इस लेख में हम जानेंगे कि 2025 की आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में सच्चे मन से कैसे पूजा करें और कौन सी विधि अपनाएं जिससे देवी मां की कृपा प्राप्त हो:-

– पूजा की तैयारी एवं स्थान चयन
गुप्त नवरात्रि के लिए एक शांत, पवित्र और एकांत स्थान का चयन करें। घर का पूजास्थल साफ़ करके वहां गंगाजल से शुद्धिकरण करें.लकड़ी के पाटे पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. कलश स्थापना करें, जिसमें स्वच्छ जल, सुपारी, सिक्का और आम के पत्ते डालें तथा ऊपर नारियल रखें.
– देवी का आवाहन एवं मंत्र जाप
नवरात्रि के हर दिन मां दुर्गा के एक-एक रूप की पूजा करें. प्रतिदिन देवी का आवाहन करें और “ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र का 108 बार जाप करें. यह मंत्र साधक को नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है और साधना को सिद्धि की ओर ले जाता है.
– भोग एवं नैवेद्य अर्पण
मां दुर्गा को उनके प्रिय भोग जैसे फल, मिठाई, नारियल, पंचमेवा, खीर आदि अर्पित करें. साथ ही, लाल पुष्प, रोली, कुमकुम, चावल और चंदन का प्रयोग करें. मां को प्रसन्न करने के लिए तुलसी का उपयोग न करें क्योंकि यह श्रीविष्णु को समर्पित होती है.
– कन्या पूजन एवं ब्राह्मण भोजन
नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन अवश्य करें. नौ कन्याओं को भोजन कराएं, उन्हें उपहार व दक्षिणा दें। साथ ही ब्राह्मणों को भी आमंत्रित कर भोजन व दान देने से पूर्ण पुण्य प्राप्त होता है. यह परंपरा देवी को अत्यंत प्रिय मानी जाती है.
– गुप्त साधना एवं व्रत का पालन
गुप्त नवरात्रि में व्रत का विशेष महत्व है. इस दौरान एक समय फलाहार करें, सात्विक भोजन करें और असत्य, क्रोध व अपवित्र विचारों से दूर रहें. ब्रह्मचर्य का पालन करें और पूरे नौ दिनों तक पूजा में लीन रहें। तांत्रिक साधनाएं भी इसी काल में सिद्ध होती हैं, लेकिन इन्हें गुरु मार्गदर्शन में ही करना चाहिए.
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आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में श्रद्धा और नियमपूर्वक की गई पूजा न केवल मानसिक शांति देती है, बल्कि साधक को दिव्य शक्ति, आत्मबल और मां दुर्गा की कृपा का अनुभव भी कराती है. यह समय आत्मिक जागरण और साधना का श्रेष्ठ अवसर है.