Guru Purnima 2025 : हिंदू संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु ही वह माध्यम हैं जो शिष्य को अज्ञान से ज्ञान की ओर और जीव से शिव की ओर ले जाते हैं. गुरु पूर्णिमा का पर्व उन्हीं दिव्य गुरुओं को समर्पित है, जिन्होंने जीवन को धर्म, भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर चलना सिखाया. आईए जानें, महत्वपूर्ण पहलुओं में गुरु तत्त्व का दर्शन तुलसीदासकी वाणी से:-

– गुरु वंदना से होती है श्रीरामकथा की शुरुआत
रामचरितमानस की आरंभिक चौपाइयों में ही तुलसीदास जी गुरु को नमस्कार करते हैं: “बंदऊं गुरु पद कंज”
वे गुरु को करुणा का सागर और अज्ञान का नाश करने वाला सूर्य मानते हैं. इससे स्पष्ट होता है कि भगवान राम की कथा को समझने के लिए पहले गुरु की शरण आवश्यक है.
– गुरु, ईश्वर से भी पहले पूजनीय हैं
तुलसीदास जी लिखते हैं: “गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई”
गुरु के बिना जीवन रूपी समुद्र को पार कर पाना असंभव है. यही भावना गुरु पूर्णिमा की आत्मा है जहां गुरु को मोक्ष का द्वार बताया गया है.
– शबरी की कथा में गुरु पर अडिग विश्वास
जब शबरी को मतंग ऋषि ने कहा कि राम एक दिन आएंगे, तो उसने उस एक वचन को जीवन का आधार बना लिया. वर्षों तक प्रतीक्षा करती रही. यह दर्शाता है कि जब शिष्य में गुरु वचन के प्रति अटूट श्रद्धा होती है, तब ईश्वर स्वयं उसके पास आते हैं.
– भगवान राम भी निभाते हैं शिष्य धर्म
रामचरितमानस में भगवान राम अपने गुरुओं — वशिष्ठ और विश्वामित्र — की आज्ञा का पालन करते हैं और उन्हें पूरा सम्मान देते हैं. यह सिखाता है कि चाहे कोई कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो, गुरु का स्थान हमेशा ऊंचा रहता है.
– भक्ति का मार्ग गुरु कृपा से ही खुलता है
तुलसीदास जी कहते हैं: “गुरु प्रसादु सिव भगति पाई”
गुरु ही शिष्य को ईश्वर भक्ति के योग्य बनाते हैं. उनके बिना न तो भक्ति पूर्ण होती है, न ही आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव है.
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गुरु पूर्णिमा 2025 के अवसर पर हमें संत तुलसीदास जी की शिक्षाओं को आत्मसात करना चाहिए. ‘रामचरितमानस’ केवल एक पवित्र ग्रंथ नहीं, बल्कि उसमें गुरु तत्त्व का दिव्य रहस्य समाया हुआ है. इस दिन अपने गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें, उनके बताये मार्ग पर चलें और जीवन को दिव्यता की ओर अग्रसर करें.