Hariyali Teej 2025: सावन का महीना आते ही धरती हरी चादर ओढ़ लेती है. बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की चमक और वर्षा की फुहारें पेड़-पौधों, नदियों और झरनों को जीवन से भर देती हैं. मान्यता है कि इस माह देवों के देव महादेव कैलाश से धरती पर आते हैं और अपने भक्तों के बीच समय बिताते हैं. यह भाव उनकी करुणा और समर्पण को दर्शाता है—कि ईश्वर भी जनसामान्य की चिंता करते हैं.
ग्रीष्म की तपिश समाप्त होती है, और वर्षा से सूखे नदी-तालाब लबालब हो जाते हैं। यही समय होता है कृषि की शुरुआत का। दरअसल, सनातन धर्म में सावन से फाल्गुन तक जितने भी पर्व और त्योहार हैं, वे सभी धरती, अन्न और जीवन-ऊर्जा से जुड़े हुए हैं। इसलिए यह महीना न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि पारिस्थितिकी और कृषि दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
सुहागन महिलाओं के लिए हरियाली तीज पर मेहंदी क्यों है आवश्यक?
कब है हरियाली तीज
हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 26 जुलाई 2025 को रात 10 बजकर 41 मिनट से प्रारंभ होकर 27 जुलाई की रात 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि को मान्यता होने के कारण हरियाली तीज का व्रत 27 जुलाई 2025, रविवार को रखा जाएगा.
हरियाली तीज और उसकी कथा
सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है. यह पर्व प्रकृति के श्रृंगार और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है. इस दिन हरे वस्त्र, चूड़ियां और बिंदी पहनना शुभ माना जाता है, जिससे महिलाओं और प्रकृति के बीच गहरा जुड़ाव स्थापित होता है.
हरियाली तीज की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महादेव ने मां काली के रंग को लेकर परिहास किया, जिससे वे रूठ कर तप में लीन हो गईं. इसी तप से उनका रंग निखर गया और वे गौरवर्णा गौरी बन गईं। यह कथा हमें बताती है कि प्रकृति से जुड़ाव ही आंतरिक और बाह्य सौंदर्य का मूल है—आज के संदर्भ में इसे ‘नेचुरोपैथी’ भी कह सकते हैं.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और लोककथाएं
‘व्रतराज’ ग्रंथ में वर्णित कथा के अनुसार, सावन की एक तृतीया को देवी पार्वती ने महादेव का पूजन करते हुए एक राजा को रक्षा-सूत्र बांधा था. उस रक्षा-सूत्र की शक्ति से सूखा पेड़ हरा हो गया. तभी से इस तिथि को ‘हरियाली तीज’ कहा जाने लगा. यह वृक्षारोपण और प्रकृति की रक्षा का प्रतीक बन गया.
सावन और भाद्रपद की तृतीयाएं जैसे हरिकाली तीज, हरियाली तीज, कजली तीज और हरितालिका तीज—सभी मां पार्वती के विभिन्न रूपों की पूजा से जुड़ी हैं. इन पूजाओं का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य, समाज में संतुलन और प्रकृति की सुरक्षा से भी जुड़ा है.
स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ाव
व्रत-पूजन के दौरान हरे रंग के वस्त्र पहनना नारी-स्वास्थ्य से जुड़ा प्रतीक है। कई पेड़-पौधे जैसे पीपल और वटवृक्ष स्त्री रोगों में औषधीय लाभ देते हैं. सावन में महिलाएं व्रत और पूजा के माध्यम से न केवल धार्मिक लाभ लेती हैं, बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी सहभागी बनती हैं.