Hindu rituals: सनातन धर्म में पूजा-पाठ को परम पवित्र और भावपूर्ण कर्म माना गया है. पूजा केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता और परमात्मा से जुड़ने का माध्यम है. इसी कारण पूजा के समय तन, मन और व्यवहार की पवित्रता को अत्यंत आवश्यक माना गया है. इसी संदर्भ में यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि क्या चप्पल या जूते पहनकर पूजा करना उचित है?
शास्त्रों की दृष्टि से क्या कहता है धर्म
हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों जैसे मनुस्मृति, नारद स्मृति और गरुड़ पुराण में पूजा के दौरान स्वच्छता और अनुशासन का विशेष उल्लेख किया गया है. इन ग्रंथों में स्पष्ट कहा गया है कि पूजा से पहले शरीर को स्नान द्वारा शुद्ध करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें और जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही पूजा स्थल में प्रवेश करें. चप्पल पहनकर पूजा करना शारीरिक अपवित्रता का प्रतीक माना जाता है, जो ईश्वर के प्रति सम्मान में कमी दर्शाता है.
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संस्कृति और व्यवहार की परंपरा
भारतीय परंपरा में मंदिरों, आश्रमों और घर के पूजा स्थलों में नंगे पांव प्रवेश करना एक सामान्य व्यवहार है. यह केवल नियम नहीं, बल्कि श्रद्धा, नम्रता और आत्मसमर्पण का प्रतीक है. जब हम जूते उतारते हैं, तो हम अपने अहंकार, सांसारिकता और भौतिकता को छोड़कर परमात्मा की शरण में आते हैं.
क्या यह पाप है?
शास्त्रों में इसे सीधे तौर पर “पाप” तो नहीं कहा गया, लेकिन पूजा की मर्यादा के अनुसार यह अवांछनीय और अनुचित आचरण अवश्य है. इससे पूजा की शुद्धता और आस्था पर प्रभाव पड़ता है. अतः यह आचरण धार्मिक दृष्टि से उचित नहीं माना गया.
भगवान की पूजा करते समय चप्पल पहनना सनातन धर्म की मर्यादा और भावना के विरुद्ध है. इसलिए जब भी पूजा करें, तो तन और मन को शुद्ध कर विनम्र भाव से नंगे पांव भगवान के समक्ष जाएं. यही सच्ची श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है.