Holika Dahan 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. रंगों का यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत, आपसी प्रेम, सद्भाव का प्रतीक है. लेकिन रंग खेलने से पहले होलिका दहन की परंपरा है. होलिका दहन की धार्मिक मान्यता यह है कि इस दिन भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने होलिका का विनाश किया था. इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन लोग आपस की बुराई, बैर, नफरत और नकारात्मक चीजों को होलिका में अर्पित करके जीवन में नई ऊर्जा, खुशी और जीवन में सकारात्मकता का भाव अपनाकर रंगों के त्योहार का स्वागत करते हैं.
झूसी स्थित श्री स्वामी नरोत्तमानन्द गिरि वेद विद्यालय के सामवेदाचार्य ब्रजमोहन पांडेय ने बताया कि इस वर्ष पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 02 मिनट पर शुरू हो जाएगी, जो 14 मार्च, शुक्रवार की सुबह 11:11 बजे तक रहेगी. लेकिन होलिका दहन के दिन भद्राकाल 13 मार्च को सुबह 10:02 बजे से रात 10:37 बजे तक रहेगा. इसलिए भद्रा रहित होलिका दहन 13 को रात 10:37 बजे के बाद से लेकर 14 मार्च के सूर्योदय पूर्व तक किया जा सकता है. वैदिक आचार्यों के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन अशुभ माना जाता है. इसलिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा समाप्ति के बाद ही शुरू होगा.
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होली की दिन खग्रास चंद्रग्रहण, लेकिन भारत में नहीं दिखेगा : वेदाचार्य ब्रजमोहन पाण्डेय ने यह भी बताया कि होली के दिन यानी 14 मार्च को सुबह 9.27 बजे खग्रास चंद्रग्रहण भी लगेगा, जो दोपहर 3.30 बजे तक तक रहेगा. हालांकि यह चंद्र ग्रहण देश में दिखाई नहीं देगा.
होलिका दहन : होलिका दहन के संबंध में मान्यता है कि भगवान् विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक अनेक यातनाएं दी. यह समय प्रह्लाद की कठिन परीक्षा का समय था, इसलिए इसे अशुभ समय भी माना जाता है.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि का आरंभ 13 मार्च रात 10:02 बजे
भद्रा समाप्ति: 13 मार्च रात 10:37 बजे
होलिका दहन का शुभ समय: 13 मार्च रात 10:37 बजे के बाद,
मध्य रात्रि में केवल 1 घंटा 4 मिनट का समय
भद्रा समाप्ति: मध्य रात्रि के बाद शुभ मुहूर्त अवधि: 1 घंटा 4 मिनट
होलिका दहन पूजा-विधि
होलिका दहन देश काल एवं नाम गोत्र के उच्चारण के साथ संकल्प लेकर करें. होलिका की पूजा करने से पहले भगवान श्रीगणेश और भक्त प्रह्लाद का ध्यान करें. इसके बाद होलिका में फूल, माला, अक्षत, चंदन, साबुत हल्दी, गुलाल, पांच तरह के जनाज, गेहूं की बालियां आदि अर्पित करे और भोग लगाएं. फिर कच्चा सूत लपेटते हुए होलिका के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करें.
होलिका मंत्र – ‘असूक्याभयसंत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिषैः. अतस्तवां पूजायिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव..’ का उच्चारण करें. इसके बाद होलिका को जल का अर्घ्य देकर परिवार में खुशहाली व सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें. होलिका दहन के समय अग्नि में गोबर से बने उपले, उबटन, गेहूं की बाली, गन्ना व चावल आदि अर्पित करें. इसके बाद अगले होलिका दहन की राख माथे में लगाने के साथ पूरे शरीर पर लगाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से जातक रोग मुक्त होता है.